Naga Sadhu: शिव भक्त नागा साधु अमृत स्नान से पहले अपने शरीर पर भस्म का लेप करते हैं. इसे हिंदू धर्म में धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है. भस्म को भभूत और राख भी कहा जाता है. सनातन धर्म में भस्म का लेप सांसारिक मोह-माया से दूर रहने और वैराग्य का प्रतीक माना गया है. ऐसा माना जाता है कि इससे उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्त होने की प्रेरणा मिलती है.
नागा साधु भगवान शिव के परम भक्त होते हैं जो स्वयं भस्म रमाते हैं. इसलिए वे शिव की भक्ति में लीन रहने के लिए भस्म का उपयोग करते हैं. इसके वैज्ञानिक कारण की बात करें तो भस्म में ऐसे तत्व होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को नष्ट करते हैं जिससे त्वचा संक्रमण से बचाव होता है. भस्म शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है, जिससे साधु ठंड या गर्मी से प्रभावित नहीं होते. आप आसान भाषा में इसे ये भी कह सकते हैं कि भस्म शरीर पर एक इंसुलेटर का काम करती है.
भस्म बनाने की प्रक्रिया
भस्म तैयार करने के लिए हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला और गाय के गोबर को जलाया जाता है. इस राख को छानकर कच्चे दूध में लड्डू बनाया जाता है. इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है. इस प्रकार तैयार भस्म को नागा साधु अपने शरीर पर लगाते हैं.
इन दिनों प्रयागराज में सभी अखाड़ों ने अपना डेरा जमा रखा है. सनातन धर्म के रक्षक कह जाने वाले ये नागा साधु महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन के दौरान ही नजर आते हैं इसके बाद ये अपनी साधनाओं के लिए किसी अज्ञात वास में चले जाते हैं या अपने अखाड़ों के अंदर रहकर ही तपस्या करते हैं. अखाड़े हिंदू धर्म में सदियों से चले आ रहे हैं और इनका इतिहास काफी समृद्ध है. नागा साधु संन्यासी अखाड़ों से जुड़े साधु होते हैं जो शिव भक्ति के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के लिए कठोर तपस्या करते हैं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)/
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