खाटू श्याम जी को क्यों कहते हैं 'हारे का सहारा', जानिए इसके पीछे का कारण

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू गांव में बना खाटू श्याम जी का मंदिर है. जहां रोज लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. वहीं खाटू बाबा हारे का सहारा कहा जाता है.

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू गांव में बना खाटू श्याम जी का मंदिर है. जहां रोज लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. वहीं खाटू बाबा हारे का सहारा कहा जाता है.

author-image
Nidhi Sharma
New Update
khatu shyam mandir

khatu shyam mandir

खाटू श्याम बाबा की महिमा हर किसी ने सुनी होगी और वहीं कई लोगों ने उनके दर्शन किए होंगे तो कुछ लोग उनके दर्शन करने की सोच रहे होंगे. खाटू बाबा के दर्शन करने के लिए हर रोज कई श्रद्धालु आते हैं. यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की उम्मीद और विश्वास का प्रतीक बन चुका है. यहां देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग दर्शन के लिए आते हैं. माना जाता है कि जो भक्त बाबा के मंदिर में हाजिरी लगाते हैं उनकी मनोकामना पूरी होती है. बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है. लेकिन काफी कम लोग इसके बारे में जानते होंगे. आइए आपको बताते है. 

कौन है खाटू श्याम जी

Advertisment

खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए लोग हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हैं, उनका वास्तविक नाम बर्बरीक था. वे महाभारत काल के एक महान योद्धा थे, जो पांडवों के भाई भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे. बचपन से ही उन्हें युद्ध कौशल में गहरी रुचि थी और उन्होंने तीन ऐसे बाण प्राप्त किए थे, जिनसे वे किसी भी युद्ध का अंत कुछ ही क्षणों में कर सकते थे.

श्रीकृष्ण ने मांगा शीश दान

बर्बरीक का सिद्धांत था कि वे हमेशा उस पक्ष का साथ देंगे जो युद्ध में हार रहा होगा. जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने वाला था, तब वे युद्धभूमि की ओर बढ़े. लेकिन जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण को इसकी जानकारी हुई, वे चिंतित हो उठे. श्रीकृष्ण जानते थे कि बर्बरीक का समर्थन जिस भी पक्ष को मिलेगा, उसकी जीत निश्चित हो जाएगी और युद्ध का संतुलन बिगड़ जाएगा. यही कारण था कि भगवान कृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक के पास पहुंचे और उनसे उनका शीश दान में मांग लिया.

‘हारे का सहारा’ क्यों कहते हैं 

बर्बरीक ने बिना झिझक अपने गुरु, धर्म और नीतियों का पालन करते हुए अपना शीश श्रीकृष्ण को दान कर दिया. उनके इस त्याग, निष्ठा और बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में वे अपने नाम से नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण के नाम 'श्याम' से पूजे जाएंगे. साथ ही वे हर उस व्यक्ति का सहारा बनेंगे, जो दुख में हो और जिसे कोई उम्मीद न हो. इसलिए उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाने लगा.

खाटू श्याम महिमा

खाटू श्याम जी के दरबार में जो भी सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है. भक्तों का यह विश्वास है कि श्याम बाबा केवल उन लोगों की नहीं सुनते जो सुख में होते हैं, बल्कि वे खासकर उन लोगों के साथ खड़े होते हैं जो संघर्ष में होते हैं, जो हार के कगार पर होते हैं. यही कारण है कि वे 'हारे का सहारा' कहलाते हैं. जिसका मतलब है जीवन की कठिन परिस्थितियों में एकमात्र उम्मीद का नाम.

Religion की ऐसी और खबरें पढ़ने के लिए आप न्यूज़ नेशन केधर्म-कर्मसेक्शन के साथ ऐसे ही जुड़े रहिए.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Haare ka sahara Khatu Shyam ji Haare ka sahara Khatu Shyam Ji Temple Khatu Shyam Ji Mandir Khatu Shyam Ji Religion News in Hindi
Advertisment