जम्मू-कश्मीर में मोदी 2.0 सरकार का रंग लाने लगा प्लान, बीजेपी से जुड़ रहे पीडीपी-एनसी नेता
इसे बीजेपी का राजनीतिक कौशल ही कहेंगे कि पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के बड़े नेताओं की नामौजूदगी के बीच इन पार्टियों से जुड़े पंचायत सदस्य ब्लॉक डेवलपमेंट कॉउंसिल (बीडीसी) चुनाव से पहले बीजेपी से जुड़ना शुरू हो गए
highlights
- बड़े नेताओं की नजरबंदी से पीडीपी, एनसी और कांग्रेस पार्टी में मची भगदड़.
- बीडीसी चुनाव में थाम रहे बीजेपी का दामन. देंगे पार्टी प्रत्याशी को समर्थन.
- पुलवामा और शोपियां में 90 फीसदी से अधिक सीटें हैं खाली.
नई दिल्ली:
मोदी 2.0 सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए हटाने की योजना बेहद दूरदृष्टि के साथ तैयार की थी, जिसके रंग अब सामने लगे हैं. राज्य में शांति प्रयासों की बहाली के प्रयास तेज कर दिए गए हैं. इसे बीजेपी का राजनीतिक कौशल ही कहेंगे कि पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के बड़े नेताओं की नामौजूदगी के बीच इन पार्टियों से जुड़े पंचायत सदस्य ब्लॉक डेवलपमेंट कॉउंसिल (बीडीसी) चुनाव से पहले बीजेपी से जुड़ना शुरू हो गए हैं. इनमें से कुछ तो बकायदा बीजेपी में शामिल होकर उसके बीडीसी सदस्यों का समर्थन तक देने का मन बना चुके हैं. इसके अलावा बीजेपी ने भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से संबद्ध प्रभावशाली पंचायत सदस्यों तक पहुंच बनाकर उनके पसंदीदा प्रत्याशी को समर्थन देने का मन बनाया है. जाहिर है बीडीसी चुनाव की सफलता एक तीर से कई निशाने साधेगी.
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एक तीर से कई निशाने
सबसे पहले तो राज्य को केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर दो भागों में बांटने के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत कर उन लोगों के मुंह बंद किए जाएंगे, जो इसे लोकतंत्र की हत्या बतौर देख रहे हैं. दूसरे केंद्र सरकार इसके जरिये यह संदेश देना चाहती है कि मोदी 2.0 सरकार राज्य के विकास की बागडोर राज्य के लोगों के हाथों में ही रखना चाहती है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास' नारे का अमलीकरण होगा. तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य होगा विश्व बिरादरी खासकर पाकिस्तान को संदेश देना कि राज्य में स्थितियां अनुकूल हैं और विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद वह विकास के पथ पर ही अग्रसर हुआ है. बीडीसी चुनाव से पाकिस्तान के दुष्प्रचार को करारा झटका लगेगा.
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पीडीपी, एनसी और कांग्रेस के लोग जुड़ रहे बीजेपी से
पीडीपी और एनसी के स्थानीय प्रतिनिधियों के सामने बीजेपी के रणनीतिकारों ने एक ऐसा पांसा फेंका है, जिसे उन्होंने बेहतरीन अवसर बतौर लिया है. गौरतलब है कि एनसी के फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती बीते 5 अगस्त से नजरबंद हैं. ऐसे में इन पार्टियों से जुड़े पंचायत प्रतिनिधियों को लगता है कि वे अपने शीर्ष नेताओं की अनुपस्थिति में जमीनी स्तर पर अपना प्रभाव फिर से स्थापित कर पाएंगे. यही वजह है कि नेका और पीडीपी के साथ-साथ कांग्रेस के भी कुछ पंचायत सदस्यों ने बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया है. अन्यथा अभी तक राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी से लेकर बीडीसी सदस्य वही बन पाता था जिसे तीन प्रमुख राजनीतिक परिवारों का वरदहस्त प्राप्त होता है.
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नामांकन भरने की अंतिम तारीख 9 अक्टूबर
यह भी चर्चा जोरों पर है कि एनसी और पीडीपी नेतृत्व बीडीसी चुनाव में अपने-अपने उम्मीदवारों के समर्थन में दिशा-निर्देश जारी कर सकती है. कश्मीर में नामांकन पत्र भरने की अंतिम तारीख 9 अक्टूबर है. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते दक्षिण कश्मीर स्थित कुलगाम के एक सरपंच निसार अहमद ने कहा, 'विकास की प्रक्रिया में प्रासंगिक बने रहने के लिए उनके पास बीजेपी को समर्थन देने के अलावा विकल्प क्या है?' निसार अहमद ने बीजेपी के टिकट पर पर्चा भरा है और भगवा पार्टी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह उनके खिलाफ ब्लॉक से कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी.
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बीजेपी को 60 फीसजी सीटें जीतने का भरोसा
सुरक्षा कारणों से ज्यादातर पंच और सरपंच कड़ी सुरक्षा के बीच श्रीनगर के होटलों में रह रहे हैं. पंपोर के ख्रिव इलाके से एनसी के टिकट पर पंच रहे नजीर अहमद ने कहा, 'मैं बीडीसी चुनाव में बीजेपी का समर्थन कर रहा हूं. क्या कोई विकल्प है? अब हमें विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा.' उधर, बदलाव की इस बयार के बीच बीजेपी के पंचायत सदस्य काफी उत्साहित हैं. उनका दावा है कि बीडीसी चुनाव में भगवा पार्टी 60 फीसदी सीटें जीतेगी. राज्य में निर्वाचन आयोग ने 24 अक्टूबर को बीडीसी चुनने के लिए वोटिंग कराने का फैसला किया है. हालांकि, हकीकत में जिन सरपंचों के माध्यम से बीडीसी का चुनाव होना है, कई इलाकों में उनकी 90 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली पड़ी हुई हैं. राज्य में पंचायत चुनावों के दौरान मुख्य राजनीतिक पार्टियों और अन्य लोगों द्वारा इसका बहिष्कार किए जाने से ऐसा हुआ है.
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64 फीसदी वोटर हैं ही नहीं
आंकड़ों की भाषा में बात करें तो कश्मीर घाटी के 10 जिलों में सरपंच और पंच के कुल 19,578 पद हैं जिनमें से सिर्फ 7,029 सीटों पर ही प्रतिनिधि चुने गए हैं. सबसे बुरी स्थिति घाटी के दो शहरों, पुलवामा और शोपियां में है जहां पंचायत की 90 फीसदी से अधिक सीटें खाली हैं. पुलवामा में पंचायत के 1,710 पदों में से सिर्फ 132 पदों पर ही प्रतिनिधि मौजूद हैं. इसके अलावा शोपियां में 889 पदों के सापेक्ष सिर्फ 82 पदों पर ही प्रतिनिधियों का चुनाव हो सका है. इस तरह बीडीसी चुनाव के दौरान पुलवामा में 92.3 और शोपियां में 90.8 फीसदी वोटर वोट डालने के लिए मौजूद नहीं होंगे.
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