Sambal Temples: उत्तर प्रदेश के संभल में मिले प्राचीन हिंदू मंदिरों की देशभर में चर्चा हो रही है. संभल के बाद वाराणसी में मिले मंदिर के बाद इस मुद्दे को और बल मिला है. संभल में मिले प्राचीन मंदिर के कपाट जब 46 साल खुले तो कई रहस्यों का पर्दा उठ गया. इस मंदिर को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में 1978 के दंगों का जिक्र किया. तब क्या हुआ था और उसका मंदिर से क्या है कनेक्शन. 1978 के दंगों को लेकर ऐसा खौफनाक सच सामने आया, जिसे जानकर आपकी रूप कांप जाएगी.
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1978 के दंगों के सच का पर्दाफाश?
संभल के खग्गू सराय में बने शिव मंदिर में पूजा-पाठ शुरु हो गया है. मंदिर में शिवलिंग, हनुमान जी और नंदी की मूर्ति मिली है. 46 साल तक ये मंदिर बंद पडा रहा. आखिर 46 साल पहले ऐसा क्या हुआ कि मंदिर बंद हो गया. बात साल 1978 की है. संभल के खग्गू सराय इलाके में 29 मार्च 1978 को दंगा भडका था. दंगा कई दिनों तक चला था और करीब दो महीने तक शहर में कर्फ्यू लगा रहा. दंगों में कुल 184 लोगों की जान चली गई थी. इसके बाद हिंदुओं में ऐसा खौफ व्याप्त हुआ कि वे अपने घर मकानों को छोड़कर चले गए.
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दहलाने वाला था 1978 का दंगा
यूपी विधानसभा में जब सीएम योगी ने 1978 में हुए इस दंगे के काले अध्याय का खुलासा किया और इसकी भयावहता बताई तो रोंगटे खडे हो गए. 1978 का दंगा दहलाना वाला था. दावा किया जाता है कि जिस इलाके में मंदिर मिला है, वहां पहले बड़ी संख्या में हिंदू परिवार रहते थे. दंगे की दहशत और भय के माहौल में हिंदू पलायन करने को मजबूर हो गए. इसके बाद इस इलाके में लगातार हिंदुओं की संख्या कम होती चली गई.
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तो इसलिए सालों से बंद था मंदिर
1978 के दंगों के चश्मदीद 82 साल के विष्णु शरण रस्तोगी बताते हैं कि संभल के खग्गू सराय में करीब 40 से 45 रस्तोगी परिवार रहते थे, जिनके घर और दुकानें इस इलाके में थीं. दंगाईयों ने घर और दुकानों को जला दिया. विष्णु शरण की दुकान भी यहां थी जिसे दंगाईयों ने फूंक दिया. मंदिर के आसपास का इलाका मुस्लिम बहुल था, इसलिए वहां रहने वाले हिंदू परिवारों ने अपनी जान बचाना मुनाशिब समझा.
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दहशत और डर से सभी अपना घरबार छोड़कर पलायन कर गए. मंदिर भी बंद करके लोग चले गए. आज भी जब संभल के इस इलाके में रहने वाले हिंदू साल 1978 में हुए दंगों की याद करते हैं तो सिहर उठते हैं. चश्मदीद बताते हैं कि दंगाईयों ने जमकर कत्लेआम मचाया था. संभल में मंदिर खुलने के बाद भले ही हिंदू परिवारों में उत्साह है, लेकिन 46 साल पहले दंगों का जो जख्म हिंदू परिवारों को मिला और उन्होंने इसे झेला. शायद वो कभी ना भर पाए.
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