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After Maha Kumbh Mela Photograph: (News Nation)
After Maha Kumbh Mela: अखाड़े साधु-संतों के संगठन हैं जो सनातन धर्म की रक्षा, आध्यात्मिक परंपराओं के संरक्षण, और धार्मिक शिक्षा के प्रसार में लगे रहते हैं. महाकुंभ के दौरान, ये अखाड़े अपने अनुयायियों के साथ एकत्रित होते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं. कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिन्हें मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है. शैव अखाड़े, वैष्णव अखाड़े और उदासीन और निर्मल अखाड़े. शैव अखाड़े वाले भगवान शिव के उपासक हैं. प्रमुख शैव अखाड़ों में जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, और अटल अखाड़ा शामिल हैं. वैष्णव अखाड़े के साधु-संत भगवान विष्णु और उनके अवतारों के उपासक हैं. प्रमुख वैष्णव अखाड़ों में निर्वाणी अनी अखाड़ा, दिगंबर अनी अखाड़ा, और निर्मोही अखाड़ा शामिल हैं. उदासीन और निर्मल अखाड़े सिख गुरु परंपरा और संत मत से प्रेरित हैं. इनमें उदासीन अखाड़ा और निर्मल अखाड़ा प्रमुख हैं. अब ये महाकुंभ के बाद कहां जाते हैं ये सवाल बहुत लोगों के मन में उठता है.
हिमालय की गुफाएं है तपस्या का केंद्र
कई नागा साधु महाकुंभ के बाद हिमालय की गुफाओं और कंदराओं में चले जाते हैं. इन दुर्गम स्थानों को उन्होंने अपना आध्यात्मिक गृह बनाया होता है. यहां वे एकांत में रहकर कठोर तपस्या और ध्यान करते हैं. हिमालय की शांत और प्राकृतिक वातावरण उन्हें आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने में मदद करता है.
तीर्थ स्थल
कुछ नागा साधु काशी, हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन और प्रयागराज जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों पर निवास करते हैं. ये स्थान धार्मिक गतिविधियों के केंद्र होते हैं और यहां नागा साधुओं को अपने साथी साधुओं के साथ रहने और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने का अवसर मिलता है.
अखाड़े
नागा साधु अखाड़ों से जुड़े होते हैं. महाकुंभ के बाद वे अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाते हैं. अखाड़े में रहकर वे अन्य साधुओं के साथ मिलकर साधना करते हैं, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं.
जंगल और एकांत स्थान
कई नागा साधु जंगलों और अन्य एकांत स्थानों में जाकर तपस्या करते हैं. वे प्रकृति के करीब रहकर आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं. जंगल का शांत वातावरण उन्हें ध्यान और मनन के लिए एक आदर्श स्थान प्रदान करता है.
नागा साधुओं का जीवन बेहद सरल और अनुशासित होता है. वे भौतिक सुखों से दूर रहकर, भगवान शिव के प्रति समर्पित होकर, तपस्या और ध्यान में अपना समय व्यतीत करते हैं. वे भोजन और वस्त्र के मामले में बहुत संयमी होते हैं और प्रकृति से मिलने वाली चीजों पर ही निर्भर रहते हैं.