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73 बट स्टिल यंग ड्रीम गर्ल, हेमा मालिनी के जन्मदिन पर विशेष

ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी आज 73 वर्ष की हो गई हैं, लेकिन आज भी दुनिया उनकी खूबसूरती की कायल है. 16 अक्टूबर 1948 को तमिलनाडु के अम्मनकुडी में हेमा का जन्म हुआ.

Updated on: 16 Oct 2021, 09:29 AM

highlights

  • मां ने हेमा का नाम जन्म देने से पहले ही सोच लिया था नाम
  • पिता नहीं चाहते थे धर्मेंद्र के साथ हेमा का प्यार परवान चढ़े
  • आज भी ड्रीम गर्ल के देश में हैं करोड़ों दीवाने

नई दिल्ली:

ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी आज 73 वर्ष की हो गई हैं, लेकिन आज भी दुनिया उनकी खूबसूरती की कायल है. 16 अक्टूबर 1948 को तमिलनाडु के अम्मनकुडी में हेमा का जन्म हुआ. उनकी माँ जया चक्रवर्ती एक अच्छी नृत्यांगना बनना चाहती थीं, लेकिन किसी कारणों से वह अपना सपना पूरा नही कर सकी. उन्होंने अपनी बेटी के लिए भी यही सपना देखा और अपनी बेटी हेमा को बचपन से नृत्य प्रशिक्षण दिलवाया. जया जी जब गर्भवती थी तब वे इस बात से इतना निश्चिंत थी कि उन्हें बेटी ही होगी इसके लिए उन्होंने पहले से ही अपनी बिटिया का नाम सोचकर रखा था कि वो अपनी बेटी का नाम हेमा मालिनी रखेंगी. उन्होंने अपने बैडरूम में माँ दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के चित्र दीवारों पर लगा रखे थे.

नृत्यांगना से अभिनेत्री बनने का सफर 
हेमा मालिनी की माँ एक फ़िल्म निर्माता थीं. बावजूद इसके हेमा को अपने शुरुआती दौर में कई बार निराशा हाथ लगी. उन्हें कई रिजेक्शन का सामना करना पड़ा. यहाँ तक कि एक तमिल निर्देशक ने उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर दिया था कि उनके अंदर एक स्टार बनने वाली बात नही है. कई संघर्षों के बाद 1968 में राजकपूर की फ़िल्म 'सपनों के सौदागर' में उन्हें ब्रेक मिला. फ़िल्म को वित्तीय सफलता हासिल नही हुई, लेकिन हेमा ने दर्शकों के दिल मे अपनी जगह बना ली थी.

पहली सफलता
हेमा मालिनी को पहली सफलता वर्ष 1971 में रिलीज हुई फिल्म 'जॉनी मेरा नाम' से हासिल हुई. इसमें उनके साथ उस दौर के सुपरस्टार अभिनेता देवानंद मुख्य भूमिका में थे. फिल्म में हेमा और देवानंद की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया. फलस्वरूप फिल्म सुपरहिट रही. हेमा मालिनी को प्रारंभिक सफलता दिलाने में निर्माता-निर्देशक रमेश सिप्पी की फिल्मों का बड़ा योगदान रहा. उन्हें पहला बड़ा ब्रेक रमेश की ही फिल्म 'अंदाज' 1971 से मिला. इसे महज संयोग कहा जाएगा कि निर्देशक के रूप में रमेश सिप्पी की यह पहली फिल्म थी. इस फिल्म में हेमा मालिनी ने राजेश खन्ना की प्रेयसी की भूमिका निभाई, जो उनकी मौत के बाद नितांत अकेली हो जाती है. अपने इस किरदार को हेमा मालिनी ने इतनी संजीदगी से निभाया कि दर्शक उस भूमिका को आज भी भूल नही पाए हैं. इसके बाद वर्ष 1972 में हेमा मालिनी को रमेश सिप्पी की ही फिल्म 'सीता और गीता' में काम करने का अवसर मिला. यह फ़िल्म उनके कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई. इस फिल्म की सफलता के बाद वह एक सुपरस्टार अभिनेत्री के रूप में सिनेमा जगत में सुमार हो गई. उन्हें इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
 
सन 1975 गोल्डन ईयर
यह साल हेमा के सिनेमा जगत में मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि इस साल उनकी' संन्यासी', 'धर्मात्मा', 'खूशबू', और 'प्रतिज्ञा' जैसी सुपरहिट फिल्में रिलीज हुई, जिसने हेमा मालिनी को एक सफल अदाकारा बना दिया.

पिता उनकी शूटिंग पर जाते थे साथ
उन दिनों हेमा मालिनी एक मशहूर अभिनेत्री बन चुकी थीं. रमेश सिप्पी की फ़िल्म 'शोले' की शूटिंग चल रही थी. अख़बारों और मैगज़ीन में हेमा और शादीशुदा बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र के आशिक़ी के किस्से जोरो पर थे. उनके पिता नहीं चाहते थे वे धर्मेंद्र से मिले. इन दोनों के बीच प्यार पनपे इसलिए वे हमेशा परिवार का कोई सदस्य हेमा के साथ छोड़ देते है और ज्यादातर तो वे खुद ही हेमा के शूटिंग के सेट पर मौजूद रहते थे. पर वो कहते है ना प्यार करने वालो को आज तक कोई जुदा नही कर पाया है. 'सीता और गीत', 'शोले' और 'ड्रीम गर्ल' जैसी फिल्मों में साथ काम करने के बाद साल 1980 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए. धर्मेंद्र ने अपना धर्म बदल कर हेमा से शादी की थी.

राजनीतिक जीवन में प्रवेश
1999 में उन्होंने विनोद खन्ना (भाजपा उम्मीदवार) के लिए गुरदासपुर पंजाब में प्रचार किया था. 2003 में उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के द्वारा राज्यसभा सदस्य के रूप में नामित किया गया. वह वर्ष 2003 से 2009 तक राज्यसभा की सदस्य रहीं. फरवरी 2004 में वह आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल हुईं. 2010 में वह भाजपा के महासचिव बनी. 2014 में आरएलडी के जयंत चौधरी को 3,30,743 मतों से हराने के बाद, वह मथुरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा की सदस्य बनीं. हेमा मालिनी वर्तमान में मथुरा (उत्तर प्रदेश) से भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा की सांसद हैं. सन 2000 में भारत सरकार ने उन्हें चौथे सर्वोच्च समान पद्मश्री से सम्मानित किया.