Mahesh Navami 2021: पूजा के बाद जरूर पढ़ें महेश नवमी की कथा, भगवान शिव की मिलेगी कृपा

आज यानि कि शनिवार को महेश नवमी का व्रत है. इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी मनाई जाती है.

आज यानि कि शनिवार को महेश नवमी का व्रत है. इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी मनाई जाती है.

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Vineeta Mandal
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Mahesh Navami 2021

Mahesh Navami 2021 ( Photo Credit : फाइल फोटो)

आज यानि कि शनिवार को महेश नवमी का व्रत है. इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी मनाई जाती है. मान्यताओं के मुताबिक, महेश नवमी के दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को मनाचाहा फल की प्राप्ति होती है. इसके साथ परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती हैं.  मान्यता है कि इसी दिन भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा से महेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी. इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी विशेष पूजा की जाती है.

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महेश नवमी का शुभ मुहूर्त

महेश नवमी तिथि- 19 जून 2021, शनिवार

ज्येष्ठ शुक्ल नवमी तिथि का प्रारंभ-18 जून 2021, शुक्रवार को रात्रि 08 बजकर 35 मिनट से.

नवमी तिथि का समापन- 19 जून 2021, शनिवार को शाम 04 बजकर 45 मिनट तक

महेश नवमी पूजा विधि

स्नान कर के साफ वस्त्र पहन लें. इसके बाद मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करें. अब महादेव का जलाभिषेक करें. भगवान शिव की प्रिय चीजों का भोग लगाएं, जैसे- बेलपत्र, धतूरा, गंगाजल, फूल और फूल आदि. इसके बाद शिव मंत्र. शिव चालीसा का पाठ करें. पूजा के बाद शिव आरती और महेश नवमी कथा जरुर पढ़ें.

महेश नवमी पौराणिक कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा थे जिनका नाम खडगलसेन था. प्रजा राजा से प्रसन्न थी. राजा व प्रजा धर्म के कार्यों में संलग्न थे, पर राजा को कोई संतान नहीं होने के कारण राजा दु:खी रहते थे. राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कामेष्टि यज्ञ करवाया. ऋषियों-मुनियों ने राजा को वीर व पराक्रमी पुत्र होने का आशीर्वाद दिया, लेकिन साथ में यह भी कहा 20 वर्ष तक उसे उत्तर दिशा में जाने से रोकना. नौवें माह प्रभु कृपा से पुत्र उत्पन्न हुआ. राजा ने धूमधाम से नामकरण संस्कार करवाया और उस पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा. वह वीर, तेजस्वी व समस्त विद्याओं में शीघ्र ही निपुण हो गया.

एक दिन एक जैन मुनि उस गांव में आए. उनके धर्मोपदेश से कुंवर सुजान बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली और प्रवास के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे. धीरे-धीरे लोगों की जैन धर्म में आस्था बढ़ने लगी. स्थान-स्थान पर जैन मंदिरों का निर्माण होने लगा.

एक दिन राजकुमार शिकार खेलने वन में गए और अचानक ही राजकुमार उत्तर दिशा की ओर जाने लगे. सैनिकों के मना करने पर भी वे नहीं माने. उत्तर दिशा में सूर्य कुंड के पास ऋषि यज्ञ कर रहे थे. वेद ध्वनि से वातावरण गुंजित हो रहा था. यह देख राजकुमार क्रोधित हुए और बोले- 'मुझे अंधरे में रखकर उत्तर दिशा में नहीं आने दिया' और उन्होंने सभी सैनिकों को भेजकर यज्ञ में विघ्न उत्पन्न किया. इस कारण ऋषियों ने क्रोधित होकर उनको श्राप दिया और वे सब पत्थरवत हो गए.

राजा ने यह सुनते ही प्राण त्याग दिए. उनकी रानियां सती हो गईं. राजकुमार सुजान की पत्नी चन्द्रावती सभी सैनिकों की पत्नियों को लेकर ऋषियों के पास गईं और क्षमा-याचना करने लगीं. ऋषियों ने कहा कि हमारा श्राप विफल नहीं हो सकता, पर भगवान भोलेनाथ व मां पार्वती की आराधना करो.

सभी ने सच्चे मन से भगवान की प्रार्थना की और भगवान महेश व मां पार्वती ने अखंड सौभाग्यवती व पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया. चन्द्रावती ने सारा वृत्तांत बताया और सबने मिलकर 72 सैनिकों को जीवित करने की प्रार्थना की. महेश भगवान पत्नियों की पूजा से प्रसन्न हुए और सबको जीवनदान दिया.
भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य धर्म को अपनाया. इसलिए आज भी 'माहेश्वरी समाज' के नाम से इसे जाना जाता है.

Source : News Nation Bureau

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