केंद्रीय विश्वविद्यालय में फेफड़े के गंभीर रोग पर अपनी तरह का पहला शोध

केंद्रीय विश्वविद्यालय में फेफड़े के गंभीर रोग पर अपनी तरह का पहला शोध

केंद्रीय विश्वविद्यालय में फेफड़े के गंभीर रोग पर अपनी तरह का पहला शोध

author-image
IANS
New Update
Banara Hindu

(source : IANS)( Photo Credit : (source : IANS))

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान, के चिकित्सकों की एक टीम ने (फेफड़े) थोरेसिक एमपाइमा रोगियों पर सर्जरी के नतीजों के बारे में अपनी तरह का पहला शोध किया है। इस शोध में पाया गया कि जिन मामलों में सीईसीटी थोरेक्स में रोगी फेफड़े का अप्रभावित भाग 59 प्रतिशत या उससे अधिक था, उन मामलों में सर्जरी के बाद पूर्व अवस्था अथवा स्वस्थ स्थिति में लौटने की संभावना अच्छी है।

Advertisment

दरअस्ल, थोरेसिक एमपाइमा छाती के अन्दर पस यानि मवाद इकट्ठा होने की स्थिति को कहते हैं। ऐसा होने पर चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है और स्थिति गंभीर हो तो, सर्जरी करनी पड़ती है।

इस अध्ययन में एमपाइमा से पीड़ित रोगियों पर सर्जरी के परिणामों और सर्जरी से पहले उनके विभिन्न पैरामीटर (मानक) का तुलनात्मक अध्ययन किया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि ये पता लगाया जा सके कि जिन मामलों में सर्जरी लाभकारी नहीं है, उनके लिए पहले ही वैकल्पिक इलाज सुझाया जा सके।

बीएचयू के मुताबिक अध्ययन के दौरान ये पाया गया कि सर्जरी से पूर्व रोगी फेफड़े के अप्रभावित भाग एवं अन्य मानकों (झिल्ली व मवाद हटाने की प्रक्रिया का पूरा होना, सर्जरी से पूर्व फेफड़े में एयर लीक की उपस्थिति या अनुपस्थिति) से सर्जरी के नतीजे का पता लगाया जा सकता है।

अप्रभावित फेफड़े की मात्रा के बारे में सीईसीटी थोरैक्स (सीटी मोफोर्मेट्री - एमपाइमा, फेफड़ा, पाइमिक झिल्ली को मापने की प्रक्रिया) से पता लगाया जा सकता है। अध्ययन के दौरान ये पाया गया कि रोगी फेफड़े के अप्रभावित भाग ने फेफड़े का पूर्ण विस्तार 71 प्रति प्रतिशत संवेदनशीलता एवं 70 प्रतिशत विशिष्टता के साथ प्रदर्शित किया।

यह अध्ययन इंडियन जर्नल ऑफ थोरेसिक एंड कार्डियोवैस्क्युलर सर्जरी में प्रकाशित हुआ है।

बीएचयू का कहना है कि यह अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक इस तरह के सभी मामलों में सर्जरी की जाती थी, लेकिन यह शोध विशेष मामलों में वैकल्पिक इलाज सुझाता है।

यह शोध बीएचयू के कार्डियो थोरेसिक एंड वैस्क्युलर सर्जरी विभाग के प्रोफेसर सिद्धार्थ लखोटिया एव डॉ. नरेन्द्र नाथ तथा रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रो. आशीष वर्मा ने अक्टूबर 2016 से अगस्त 2018 के बीच किया।

इससे पहले पुराने व लाइलाज समझे जाने वाले घावों के उपचार की दिशा में भी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण शोध किया है। शोध में सामने आया है कि जो घाव महीनों से नहीं भरे थे वो चंद दिनों में ठीक हो गए। इस रिसर्च से मधुमेह रोगियों को खासतौर से होगा फायदा होगा। यह रिसर्च हाल ही अमेरिका में प्रकाशित हुई है।

सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू के प्रमुख प्रोफेसर गोपाल नाथ की अगुवाई में हुए इस शोध में अत्यंत उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। ये शोध अमेरिका के संघीय स्वास्थ्य विभाग के राष्ट्रीय जैवप्रौद्योगिकी सूचना केन्द्र में 5 जनवरी, 2022 को प्रकाशित हुआ है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Source : IANS

      
Advertisment