Bhima Koregaon Violence: महाराष्ट्र सरकार ने गुरुवार को भीमा कोरेगांव हिंसा में दर्ज कुल 649 मामलों में से 348 केस वापस ले लिया है. इसके अलावा, महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए 548 केसों में से 460 मामलों को भी वापस ले लिया है. वहीं नाणार में रिफाइनरी प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन करने वालों पर 5 मामलों में से 3 मामले वापस लिए गए हैं.
आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुणे की एक अदालत में दाखिल आरोपपत्र उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह आरोपियों के खिलाफ 'आरोपों' को देखना चाहती है.
पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को पुणे की विशेष अदालत में राज्य पुलिस द्वारा दाखिल आरोपपत्र आठ दिसंबर तक उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया. पीठ बंबई उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने मामले में जांच रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 90 दिन की समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया था.इससे पहले शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी. बंबई उच्च न्यायालय ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें पुलिस को आरोपियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट दायर करने के लिये अतिरिक्त समय दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस द्वारा भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किये गए पांच कार्यकर्ताओं के मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था और उनकी गिरफ्तारी के मामले में एसआईटी की नियुक्ति से इनकार कर दिया था. पुणे पुलिस ने जून में माओवादियों के साथ कथित संपर्कों को लेकर वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल निवासी रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया था.
Source : News Nation Bureau