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Explainer: आप भारत में रहते हैं तो क्या आपको पता है कि भारतीयों की औसत आयु कितनी है? मतलब भारत में रहने वाला नागरिक औसत कितने साल जीता है? हमारे देश के किन राज्यों में रहने वाले लोग ज्यादा जी पाते हैं और किन राज्यों के लोगों की औसत आयु कम है? क्या आपको पता है कि life Expectancy के मोर्चे पर हम दुनिया में किस पायदान पर खड़े हैं? चीन और पाकिस्तान कहां हैं? पुरूष ज्यादा जीते हैं या महिला? गांव में रहने वाले लोगों की उम्र ज्यादा होती है या शहरी आबादी की? पहले के जमाने में लोग ज्यादा जीते थे या आज के दौर में? आज का ये लेख इसी सब के इर्दगिर्द होगा।
अक्सर आपने बड़े बुजुर्गों को कहते सुना होगा कि पहले के लोग काफी जीते थे. बेशक किसी दौर में ये बात सही रही भी होगी! सनातन को लेकर माना जाता है कि सतयुग में लोग एक लाख साल तक जीते थे. त्रेतायुग में रहने वाले लोगों की औसत आयु 10 हजार साल थी जबकि द्वापर युग में 1 हजार साल. कलियुग में लोगों की औसत आयु 100 साल बताई जाती है.
बाल्मिकी रामायण के हवाले से कहा जाता है कि त्रेतायुग में राम राज्य 11 हजार साल था. हालांकि लगभग 5000 साल पुराने द्वापर युग की महाभारत में भगवान श्री कृष्ण के मानव अवतार और भीष्म पितामह की उम्र सवा सौ से दो सौ साल के बीच बताई जाती है। 'शतायुः पुरुषः शतेन्द्रिय' ईशा उपनिषद का ये श्लोक भी सौ साल तक जीने का तरीका बताता है और आयुर्वेद के श्लोक 'जीवेत शरदः शतम्' में भी सौ साल तक जीने का ही जिक्र है.
वर्तमान में भारतीयों की औसत आयु क्या है?
अब आपके जेहन में सवाल होगा कि मौजूदा वक्त में हम भारतीयों की औसत आयु कितनी है? तो फिलहाल भारतीयों की औसत आयु 72 साल है। 1920 से लेकर अब तक बीतें करीब 100 साल में इस मोर्चे पर भारत में काफी सुधार देखा गया है।
क्या कहता है वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्टस
- 1800 के आसपास भारतीयों की औसत आयु सिर्फ करीब 25 साल थी
- 1900 में ये घटकर महज 22 साल रह गई थी, उस वक्त देश में फैला जानलेवा प्लेग शायद इस गिरावट की एक वजह हो.
- औसत आयु में ये गिरावट 1920 तक देखी गई, लेकिन तब से लेकर अब तक नेशनल लाइफ एक्सपेक्टेंसी में इजाफा होता रहा है.
- देश को जब आजादी मिली थी तब देश में औसत आयु 31 साल थी जिसमें अब तक करीब 140 फीसदी का इजाफा हो चुका है.
वैसे औसत आयु बढ़ने के पीछे की कई वजहें होती हैं, जिनमें मोटे तौर पर बेहतर हेल्थ इन्फ्रास्टक्चर और लाइफ स्टाइल बड़ी वजह है. यकीनन आजादी के अब तक इन मोर्चों पर देश में काफी काम हुआ है, जिसका असर दिखता भी है. मसलन 1950 के दौर में देश में करीब 30 मेडिकल कॉलेज थे, जबकि आज 780 के पार हैं! करीब 400 प्रतिशत का इजाफा. इसका असर लोगों की सेहत पर साफ नजर आता है. जैसे 1940 के दशक में मातृ मृत्यू दर प्रति एक लाख 2000 थी, जो आज घटकर 100 से नीचे सिमट चुका है.
इस दरमियान ना सिर्फ बेहतर स्वास्थ्य ढांचा विकसित हुआ है जबकि लोगों की कमाई भी बढ़ी है. 1947 में प्रति व्यक्ति आय 250 रूपए से कम थी, जो 2024 में बढ़कर 1 लाख 80 हजार रूपए हो चुकी है। 2047 तक इसके 14 लाख 90 हजार रूपए पहुंचने का अनुमान है.
दुनिया के क्या हैं हालात?
ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि लाइफ एक्सपेक्टेंसी के मोर्चे पर पूरी दुनिया के हालात क्या हैं और हम कहां खड़े हैं? तो मौजूदा वक्त में नाइजीरिया में औसत आयु 55 साल से कम है जबकि हांगकांग जापान और दक्षिण कोरिया में करीब 85 साल! लाइफ एक्सपेक्टेंसी का ग्लोबल एवरेज 73 साल से ज्यादा है, जिससे भारत थोड़ा पीछे है. इस मोर्चे पर इराक, ईरान, उजबेकिस्तान, सीरिया, लीबिया, नॉर्थ कोरिया, यूक्रेन, वियतनाम, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देश हमसे आगे हैं. हांलाकिं हम नेपाल-पाकिस्तान जैसे करीब 70 देशों से बेहतर भी हैं.
भारत का कौनसा राज्य जीने के लिहाज से बेहतर
वैसे सवाल ये भी उठेगा कि जिंदगी जीने के लिहाज से हमारा कौन सा राज्य बेहतर है? तो साल 2020 में सरकार ने संसद में बताया कि केरल, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, पंजाब, महाराष्ट, हिमाचल प्रदेश में रहने वालों की औसत आयु ज्यादा है जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, बिहार झारखंड में रहने वालों की औसत आयु नेशनल एवरेज से काफी कम है! ये आंकड़ा 2013 से 2017 के बीच का था.
2012 से 2016 के बीच के आंकड़ें में भी कमोवेश ऐसी ही तस्वीर थी. वैसे 2013 से 2017 के आंकड़ों के आधार पर ही सरकार ने संसद में बताया था कि गांवों के मुकाबले शहरों में रहने वाले ज्यादा जीते हैं. तब राष्ट्रीय औसत आयु 69 साल थी, जबकि ग्रामीण भारत में 67.7 साल और शहरी भारत में 72.4 साल! अक्सर सुनते हैं कि पुरूषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा जीती हैं. सरकारी आंकड़ें इसकी पुष्टि भी करते हैं. 2013 से 2017 के उसी डेटा के मुताबिक पुरूषों के मुकाबले महिलाएं ढाई-तीन साल ज्यादा जीती हैं.
अब बात इस लाइफ एक्सपेक्टेंसी के ग्लोबल इंपैक्ट की. आप जो ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडेक्स देखते हैं, जिसके चलते पता चलता है कि कौन सा देश वाकई में इनक्लूसिव ग्रोथ कर रहा है. उस इंडेक्स का एक बड़ा आधार यही लाइफ एक्सपेक्टेंसी ही होती है. इसके अलावा मोटे तौर पर शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय भी. यूएनडीपी की ह्यूमन डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2025 के मुताबिक भारत ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडेक्स में 193 देशों में 130वें पायदान पर है. मालदीव, भूटान, श्रीलंका, वियतनाम, फिजी, लीबिया, सूरीनाम और इराक जैसे देश हमसे बेहतर हैं. हम भी करीब 60 देशों से आगे हैं...पाकिस्तान और नेपाल से भी.
बेशक आजादी के बाद से बीते 75 साल से लाइफ एक्सपेक्टेंसी के मोर्चे पर भारत ने काफी कुछ बेहतर किया है, लेकिन अभी भी लंबा सफर तय करना बाकी है. खासकर तब जबकि लगभग इतनी ही आबादी वाले चीन में राष्टीय औसत आयु 78 साल है! इसका एक दूसरा पहलू भी है. भारत में रहने वालों की बढ़ती उम्र के चलते मुल्क में रिटायरमेंट की एज लिमिट बढ़ाने पर चर्चा हो सकती है तब दूसरी तरफ देश के कॉरपोरेट सेक्टर में अर्ली रिटायरमेंट की चाहत बढ़ रही है और 45 पार अनुभवी लोगों को नौकरी मिलने की मुश्किलें भी.
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