पाकिस्तान की घातक बाढ़ में छिपे हैं बढ़ती गर्मी के संकेत, समझें और संभले
विनाशकारी बाढ़ की विभीषिका झेल रहे पाकिस्तान को लेकर विज्ञानी और अधिकारियों का यह कहना असंगत नहीं लगता कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कारकों में इस गरीब देश का योगदान बेहद कम है, फिर भी वह भयंकर तबाही झेल रहा है.
highlights
- जलवायु परिवर्तन में बहुत कम योगदान पाकिस्तान का, फिर भी झेल रहा तबाही
- इस मॉनसून अब तक औसत से 780 फीसदी अधिक बरसात पाकिस्तान में हुई है
- जलवायु परिवर्तन के अलावा पिघलते ग्लेशियर भी फ्लैश फ्लड्स के जिम्मेदार
नई दिल्ली:
वैश्विक स्तर पर बढ़ती गर्मी के संकेत देते सभी कारण हमारी आंखों के सामने हैं... तापमान तेजी से बढ़ रहा है, हवा गर्म हो रही है जिसमें नमी की मात्रा ज्यादा है, मौसम की अति को सामने लाती घटनाएं चहुंओर बढ़ रही हैं, ग्लेशियर (Glaciers) पिघल रहे हैं, लोग गरीबी समेत खतरनाक स्थितियों में रह रहे हैं. इन सभी कारणों ने पाकिस्तान (Pakistan) को अपनी चपेट में ले लिया है, जहां बेमौसम बारिश और भयंकर बाढ़ ने तबाही मचा रखी है. पाकिस्तान की विनाशकारी बाढ़ में वह सभी संकेत छिपे हैं जिसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहीं भी तबाही में बदल सकती है. हालांकि कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को इस विनाशकारी बाढ़ (Pakistan Floods) के लिए जिम्मेदार बताना अभी जल्दबाजी होगी. इस बारे में उनका तर्क है कि तबाही उस देश में मच रही है, जिसने तापमान बढ़ाने में बेहद कम योगदान दिया है, लेकिन उसे लगातार बारिश रूपी भीषण प्राकृतिक मार का सामना करना पड़ रहा है.
इस मॉनसून औसत से 780 फीसदी अधिक बारिश हुई पाकिस्तान में
पाकिस्तान की जलवायु परिवर्तन समिति के सदस्य और सस्टेनेबेल डेवलपमेंट पॉलिसी इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक आबिद क्यूम सुलेरी कहते हैं, 'बीते तीन दशकों में पाकिस्तान में इस साल सबसे ज्यादा बारिश हुई है. अब तक औसत से 780 फीसदी अधिक बरसात पाकिस्तान में हो चुकी है.' जलवायु मंत्री शैरी रहमान भी कहती हैं, 'क्षेत्रीय स्तर पर मौसम की अति सामने लाती घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं और पाकिस्तान भी इनकी विभीषिका झेलने के लिहाज से अपवाद नहीं है. पाकिस्तान में बाढ़ की विभीषिका कई मामलों में अभूतपूर्व तबाही कही जाएगी.' लाहौर स्थित इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के मैसम विज्ञानी मोशिन हफीज कहते हैं, 'जलवायु परिवर्तन के प्रति पाकिस्तान को सबसे संवेदनशील देश बतौर आठवें पायदान पर है.' वैज्ञानिक लगातार चेतावनी देते आए हैं कि पाकिस्तान की बारिश, गर्मी और पिघलते ग्लेशियर सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हैं.
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पाकिस्तान में बाढ़ के तेज सैलाब से 20 बांध टूटे
एक तरफ मौसम विज्ञानी इन संकेतों को जलवायु परिवर्तन से जुड़ा बता रहे हैं. दूसरी तरफ उन्होंने अभी तक उस जटिल गणना को भी पूरा नहीं किया है, जो तुलनात्मक रूप से बता सके कि जो पाकिस्तान झेल रहा वह बगैर गर्मी के अन्य वैश्विक स्थितियों में क्या और कितना कहर ढा सकता है. हालांकि इस बारे में तुलनात्मक अध्ययन आने वाले कुछ हफ्तों में दुनिया के सामने होगा. इसके जरिये यह पता चल सकेगा कि पाकिस्तान में बाढ़ की विभीषिका के लिए यदि जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है, तो कितना है. शैरी रहमान कहती हैं, 'मॉनसून की बारिश भी रुक-रुक कर होती है. कम से कम 37.5 सेमी बरसात एक दिन में तो नहीं ही होती, जो बीते तीन दशकों में राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक है. इसके साथ ही तेज बरसात की दौर इतना लंबा भी नहीं खिंचता. अब तक भारी बरसात की मार सहते पाकिस्तान को आठ हफ्ते हो चुके हैं और सितंबर में एक और दौर की आशंका जताई गई है.' मैसाचुसेट्स की वुडवेल क्लाइमेट रिसर्च सेंटर की जेनिफर फ्रांसिस भी इस जलवायु परिवर्तन की देन बताती हैं. बलूचिस्तान और सिंध में औसत बारिश में 400 गुना की वृद्धि दर्ज की गई है, जिसकी वजह से बाढ़ ने तबाही मचाई. कम से कम 20 बांध पानी के तेज सैलाब से टुट चुके हैं.
गर्मी से हवा में बढ़ी नमी भी ला रही पानी का सैलाब
सिर्फ भारी और लगातार बारिश ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान को गर्मी भी झुलसा रही है. मई में पाकिस्तान का पारा लगातार 45 डिग्री के ऊपर रहा है. जकोकाबाद और दाड़ू के कुछ इलाकों में तापमान 50 डिग्री से ऊपर नापा गया. गर्म हवा में नमी की मात्रा भी अधिक होती है. मसलन एक डिग्री तापमान बढ़ने पर नमी की मात्रा में 7 फीसदी का इजाफा होता है और वह बारिश के रूप में सामने आती है. इस बार वह लगातार और भारी बरसात के रूप में सामने है. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी माइकल ओपनहीमर कहते हैं, 'सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं पूरे विश्व में तेज बारिश के तूफान और तेज हो रहे हैं. पाकिस्तान में जिस तरह की पर्वत श्रृंखला है, उनके संपर्क में आते ही बादलों में अतिरिक्त नमी पानी में बदल धरती को भिगोने लगती है.'
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पिघलते ग्लेशियर भी ला रहे तबाही
अतिरिक्त और भारी बरसात से ही नदियों में बाढ़ नहीं आई है. पाकिस्तान की फ्लैश फ्लड्स की घटनाओं को एक और कारण ने हवा दी हुई है. प्रचंड गर्मी से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी तेज हो गई है. फिर हिमालय से पाकिस्तान तक पानी पहुंचने की गति धीमी हो जाती है. इसे हिमनदी झील का फटना भी कहते हैं, जिससे बाढ़ और विनाशकारी हो जाती है. शैरी रहमान भी इससे इत्तेफाक रखते हुए कहती हैं, 'ध्रुवीय क्षेत्रों से बाहर पाकिस्तान के आसपास सबसे ज्यादा ग्लेशियर हैं और इसका प्रभाव भी हम पर पड़ रहा है. भावी पीढ़ियों के लिए इन ग्लेशियरों की यथास्थिति और अप्रतिम सुंदरता को बनाए रखने के बजाय हम इन्हें पिघलते हुए देख रहे हैं.'
सारी समस्या की जड़ जलवायु परिवर्तन नहीं
जलवायु परिवर्तन समिति के आबिद क्यूम सुलेरी कहते हैं, 'पाकिस्तान ने 2010 में भी इसी तरह बाढ़ की विभीषिका और तबाही देखी थी, जब 2 हजार से अधिक लोग मारे गए थे. इसके बावजूद सरकार उन योजनाओं और नीतियों को लागू नहीं कर सकी, जो बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों या सूखी नदियों में भवन निर्माण को रोक सकते.' मौसम विज्ञानी और स्थानीय अधिकारी भी मानते हैं कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कारकों में इस गरीब देश का योगदान बेहद कम है, फिर भी वह भयंकर तबाही झेल रहा है. 1959 से गर्मी बढ़ाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड का पाकिस्तान ने महज 0.4 फीसदी उत्सर्जन किया है. इसकी तुलना में अमेरिका 21.5 फीसदी और चीन 16.4 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है. शैरी रहमान भी कहती हैं, 'ऐसे देश जो जीवाश्म ईंधन के बल पर विकसित या समृद्ध हुए हैं, असल में समस्या की जड़ हैं. अब दुनिया ऐसी विभीषिका के लिहाज से महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुकी है, तो इन देशों को ही कठिन निर्णय लेने होंगे. हम अपनी भौगोलिक स्थितियों के कारण उनसे पहले उस मुहाने पर पहुंच चुके हैं.'
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