Mahakumbh Mela and Stampede: 1954 में हुए प्रयागराज कुंभ मेले को इतिहास में सबसे बड़े हादसों में से एक के रूप में याद किया जाता है. ये आजादी के बाद पहला कुंभ था, जिसे लेकर लोग बेहद उत्साहित भी थे. लेकिन, इस साल की मौनी अमावस्या के दिन कुंभ मेले में एक भीषण भगदड़ मच गई थी जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी. भीड़ इतनी अधिक थी कि मेला स्थल पर भारी अव्यवस्था फैल गई. भीड़ के दबाव में लोग गिरने लगे और एक बड़ी भगदड़ मच गई. इस हादसे में हजारों लोगों की जान चली गई. उस समय की सरकार ने मृतकों की संख्या को कम बताने की कोशिश की. मेला स्थल पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी. वीआईपी लोगों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई थीं, जिससे आम लोगों को परेशानी हुई. बैरिकेड्स लगाए गए थे, लेकिन भीड़ के दबाव में ये टूट गए.
भगदड़ का कारण और उसकी भयावहता
सीमित स्थान और अपर्याप्त व्यवस्थाओं के कारण यहां भारी अव्यवस्था उत्पन्न हो गई. ये अव्यवस्था एक बड़ी भगदड़ में तब्दील हो गई जबकि उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी मेले में मौजूद थे. उस दिन 3 फरवरी को मेला स्थल पर एक भयावह भगदड़ मच गई जिससे हजारों लोगों की जान चली गई. सरकारी रिकॉर्ड्स के अनुसार, प्रधानमंत्री ने मेला स्थल की सुरक्षा व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया था और वह स्वयं तथा राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को पवित्र स्नान के लिए मेला स्थल पर उपस्थित होना था. इस दौरान वीआईपी के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई थीं, जिससे सामान्य श्रद्धालुओं को कुम्भ स्नान करने में रुकावट आई. बैरिकेड्स लगाए गए थे, लेकिन इसके बावजूद श्रद्धालुओं का भारी हुजूम घाट की ओर बढ़ने लगा. इस दौरान बैरिकेड्स के पीछे खड़े लोग गिर गए और हजारों लोग मौके पर ही मारे गए.
इस घटना में 1000 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जबकि 2000 से अधिक लोग घायल हुए. हालांकि, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मरने वालों की संख्या को नकारते हुए इसे "कुछ भिखारियों" की मौत बताया. बाद में एक फोटो पत्रकार एनएन मुखर्जी ने इस घटना के कुछ चित्र प्रकाशित किए जिनमें मरे हुए लोग आभूषण पहने हुए थे. इन फोटो को देखकर कहा जा सकता था कि वो भिखारी नहीं बल्कि समृद्ध परिवारों से थे. एनएन मुखर्जी ने अपनी मैनुअल प्रकाशित की जिसमें उन्होंने इस हादसे का विस्तार से वर्णन किया और बताया कि किस तरह से सरकारी अधिकारी उस दिन सरकारी आवास में चाय और नाश्ते का आनंद ले रहे थे जबकि भगदड़ मच चुकी थी.
कुम्भ मेला का धार्मिक महत्व
कुम्भ मेला हिंदू धर्म (hindu dharm) का एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा है, जो 12 सालों में चार बार आयोजित किया जाता है. महाकुंभ मेला (maha kumbh mela) चार पवित्र नदियों के संगम स्थलों पर आयोजित होता है हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज. इस साल प्रयागराज में कुम्भ मेला 144 सालों बाद संगम पर हो रहा है, और इसे लेकर सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गई है. इस बार कुम्भ मेला 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है, और इस भव्य आयोजन में 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. यह आयोजन भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर होगा.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)