The Accidental Prime Minister मूवी रिव्यू सबसे पहले यहां पढ़ें
विजय गुट्टे ने फिल्म का निर्देशन किया है जो ठीक-ठाक है. उसमे और बेहतर होने की गुंजाइश नज़र आती है.
नई दिल्ली:
साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रह चुके डॉ मनमोहन सिंह के पीएम बनने की घटना पर आधारित फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ आज रिलीज़ हो गई है. पूर्व पीएम के बेहद करीबी रहे संजय बारू की किताब 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' पर बनी है. जिस पर काफी विवाद हुआ, फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित है. इसलिए ज़्यादातर लोग इसकी कहानी से वाकिफ होंगे.
कहानी
फिल्म की शुरूआत होती है सोनिया गांधी (सुजैन बर्नेट) की अध्यक्षता में 2004 के चुनावों में कांग्रेस की जीत से. जहां एक तरफ सोनिया के सलाहकार उन्हें पीएम की कुर्सी संभालने के लिए कहते हैं वहीं दूसरी तरफ वे अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह के लिए पीएम की कुर्सी आगे कर देती हैं. बिल्कुल वहीं से संजय बारू के नजरिए से हमें दिखाया जाता है कि दरवाजे के पीछे आखिर क्या हुआ.. जहां पर दिखाया जाता है कि कैसे सोनिया गांधी और उनके चहेते सपोर्टर्स द्वारा 10 साल के UPA सरकार में मनमोहन सिंह को हर वक्त नीचा दिखाया जाता है. डॉ. मनमोहन सिंह संजय बारू (अक्षय खन्ना) को अपना मीडिया सलाहकार बनाते हैं. फिल्म में दिखाया गया है की कैसे मनमोहन सिंह को अपनी ही पार्टी से खूब संघर्ष करना पड़ता है. वो संघर्ष कैसा था यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
अभिनय
द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म में अभिनय की बात करे तो हर किरदार ने बखूबी किरदार निभाया है. फिर चाहे मनमोहन सिंह के किरदार में अनुपम खेर हों या फिर सोनिया गांधी के रोल में सुजैन बर्नर्ट. हर कलाकार ने असल किरदार को हुबहू कॉपी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. अनुपम खेर में मनमोहन सिंह के किरदार में खूब जचे हैं. प्रियंका गांधी के किरदार में अहाना कुमरा को एक या दो सीन ही मिले हैं. वहीं राहुल गांधी के किरदार में अर्जुन माथुर भी ठीक-ठाक लगे हैं. संजय बारू के किरदार में अक्षय खन्ना ने मानो जान फूंक दी हो. जिस तरह से वो पूरी स्टोरी बताते हैं उससे फिल्म को एक नया कलेेवर मिला है.
निर्देशन
विजय गुट्टे ने फिल्म का निर्देशन किया है जो ठीक-ठाक है. उसमे और बेहतर होने की गुंजाइश नज़र आती है. फिल्म में मनमोहन सिंह के लिए मानवीय भावना रखने के बजाए यहां भी मज़ाक बनाया गया है. जिससे ऑडिएंस उनके इमोशन्स से कनेक्ट नहीं हो सकी है. इस फिल्म में सभी कैरेक्टर्स सिर्फ हास्य चित्र मालूम होते हैं. वहीं एक नैरेटर के तौर पर अक्षय खन्ना टेलर्ड-सूट में काफी स्मार्ट लगे हैं. उनके चेहरे पर हमेशा रहने वाली चालाकी से भरी मुस्कुराहट कई बार ऑडिएंस को सोच में डाल देती है.
संगीत
फिल्म का संगीत बेहद कमज़ोर है. बैकग्राउंड स्कोर भी लुभाता नहीं है.
ये फिल्म उन लोगों के लिए खास तोहफा है जो राजनीति में खास दिलचस्पी रखते हैं. वही इस फिल्म की जान हैं अक्षय खन्ना.
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