Nafithromycin: भारत लगातार कीर्तिमान रच रहा है. भारत ने अपनी पहली देसी एंटीबायोटिक बना ली है. इस दवा का नाम नैफिथ्रोमाइसिन (Nafithromycin) है. इस दवा पर 14 साल शोध किया गया था. 500 करोड़ रुपये खर्च किया गया और अब ये दवा बाजार में आने को तैयार है. भारत और उसके वैज्ञानिक लगातार नए नए कीर्तिमान रच रहे हैं. इस बार भारत ने दवाइयों के क्षेत्र में ऐसा कारनामा किया है, जिससे पूरी दुनिया भारत के वैज्ञानिकों को सलाम कर रही है.
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खत्म हुआ दवा का ट्रायल
नैफिथ्रोमाइसिन दवा का क्लीनिकल ट्रायल खत्म हो गया है. नैफिथ्रोमाइसिन के क्लिनिकल ट्रायल भारत, अमेरिका और यूरोप में किए गए, जिनमें इस दवा को एजिथ्रोमाइसिन से 10 गुना अधिक प्रभावी पाया गया. इसके 96.7 फीसदी तक के क्लिनिकल क्योर, रेट न्यूनतम साइड इफेक्ट्स और भोजन के साथ या बिना लेने की सुविधा इसे और भी उपयोगी बनाती है. इस दवाई के बारे में दावा किया जा रहा है कि ये azithromycin से कहीं ज्यादा बेहतर है.
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किस इलाज में होगी यूज
नैफिथ्रोमाइसिन एक अर्ध-सिंथेटिक मैक्रोलाइड एंटीबायोटिक है, जो दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया से लड़ने के लिए विकसित किया गया है. ये खासतौर पर वयस्कों में कम्युनिटी-अक्वायर्ड बैक्टीरियल निमोनिया के इलाज के लिए तैयार किया गया है. इसकी खासियत है कि इसे केवल तीन दिनों तक दिन में एक बार लिया जाता है. ये दवा फेफड़ों में लंबे समय तक बनी रहती है, जिससे इसका असर तेज और प्रभावी होता है.
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जल्द ही मार्केट में मिलेगी
नैफिथ्रोमाइसिन दवाई जल्द ही मार्केट में मिलने लगेगी. इसे मुंबई स्थित फार्मास्युटिकल कंपनी ने बनाया है. जानकारों का मानना है कि नैफिथ्रोमाइसिन दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों के इलाज में क्रांति ला सकती है. हालांकि इसका जिम्मेदारी से इस्तेमाल जरूरी है, ताकि भविष्य में इसके प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित न हो. चूंकि यह मेड-इन-इंडिया दवा है, लिहाजा ये किफायती और आसानी से उपलब्ध होगी. एंटीबायोटिक उन लाखों मरीजों के लिए राहत लेकर आएगी जो मौजूदा दवाओं से कोई फायदा नहीं उठा पा रहे.
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