Naga Sadhu: नागा साधु बनने के लिए कामेंद्रियों को क्यों कर देते हैं भंग, जानें नागाओं के विशिष्ट संस्कार

Naga Sadhu: हिंदू धर्म में नागा साधुओं का बहुत महत्व है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि नागा साधु बनना आसान नहीं है. बेहद कठिन परीक्षाओं को पास करने के बाद ही एक व्यक्ति को नागा साधु बनाया जाता है.

Naga Sadhu: हिंदू धर्म में नागा साधुओं का बहुत महत्व है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि नागा साधु बनना आसान नहीं है. बेहद कठिन परीक्षाओं को पास करने के बाद ही एक व्यक्ति को नागा साधु बनाया जाता है.

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Inna Khosla
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Naga Sadhu: नागा साधु का जीवन सांसारिक सुखों और मोह-माया से दूर रहने पर आधारित होता है. कामेंद्रियों का त्याग उन्हें सांसारिक इच्छाओं से मुक्त करता है, जो मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोध माना जाता है. हिंदू दर्शन में, काम और भोग से मुक्त होकर व्यक्ति अपनी ऊर्जा को साधना, ध्यान और तप में लगा सकता है. यह ऊर्जा आध्यात्मिक उत्थान में सहायक होती है. नागा साधु बनने के लिए कामेंद्रियों को भंग करना (या ब्रह्मचर्य और संयम के कठोर नियमों का पालन करना) एक धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक प्रक्रिया है, जो उनके जीवन के उद्देश्य और साधना पद्धति से गहराई से जुड़ी हुई है. इसके पीछे कई कारण और मान्यताएं हैं, जिनके बारे में आप हिंदू धर्म के शास्त्रों और अखाड़ों की परंपराओं में पढ़ सकते हैं.

कैसे होता है कामेंद्रिया 

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कुछ धार्मिक संसधाओं के अनुसार, नागा साधुओं के विशिष्ट संस्कारों में कामेन्द्रियों का भंग करना भी शामिल है. साधु को अखाड़े के ध्वज के नीचे 24 घंटे तक बिना खाए-पीए खड़ा रखकर ये संस्कार किया जाता है. उनके कंधे पर एक दंड और हाथ में मिट्टी का बर्तन होता है, और अखाड़े के पहरेदार उन पर निगरानी रखते हैं. इसके बाद वैदिक मंत्रों के साथ अखाड़े का एक साधु उनके लिंग को झटके देकर निष्क्रिय करता है. कामेन्द्रियों को भंग करने की प्रक्रिया भी ध्वज के नीचे संपन्न होती है, जिसके बाद व्यक्ति नागा साधु के रूप में दीक्षित हो जाता है.

हिंदू धर्म के अनुसार, ब्रह्मचर्य का पालन करना आत्मा की शुद्धि और ईश्वर से एकात्मता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है. नागा साधु इस आदर्श को चरम सीमा तक अपनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि कामेंद्रियों को त्यागकर और कठोर तपस्या के माध्यम से साधु अपने कर्म बंधनों से मुक्त हो सकते हैं. नागा साधु बनने के लिए कामेंद्रियों का त्याग उनकी साधना, धर्म और जीवन के उद्देश्य का एक अनिवार्य हिस्सा है. यह सांसारिक जीवन से मुक्त होकर आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर बढ़ने का प्रतीक है. इस त्याग के माध्यम से वे अपने जीवन को मानवता, धर्म और अध्यात्म के उच्चतम आदर्शों के लिए समर्पित करते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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