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RBI Credit Policy: RBI कल फिर ले सकता है ब्याज दरों में कटौती का फैसला, आम आदमी पर होगा बड़ा असर

RBI Credit Policy: भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank-RBI) आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) को रफ्तार देने के लिए नीतिगत दर में लगातार छठवीं बार कटौती कर सकता है.

Updated on: 04 Dec 2019, 03:22 PM

नई दिल्ली:

RBI Credit Policy 2019: भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank-RBI) आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) को रफ्तार देने के लिए नीतिगत दर में लगातार छठवीं बार कटौती कर सकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक विकास दर को आगे बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए RBI ब्याज दरों में कटौती कर सकती है. बता दें कि विनिर्माण गतिविधियों में गिरावट के कारण आर्थिक वृद्धि दर (GDP Growth Rate) लुढ़ककर 6 साल से ज्यादा के निचले स्तर 4.5 फीसदी पर आ गई है. गौरतलब है कि रिजर्व बैंक 2019 में अब तक पांच बार नीतिगत दरों में कटौती कर चुका है. मौद्रिक नीति की समीक्षा के लिए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक मंगलवार को शुरू हुई है.

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अबतक ब्याज दरों में कुल 1.35 फीसदी की कटौती
रिजर्व बैंक (Reserve Bank) की ओर से सुस्त पड़ती वृद्धि को रफ्तार देने और वित्तीय प्रणाली में धन उपलब्धता की स्थिति को बढ़ाने के लिए नीतिगत दर में कुल मिलाकर 1.35 फीसदी की कमी की जा चुकी है. मौजूदा समय में रेपो रेट 5.15 फीसदी, रिवर्स रेपो रेट 4.90 फीसदी, मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी रेट (MSFR) और बैंक रेट 5.65 फीसदी से घटाकर 5.40 फीसदी है.

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क्या होती है रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट
रेपो रेट (Repo Rate) वह दर होती है जिस दर पर रिजर्व बैंक (RBI) दूसरे व्यवसायिक बैंक को कर्ज देता है. व्यवसायिक बैंक रिजर्व बैंक से कर्ज लेकर अपने ग्राहकों को लोन ऑफर करते हैं. रेपो रेट कम होने से आपके लिए लोन की दरें भी कम होती हैं. वहीं रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को रिजर्व बैंक में जमा उनकी पूंजी पर ब्याज मिलता है.

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आम आदमी के ऊपर हो सकता है बड़ा असर
जानकारों के मुताबिक अगर रिजर्व बैंक (Reserve Bank-RBI) ब्याज दरों में कटौती करता है तो आम आदमी को काफी फायदा हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो आपकी लोन की EMI कम हो जाएगी.

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देश की जीडीपी 6 साल के निचले स्तर पर
देश की आर्थिक वृद्धि में गिरावट का सिलसिला जारी है. विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट और कृषि क्षेत्र में पिछले साल के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन से चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत पर रह गयी. यह छह साल का न्यूनतम स्तर है. एक साल पहले 2018-19 की इसी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत थी. वहीं चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 5 प्रतिशत थी. वित्त वर्ष 2019-20 की जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर का आंकड़ा 2012-13 की जनवरी-मार्च तिमाही के बाद से सबसे कम है. उस समय यह 4.3 प्रतिशत रही थी.