इस हिंदू मंदिर में मुस्लिम करते हैं पूजा, पहुंचने के लिए करने होते है ये बड़े तप

अक्सर हिंदू मंदिरों को तोड़े जाने की खबरें हर किसी ने सुनी होगी. लेकिन एक ऐसा शक्तिपीठ हैं जहां दुनियाभर से मुस्लिम लोग आकर दर्शन करते है.

अक्सर हिंदू मंदिरों को तोड़े जाने की खबरें हर किसी ने सुनी होगी. लेकिन एक ऐसा शक्तिपीठ हैं जहां दुनियाभर से मुस्लिम लोग आकर दर्शन करते है.

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Nidhi Sharma
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Hinglaj Shaktipeeth

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देश भले ही बंट जाए, लेकिन श्रद्धा, विश्वास और आस्था का बंटवारा नहीं हो सकता. यह कहानी पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित माँ हिंगलाज शक्तिपीठ की है. माता का यह सुंदर मंदिर हिन्दू-मुस्लिम के मन से भेदभाव मिटाकर आस्था को जन्म देता है. इस मंदिर में मां की एक झलक पाने के लिए भक्तों की लंबी कतारें लगी रहती हैं और खुद मुस्लिम लोग इस मंदिर की सुरक्षा और देखरेख करते हैं. इस शक्तिपीठ में दुनियाभर से मुस्लिम लोग आकर दर्शन करते है. इस अद्भुत शक्तिपीठ का नाम हिंगलाज मंदिर है. माता का यह सुंदर मंदिर हिन्दू-मुस्लिम के मन से भेदभाव मिटाकर आस्था को जन्म देता है. 

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कठिन यात्रा

हिंगलाज माता का मंदिर हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदाय के लोगोंं के लिए आस्था का केंद्र हैं.  इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां हिंदूओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी माता हिंगलाज के दर्शन और पूजा करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि हिंगलाज माता की यात्रा कश्मीर की अमरनाथ यात्रा से भी ज्यादा कठिन है.

नानी मंदिर

हिंगलाज मंदिर में हिंदू लोगों के साथ मुस्लिम लोगों की भी श्रद्धा बनी हुई है. इस मंदिर में कई बार पुजारी और सेवक नमाजी टोपी पहने नजर आते हैं, तो वहीं मुस्लिम पूजा करते दिख जाते हैं. बलूच और सिंध के मुस्लिम लोगों के अलावा पाकिस्तान,अफगानिस्तान, मिस्र और ईरान के मुस्लिम लोग भी हिंगलाज मंदिर को 'नानी मंदिर', 'नानी पीर' या 'नानी के हज' के तौर पर जानते और मानते हैं. इस मंदिर में आकर वो माता हिंगलाज को नानी के तौर पर लाल फूल, इस्त्र और अगरबत्ती चढ़ाकर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं. 

ये दो शपथ

मान्यता है कि हिंगलाज माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को यात्रा शुरू करने से पहले 2 शपथ लेनी पड़ती हैं. पहली शपथ में श्रद्धालुओं को माता के दर्शन करके वापस लौटने तक संन्यास लेना होता है. वहीं दूसरी शपथ में पूरी यात्रा में किसी दूसरे यात्री को अपनी सुराही का पानी नहीं पिलाना होता है. भले ही वो यात्री रास्ते में प्यास से तड़प कर मर क्यों ना जाए. माना जाता है कि ये दोनों शपथ हिंगलाज माता मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों की परीक्षा लेने की एक प्राचीन परंपरा है.

कैसे पड़ा नाम

हिंगलाज माता का नाम हिंगलाज कैसे पड़ा, इसको लेकर एक कहानी है. किवदंतियों के अनुसार, इस जगह पर सालों पहले हिंगोल नाम का एक राज हुआ करता था. जिसके राजा का नाम हंगोल था. हंगोल बहुत ही बहादुर और न्यायप्रिय राजा था. बावजूद इसके उसके दरबारी उसे पसंद नहीं करते थे. हंगोल के राज्य पर कब्जा करने के लिए मंत्री ने राजा को कई बुरी चीजों की लत लगा दी. जिससे परेशान राज्य के लोगों ने देवी हिगलाज से राजा को सुधारने की प्रार्थना की.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

 

 

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