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अफगानिस्तान में सरकार गठन की कवायद तेज, हिबतुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान का सबसे बड़ा नेता बनाने की तैयारी

अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके तालिबान आतंकी नई इस्लामी सरकार बनाने और अपने सबसे बड़े धार्मिक नेता शेख हैबतुल्ला अखुंदजादा को देश का सबसे बड़ा नेता घोषित करने की तैयारी में है.

Updated on: 02 Sep 2021, 06:57 AM

highlights

  • राजनीतिक व्यवस्था के ईरानी मॉडल को अपनाने की तैयारी
  • पीएम की रेस में अब्दुल गनी बरादर और मुल्ला याकूब का नाम
  • 2-3 दिन में हो सकता है अफगान की नई सरकार का ऐलान 

काबुल:

अफगानिस्तान में सरकार बनाने की कवायद तेज हो गई है. नई सरकार के लिए बैठकों का दौर शुरू हो चुकी है. माना जा रहा है कि अगले दो से तीन दिन में नई सरकार का ऐलान कर दिया जाए. माना जा रहा है कि अपनी छवि को सुधारने के लिए तालिबान कुछ चौंकाने वाली घोषणाएं कर सकता है. हालांकि नई सरकार में महिलाओं की भारीदारी को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं. तालिबान को सरकार बनाने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. इन्हीं सभी बातों को लेकर लगातार मंथन किया जा रहा है. 

काबुल नहीं कंधार से चलेगी सरकार?
सूत्रों के मुताबिक, तालिबान का सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा होगा और उसके अधीन ही सर्वोच्च परिषद होगी. बताया जा रहा है कि काउंसिल में 11 या 72 सदस्य हो सकते हैं. इनकी संख्या को लेकर अभी भी मंथन जारी है. बताया जा रहा है कि हिबतुल्लाह अखुंदजादा कंधार में रहेगा. कंधार तालिबान की पारंपरिक राजधानी रही है. ऐसे में यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या अब अफगानिस्तान का शासन काबुल के बजाए कंधार से चलेगा. 

बरादर और याकूब का नाम प्रधानमंत्री की रेस में 
अफगानिस्तान में शासन के लिए राजनीतिक व्यवस्था के ईरानी मॉडल को अपना सकता है. एग्जीक्यूटिव आर्म का नेतृत्व प्रधानमंत्री करेंगे, जिसके अधीन मंत्रिपरिषद होगी. सूत्रों को मुताबिक इस रेस में अब्दुल गनी बरादर या मुल्ला बरादर या मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब शामिल हैं. गौरतलब है कि मुल्ला उमर ने 1996 में अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात की स्थापना की थी और 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ विरोध का नेतृत्व किया था. 9/11 के हमलों के बाद अफगानिस्तान पर अमेरिका के आक्रमण के बाद उमर को बाहर कर दिया गया था.

तालिबान के सामने होंगी ये चुनौतियां 
अफगानिस्तान से अमेरिका की सेना वापस लौट चुकी है. अब पूरी तरह सत्ता तालिबान के हाथ में है. देश की 3.5 करोड़ की आबादी को संभालना तालिबान के लिए आसान नहीं होगा. तालिबान को इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता की जरूरत पड़ेगी. तालिबान ने जब 1990 में शासन किया था उसकी अपेक्षा आज अफगानिस्तान की आबादी अधिक शिक्षित और शहरों में रहने वाली है. ऐसे में उन पर इस्लामी शासन थोपना चुनौती भरा होगा. वहीं तालिबान ने1964-65 के अफगान संविधान को बहाल करने की योजना बनाई है. इस संविधान को तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद दाउद खान ने बनाया था.