Mahakumbh 2025 Rabri Baba: महाकुंभ में एक अनोखी सेवा इन दिनों तेजी से इंटरनेट पर वायरल हो रही है. 'रबड़ी वाले बाबा' के नाम से प्रसिद्ध श्री महंत देव गिरि महाराज प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को अपने हाथों से बनी रबड़ी का प्रसाद वितरित कर रहे हैं. उनकी ये सेवा भावना महाकुंभ में आध्यात्मिक मिठास घोल रही है. प्रयागराज में आयोजित विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेले में श्री महंत देव गिरि महाराज जी छाएं हुए हैं. श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र बने ये बाबा उनसे मिलने आए हर भक्त को बिठाकर रबड़ी खिलाते हैं. वे प्रतिदिन लगभग 130 लीटर दूध से रबड़ी तैयार करते हैं और हजारों भक्तों को इसे प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं.
रबड़ी बनाने की प्रक्रिया
रबड़ी बनाने की यह प्रक्रिया सुबह से शाम तक चलती है जिसमें बाबा स्वयं शामिल होते हैं. वे स्वयं दूध को उबालते हैं चीनी मिलाते हैं और घंटों तक चम्मच चलाते रहते हैं ताकि रबड़ी गाढ़ी और स्वादिष्ट बने. बाबा का मानना है कि प्रसाद वितरण में सभी को समान रूप से भागीदारी मिलनी चाहिए इसलिए वे बिना किसी भेदभाव के सभी को रबड़ी का प्रसाद प्रदान करते हैं.
आध्यात्मिक संतुष्टि का स्रोत
श्री महंत देव गिरि महाराज (Shri Mahant Dev Giri Maharaj) महाकाली के उपासक हैं और उनका कहना है कि रबड़ी वितरण से उन्हें आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है. वे मानते हैं कि सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है और रबड़ी बनाकर और वितरित करके वे भगवती महाकाली की सेवा कर रहे हैं. उनके शिविर में दिनभर भक्तों की भीड़ लगी रहती है जो उनके हाथों से बनी रबड़ी का आनंद लेते हैं.
बाबा का ये सेवा भाव महाकुंभ में एक अनोखी मिसाल पेश करता है और श्रद्धालुओं के बीच उनकी लोकप्रियता का कारण है. महाकुंभ में रबड़ी का विशेष महत्व है. यह न केवल एक मिठाई है बल्कि एक प्रसाद भी है. रबड़ी को भगवान शिव को चढ़ाया जाता है और माना जाता है कि इसे खाने से मन शांत होता है और आशीर्वाद प्राप्त होता है. रबड़ी वाले बाबा का यह समर्पण और सेवा भाव महाकुंभ के आध्यात्मिक माहौल में मिठास घोल रहा है.
महाकुंभ 2025 में रबड़ी वाले बाबा (Rabri Baba) के नाम से प्रसिद्ध हुए श्री महंत देवगिरी जी महाराज की कहानी बेहद दिलचस्प है. गुजराज से प्रयागराज आए इन बाबा ने जहां ढेरा जमाया है वहां उनके बोर्ड पर ये खास लाइन लिखी है- "राबड़ी ने मचा दी धूम, श्री महंत रबड़ी वाले" रबड़ी अब केवल एक मिठाई नहीं रह गई है बल्कि एक ब्रांड बन चुकी है. ये नारा लोगों के मन में एक छाप छोड़ता है और उन्हें बाबा के शिविर की ओर आकर्षित करता है.
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