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33 साल बाद भी रुश्दी के खिलाफ ईरान का फतवा है कायम, ईनाम राशि हो गई है 30 लाख डॉलर

रुश्दी के मामले में ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमौनी ने 'द सैटेनिक वर्सेज़' उपन्यास को फरवरी 1989 में ईशनिंदा करार दे उनकी मौत का हुक्मनामा यानी फतवा जारी किया था.

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Nihar Saxena
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Salman Rushdie

शुक्रवार को एक हमलावर ने बुकर विजेता सलमान रुश्दी पर किया हमला.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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पश्चिमी न्यूयॉर्क में शुक्रवार को अपने लेक्चर की शुरुआत करते ही 'द मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' उपन्यास के लिए बुकर पुरस्कार विजेता मशहूर लेखक सलमान रुश्दी पर हुए जानलेवा हमले ने लगभग 33 साल पहले ईरान के सर्वोच्च इस्लामिक नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के फतवे को फिर सुर्खियों में ला दिया है. सलमान रुश्दी के 1988 में आए चौथे उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेज़' (The Satanic Verses) को इस्लाम विरोधी करार दे मौत का फरमान यानी फतवा जारी किया गया था, जिसे अमल में लाने वाले को उस वक्त 28 लाख डॉलर का ईनाम देने की घोषणा की गई थी. इस फतवे से बचने के लिए सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) को 'जोसेफ एंटोन' के छद्म नाम से 13 साल काटने पड़े. बाद में इसी नाम से उन्होंने एक अन्य किताब भी लिखी. दहशत का आलम यह था कि फतवा जारी होने के शुरुआती छह महीनों में रुश्दी ने कम से कम 56 बार घर बदला. सिर्फ सलमान रुश्दी ही नहीं, बल्कि उपन्यास के प्रकाशन से जुड़े सभी लोगों के खिलाफ अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी (Ayatollah Ruhollah Khomeini) का फतवा जारी हुआ था. अब जब तीन दशक बाद सलमान रुश्दी पर घातक हमला होता है, तो जानते हैं फतवे (Fatwa) का पूरा प्रकरण क्या था और कैसे इसने रुश्दी और किताब से जुड़े अन्य लोगों की जिंदगी में उथल-पुथल मचा दी...

सलमान रुश्दी की पृष्ठभूमि और पारिवारिक जीवन
इस प्रख्यात लेखक का जन्म भारत में जून 1947 को हुआ. तत्कालीन बॉम्बे और आज के मुंबई में उनका बचपन बीता और फिर बोर्डिंग स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के सिलसिले में वह ब्रिटेन आ गए. पढ़ाई खत्म करने के बाद रुश्दी ने सालों एक एडवर्टाइजिंग कंपनी में कॉपी राइटर का काम किया. 1975 में रुश्दी का पहला उपन्यास 'ग्रीमस' आया, लेकिन उन्हें लोकप्रियता और सफलता अपने दूसरे उपन्यास 'द मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' से मिली, जिसे 1981 में बुकर पुरस्कार से नवाजा गया. 2006 में पीबीएस के संबोधन में रुश्दी ने खुद को 'कट्टर नास्तिक' बताया था. इसके अगले ही साल यानी 2007 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने रुश्दी को साहित्य की सेवा के लिए नाइट की उपाधि दी. अब तक सलमान रुश्दी 14 उपन्यास लिख चुके हैं, जिसमें सबसे हालिया 2019 में प्रकाशित 'कीशॉट' (Quichotte) था (इसकी सही उच्चारण रुश्दी ने खुद लिखा था). रुश्दी ने चार बार शादी की, जिसमें सबसे हालिया पत्नी अमेरिका की सुपर मॉडल और शीर्ष शेफ पद्मा लक्ष्मी रही. उनकी और पद्मा लक्ष्मी की शादी महज चार साल ही चली. उनके दो बेटे हैं. बड़ा पहली पत्नी क्लेरिस्सा लुआर्ड से दूसरा तीसरी पत्नी एलिजाबेथ वेस्ट से. रुश्दी की दूसरी पत्नी अमेरिकी लेखिका मारिआन विगिंस थीं. 

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समझें क्या होता है फतवा
सरल शब्दों में कहें तो फतवा किसी इस्लामिक नेता की ओर से जारी हुक्मनामा होता है. रुश्दी के मामले में ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमौनी ने 'द सैटेनिक वर्सेज़' उपन्यास को फरवरी 1989 में ईशनिंदा करार दे उनकी मौत का हुक्मनामा यानी फतवा जारी किया था. चूंकि यह मसला बेहद हाई प्रोफाइल था तो फतवा और मौत का फरमान अमेरिका में एक-दूसरे के पर्याय बन गए. हालांकि फतवे का मतलब हमेशा हिंसा नहीं होता है. उदाहरण के लिए 2005 में अमेरिका और कनाडा के मुस्लिम विद्वानों के एक समूह ने यह फतवा जारी किया था... 'सभी तरह का आतंक हराम है, जो इस्लाम में भी निषिद्ध है. ऐसे में आतंक का सहयोग या उससे जुड़ाव रखने वाला भी हराम और निषिद्ध है'. मुस्लिम विद्वानों का यह समूह यहां तक कह गया था हरेक मुसलमान की यह धार्मिक और नागरिक जिम्मेदारी है कि आम लोगों की सुरक्षा के लिए वे कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्थाओं का सहयोग करें.

'द सैटेनिक वर्सेज़' को क्यों करार दिया गया ईशनिंदक 
'द सैटेनिक वर्सेज़' सलमान रुश्दी का चौथा उपन्यास था, जिसका प्रकाशन 1988 में हुआ. अंग्रेजी में लिखे इस उपन्यास को रुश्दी ने मुख्यतः एक अप्रवासी के अनुभवों का दस्तावेज करार दिया था. हालांकि पक्के मुसलमानों ने कहानी में आए मोहम्मद और अन्य पात्रों को लेकर उपन्यास पर अपनी आपत्ति दर्ज की. उपन्यास में मोहम्मद साहब को क्षणिक रूप से कमजोर दर्शाया गया था. उस वक्त दक्षिणी कैलिफोर्निया में रहने वाले एक मुसलमान ने अमेरिकी पत्रिका 'द टाइम्स' से कहा था, 'मेरे विचार से तो यह चमत्कारिक कुरान पर ही हमला है'. उपन्यास की आलोचना और ईशनिंदा के कारण विवादों के केंद्र में आते ही ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी ने फरवरी में रुश्दी के खिलाफ मौत का फरमान यानी फतवा जारी कर दिया. इसके बाद रुश्दी को तुरंत छिपना पड़ा. उस वक्त रुश्दी की तत्कालीन पत्नी मारिआन विगिंस ने ब्रिटेन के एक अखबार से बातचीत में कहा था कि रुश्दी को फतवा जारी होने के शुरुआती पांच महीनों में जान के डर से 56 बार अपना घर बदलना पड़ा.  यानी हर तीसरे दिन सलमान रुश्दी अपना ठिकाना बदल देते थे. तेहरान रेडियो पर खुमैनी के फतवे की घोषणा के बाद रुश्दी को एक बॉडीगार्ड भी उपलब्ध कराया गया था. खुमैनी की जून 1989 में मौत हो गई, लेकिन मौत से कुछ महीनों पहले जारी उनका फतवा अमल में रहा. 1993 में ईरान के अयातुल्लाह अली खमेनेई ने रुश्दी के खिलाफ मौत के फरमान को नए सिरे से जारी कर दिया. इसके बाद तब भी छिपकर रह रहे रुश्दी कैंब्रिज, इंग्लैंड के एक चर्च में संडे सर्विस में शामिल हुए. उन्होंने वहां सार्वजनिक तौर पर कहा कि वह सीधे तौर पर आतंकी धमकी का सामना कर रहे हैं. चर्च में उन्होंने कहा कि अब वे बजाय डर के जीने के सार्वजनिक जीवन में फिर से वापसी करेंगे. 

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फतवे की चपेट में सिर्फ रुश्दी ही नहीं आए... औरों की जिंदगी पर भी पड़ा असर
'द सैटेनिक वर्सेज़' का जापानी भाषा में अनुवाद करने वाले जापानी लेखक और विद्वान हितोशी इगारशि जुलाई 1991 में सुकूबा यूनिवर्सिटी के कैंपस में मृत पाए गए. किसी ने उन्हें चाकू से गोद दिया था. उनके गले पर चाकू का गहरा घाव था. इसके साथ ही चेहरे व हाथों पर भी चाकू के कई वार किए गए थे. हितोशी की हत्या से एक हफ्ते पहले मिलान में 'द सैटेनिक वर्सेज़' का इतालवी में अनुवाद करने वाले इत्तोर कैप्रियोलो पर भी उनके अपार्टमेंट में हमला हुआ था. इत्तोर के गले, छाती और हाथों पर भी चाकू के गहरे घाव थे. हालांकि वह इसलिए बच गए क्योंकि हमलावर उन्हें मरा समझ कर फरार हो गया था. बाद में पुलिस से पता चला कि हमलावर ने इत्तोर से सलमान रुश्दी का पता जानने के लिए हमला किया था. अक्टूबर 1993 में रुश्दी के इस उपन्यास के नॉर्वेजियन प्रकाशक विलियम न्यगार्ड पर ओस्लो स्थित घर के बाहर तीन गोलियां दागी गईं. उन्हें भी अस्पताल में महीनों गुजारने पड़े तब कहीं जाकर उनकी जिंदगी बची. रोचक बात यह है कि विलियम पर गोलीबारी के पीछे 'द सैटेनिक वर्सेज़' से जुड़ाव को जिम्मेदार मानते हुए हमलावर पर आरोप 2018 में तय किए गए.

फतवा वापस लेने की कोशिश किसी ने नहीं की
1998 में ब्रिटेन से कूटनीतिक संबंध बहाल करने के प्रयासों के फेर में ईरान के नेता मोहम्मद खातमी ने घोषणा करते हुए कहा कि रुश्दी पर किसी तरह के हमले का ईरान न तो समर्थन करेगा और ना ही उसे रोकने का प्रयास करेगा. इसके दशकों बाद  पता चला कि फतवा अभी भी प्रभावी है और अब फतवे की ईनाम राशि बढ़कर 30 लाख अमेरिकी डॉलर हो चुकी है. 

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रुश्दी पर हमला इस तरह हुआ 
न्यूयॉर्क में सलमान रुश्दी चौटाउक्वा संस्थान में 'लेखकों और निर्वासन में रहने वाले अन्य कलाकारों के लिए शरणस्थली और रचनात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के घर के रूप में अमेरिका' लेक्चर में भाग लेने शुक्रवार को आए थे. रुश्दी और लेक्चर को मॉडरेट करने वाले हैनरी रीज परस्पर बातचीत कर रहे थे, जब हादी मटर नाम के हमलावर ने चाकू से कई वार सलमान रुश्दी पर कर दिए. इस चर्चा के बाद बैले डांसर मिस्टी कोपलैंड, राजनीतिक टिप्पणीकार और लॉस एंजेलीस टाइम्स के स्तंभकार जोनाह गोल्डबर्ग और पत्रकार मारिया रेसा को भी इस कार्यक्रम में भाग लेना था. 

HIGHLIGHTS

  • 1988 में आए रुश्दी के उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेज़'  को ईशनिंदक करार दिया गया
  • ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी के खिलाफ फतवा जारी किया
  • 33 साल बाद भी फतवा है जारी, जिसकी ईनाम राशि अब 30 लाख डॉलर पहुंच चुकी है
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