Bihar Politics: बिहार की सियासत में बड़ा उलटफेर हुआ है. केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का नया गवर्नर बनाया गया है. वे राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर की जगह लेंगे. वहीं, आर्लेकर को केरल का राज्यपाल बनाया गया है. आरिफ मोहम्मद खान अक्सर ही अपने बयानों के लिए सुर्खियों में रहते हैं. उनको मुस्लिम समाज का प्रगतिशील चेहरा बताया जाता है. वे हिंदुत्व को इस देश का मूल आधार बताते हैं. ऐसे में बिहार में हुए इस बड़े बदलाव के पीछे की सियासी रणनीति को समझने की कोशिश करते हैं.
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26 साल बाद बिहार में मुस्लिम राज्यपाल
आरिफ मोहम्मद खान के रूप में बिहार को 26 साल बाद मुस्लिम राज्यपाल मिला है. इससे पहले एआर किदवई 1998 तक बिहार के राज्यपाल थे. हालांकि, अब मुस्लिम चेहरे के बिहार का राज्यपाल बनाए जाने के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. यही वजह है कि खुल कर राष्ट्रवाद का समर्थन करने वाले आरिफ मोहम्मद खान को लेकर बिहार की सियासत गरमाई हुई है. बीजेपी और जेडीयू आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनाए जाने का स्वागत कर रही है. वहीं, आरजेडी विरोध कर रही है.
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बिहार के राज्यपाल आरिफ, सियासी मायने
आरिफ मोहम्मद खान को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट का कहना है कि एक तो वो मुस्लिम चेहरे हैं और दूसरा उनकी छवि राष्ट्रवादी नेता की है. उनका बिहार का राज्यपाल बनना यूहीं नहीं हो सकता है. ये प्रदेश में न सिर्फ बीजेपी के विस्तार के लिए बेहतर रणनीति हो सकती है या फिर एनडीए के सहयोगी दलों जेडीयू और एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी की राह को आसान बनाना भी.
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बीजेपी के साथ होने से मुस्लिमों के बीच जेडीयू की छवि को लेकर वे असहज दिखते हैं. जेडीयू नेता भी कहते सुनाई पड़ते हैं कि मुस्लिम उन्हें वोट नहीं करते. इस स्थिति को समझते हुए एनडीए सरकार ने आरिफ मोहम्मद को बिहार को गवर्नर बनाने का दांव चला है. इससे प्रदेश में जेडीयू की राह आसान होगी, क्योंकि प्रगतिशील मुसलमानों के बीच ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि मुस्लमानों के सच्चा हिमायती बीजेपी और जेडीयू गठबंधन ही है. वहीं, आरजेडी के विरोध की वजह भी यही मुस्लिम वोटर्स हैं.
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