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स्वतंत्रता दिवस के दिन टीम इंडिया से 'आजाद' हुए धोनी, ऐसा था वनडे का शानदार सफर

भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेते हुए सभी को हैरान कर दिया है. इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपने पूरे करियर की एक शानदार वीडियो को साझा करते हुए धोनी ने संन्यास का ऐलान किया.

Updated on: 16 Aug 2020, 12:35 AM

नई दिल्ली:

भारतीय टीम (Team India) के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (Ms Dhoni) ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेते हुए सभी को हैरान कर दिया है. इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपने पूरे करियर की एक शानदार वीडियो को साझा करते हुए धोनी ने संन्यास का ऐलान किया. एमएस धोनी भारतीय टीम के सबसे सफल कप्तानों में से एक थे, लेकिन साथ में वो एक शानदार बल्लेबाज के रुप में विश्व के सर्वश्रेष्ठ फिनिशर भी थे. खैर, धोनी ने अब संन्यास ले लिया है लेकिन माही ने टीम इंडिया के लिए पहली सीढ़ी कैसे चढ़ी ये आपको बताते हैं.

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भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का जन्म 7 जुलाई 1981 को रांची में हुआ. धोनी को पहले फुटबॉल में दिलचस्पी थी लेकिन जब किसी कारण स्कूल का विकेटकीपर नहीं था तब फुटबॉल में गोलकीपिंग कर रहे धोनी को क्रिकेट के लिए विकेटकीपिंग का मौका दिया गया. बचपन से शानदार क्रिकेट खेलने वाले धोनी की जिंदगी तब बदली जब उन्हें 1999-2000 कूच बिहार ट्रॅाफी खेलने का मौका मिला. इस दौरान माही ने 84 रनों की ताब़ड़तोड़ पारी खेली. जिसके बाद धोनी लगातार घरेलू क्रिकेट खेलते रहे और रनों का अंबार लगाते रहे लेकिन कभी उन्हें टीम इंडिया के लिए मौका नहीं मिला.

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भारतीय टीम में खेलने की लगन ने उन्हें खड़गपुर स्टेशन तक पहुंचा दिया जहां उन्होंने रेलवे कलेक्टर की नौकरी भी की लेकिन क्रिकेट से दूर धोनी अपनी रेलवे की जॉब को वक्त नहीं दे पाए और किसी तरह वहां से घर वापस आए. बता दें कि बीसीसीआई ने उन दिनों एक प्रोग्राम शुरू किया था, जिसका नाम था ट्रेनिंग रिसर्च डेवलपमेंट विंग था उसकी बदौलत धोनी को 2004 में इंडिया-ए के लिए कैन्या के खिलाफ मौका मिला. ये इसलिए क्योंकि धोनी का रिकॉर्ड का घरेलू क्रिकेट में अच्छा था. एंडिया ए के लिए खेलते लिए हुए धोनी ने शानदार प्रदर्शन किया और टीम इंडिया के लिए सौरव गांगुली की कप्तानी में डेब्यू कर दिखाया.

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महेंद्र सिंह धोनी को 2004 में बांग्लादेश के खिलाफ पहली बार टीम इंडिया की ऑफिशियल नीली जर्सी पहने का मौका मिला. हालांकि वो शून्य पर आउट हुए और स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया, लेकिन किसी को क्या पता था कि पहले मैच में बिना खाते खोलने वाले धोनी का शोर विश्व क्रिकेट में ऐसा गुंजेंगा जो किसी ने नहीं सोचा था. शुरुआती सीरीज भले ही माही के लिए अच्छी नहीं रही हो, लेकिन पहली सीरीज के बाद जो तूफान आने वाला था उसकी कल्पना शायद की किसी ना की हो.

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अंतर्राषट्रीय क्रिकेट में अच्छी शुरूआत ना होने के बाद भी उस वक्त टीम इंडिया के कप्तान सौरव गांगुली ने पाकिस्तान के खिलाफ धोनी को तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी करने को भेजा. उसके बाद जो हुआ उसका गवाह धोनी का हर फैंस है. उस पारी में धोनी ने 123 गेंदों का सामना करते हुए 148 रनों की अहम पारी खेल अपना सिक्का जमाया और बता दिया कि भारतीय टीम को एक विकेटकीपर बल्लेबाज मिल गया है जो लंबी पारी और मैच का रुख बदलने का मद्दा रखता है.

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फिर क्या था , धोनी का बल्ला बोलता रहा, धोनी धीरे-धीरे अपनी साख विश्व क्रिकेट में जमाते रहे. इसी दौरान श्रीलंका के खिलाफ धोनी की एक पारी ने उन्हें विश्व का वो विकेटकीपर बना दिया जिसने वनडे में सर्वाधिक स्कोर बनाया. धोनी ने श्रीलंका के खिलाफ राजकोट में खेले गए 31 अक्टूबर साल 2005 के वनडे मुकाबले में 145 गेंदों का सामना करते हुए 183 रन जड़ डाले. धोनी ने इसके बाद पाकिस्तान की सरजमीं पर वनडे में बेहतरीन प्रदर्शन किया और भारतीय क्रिकेट को महसूस हो गया था कि वनडे के लिए एक फिनिशर मिल गया है.

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हालांकि 2007 विश्वकप में धोनी का बल्ला खामोश रहा और टीम इंडिया को विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा. माही ने हार नहीं मानी और अगले मिशन के लिए आगे बढ़ते रहे. बारी 2007 में हुए पहेल टी-20 वर्ल्ड कप की थी. 2007 टी-20 विश्वकप में जहां दिग्गज क्रिकेटर ने इस फॅार्मेट में खेलने से मना किया उसके बाद यंग एम एस धोनी को कप्तानी सौंपी गई. नतीजा टीम इंडिया माही की कप्तानी में पहले टी-20 विश्व कप को जीतने में सफल रही. जिसके बाद धोनी बस कामयबी को अपने नाम करते रहे, वनडे की कैप्टंसी मिली तो ऑस्ट्रेलिया में सीबी सीरीज को अपने नाम किया जिसके बाद कई सीरीज आई और टीम इंडिया धोनी की कप्तानी में जीत दर्ज करती रही.

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साल 2011, धोनी और टीम इंडिया के लिए अहम था क्योंकि 1996 के बाद वर्ल्ड कप का आयोजन भारत में हो रहा था. धोनी पर सभी की निगाहें थी क्योंकि क्रिकेट को यहां धर्म माना जाता है लेकिन धोनी ने वो कर दिखाया जो पिछले 28 सालों में किसी भारतीय कप्तान ने नहीं किया था. एम एस धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने दूसरा वनडे वर्ल्ड कप जीता.

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धोनी ने विश्व कप जीतने के बाद काफी सालों तक कप्तानी भी की, धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने इंग्लैंड में हुई चैंपियंस ट्रॉफी को जीता. धोनी, भारत ही नहीं बल्कि विश्व के पहले कप्तान बने जिन्होंने आईसीसी के तीन बड़े खिताबों को अपने नाम किया. धोनी ने टीम इंडिया की कप्तानी को साल 2017 में छोड़ने का फैसला किया, जिससे लाखों फैंस का दिल तो टूटा लेकिन धोनी जानते थे कि ये निर्णय टीम के लिए कितना अहम है.

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धोनी टीम इंडिया के लिए खेलते रहे लेकिन कप्तानी विराट कोहली के पास थी. आखिरी बार एम एस धोनी को साल 2019 विश्व कप में न्यूजीलैंड के खिलाफ नीली जर्सी में देखा गया था. धोनी ने वनडे में 200 मैच में कप्तानी की जिसमें 110 में जीत जबकि 74 मैच में हार का सामना करना पड़ा. धोनी टेस्ट से पहले ही संन्यास ले लिया था. माही ने वनडे में 350 मैच में 50.57 की औसत से 10773 रन बनाए जिसमें 10 शतक शामिल है. फैंस को उम्मीद थी की माही आईपीएल 2020 के जरिए टीम इंडिया में वापसी करेंगे लेकिन भारत के 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर टीम इंडिया के बेमिसाल खिलाड़ी और प्रखर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने क्रिकेट से आजाद होने का फैसला किया. धोनी का योगदाग भारतीय क्रिकेट में बहुमूल्य हैं जिसको हमेशा याद किया जाएगा.