राजस्थान हाई कोर्ट ने शुक्रवार को पिछले साल लागू किये गये आरक्षण बिल को रद्द कर दिया है। दरअसल 22 सितम्बर 2015 को राजस्थान विधानसभा ने दो महत्वपूर्ण बिल पास कर गुर्जरों को विशेष पिछड़ी जाति के तहत 5 प्रतिशत जबकि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण दिया था।
आरक्षण के ख़िलाफ लड़ाई लड़ रहे वकील शैलेन्द्र सिंह ने कहा, 'हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस बिल को रद्द कर दिया है जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण बिल पास कर गुर्जरों को विशेष पिछड़ी जाति के तहत 5 प्रतिशत जबकि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण दिया था।'
राज्य सरकार के इस फ़ैसले के बाद राज्य में आरक्षण का कोटा संवैधानिक 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा पार को पार कर गया था।
वसुंधरा राजे सरकार ने 2015 में यह बिल पास कर आरक्षण दिया था। राज्य सरकार ने केंद्र से यह गुहार भी लगाई थी कि इन बिलों को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया जाए।
गौरतलब है कि राजस्थान में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 49 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित थी जो इन दोनों बिलों की वजह से बढ़कर 68 प्रतिशत हो गई।
आरक्षण कोटे को लेकर राजस्थान में जातीय ध्रुवीकरण के मौजूदा हालात के मद्देनजर पहले से ही ऐसी आशंका ज़ाहिर की जा रही थी कि दोनों बिलों पर राज्यपाल के दस्तखत होते ही इन्हें हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। हाई कोर्ट के इस फ़ैसले ने राजस्थान सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है।