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मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ खत्म हुआ ये समझौता, खाद्य तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की मांग उठी

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Solvent Extractors Association of India-SEA) ने कहा है कि सरकार को सोया, सूरजमुखी और कच्चे पाम तेल पर सीमा शुल्क (Customs Duty) में बढ़ोतरी करनी चाहिए.

Updated on: 25 May 2020, 02:29 PM

नई दिल्ली:

मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ खाद्य तेल (Edible Oil) को लेकर हुआ भारत का 2010 का समझौता खत्म हो चुका है. खाद्य तेल संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Solvent Extractors Association of India-SEA) ने कहा है कि अब सरकार को सोया, सूरजमुखी और कच्चे पाम तेल पर सीमा शुल्क (Customs Duty) में बढ़ोतरी करनी चाहिए. संगठन ने घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने की बात भी कही है. एसईए ने सरकार से घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए रिफाइंड पाम ऑयल या पामोलीन के आयात पर प्रतिबंध लगाने का भी आग्रह किया है.

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कम आयात शुल्क से तिलहन की खेती से किसानों का रुझान घटा
एसईए के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने एक बयान में कहा कि कोई भी ऐसा देश अपनी खाद्य तेल सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता है, जिसकी सालाना खपत करीब 70 फीसदी है. यह स्थिति प्राथमिकता के आधार पर सुधारात्मक कार्रवाई का आह्वान करती है. उन्होंने कहा कि एसईए ने भारत सरकार को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ अल्पकालिक उपाय सुझाए हैं. उन्होंने कहा कि कई वर्षों से खाद्य तेलों पर कम आयात शुल्क की वजह से व्यावहारिक रूप से हमारे किसानों ने तिलहन की खेती में रुचि खो दी है.

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इंडोनेशिया और मलेशिया के साथ भारत की 2010 में हुए समझौते की अवधि खत्म
उन्होंने कहा कि भारत का तिलहन उत्पादन स्थिर बना हुआ है, लेकिन खाद्य तेलों की खपत लगातार बढ़ रही है. मौजूदा समय में यह सालाना 3 से 4 फीसदी की दर से बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इस विसंगति को ठीक करने की कोशिश की गई है. उन्होंने कहा कि भारत ने इंडोनेशिया और मलेशिया के साथ 2010 में जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, वे भारत को कस्टम ड्यूटी बढ़ाने की अनुमति नहीं दे रहे थे. अच्छी खबर यह है कि इन समझौतों की अवधि अब समाप्त हो गई है और भारत अपने मुताबिक कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है.

क्रूड पॉम ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी 50 फीसदी तक करने की मांग
एसईए ने सरकार को सोया और सूरजमुखी के तेल पर आयात शुल्क को मौजूदा 37.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 45 प्रतिशत करने का सुझाव दिया है, जबकि कच्चे पाम तेल के ऊपर 50 प्रतिशत तक आयात शुल्क की सलाह दी है. इंडस्ट्री बॉडी ने इसके अलावा रिफाइंड पाम ऑयल या पामोलीन के आयात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाए जाने की भी वकालत की है. चतुर्वेदी ने कहा कि हमें लगता है कि उपरोक्त उपाय स्थानीय तिलहन कीमतों को बढ़ाने में मदद करेंगे, जो बदले में सरकार के लिए राजस्व बढ़ाने के अलावा हमारे तिलहन किसानों को उत्साहित करेंगे.

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बता दें कि पिछले दिनों केंद्र सरकार ने 4.55 लाख टन रिफाइंड पाम तेल आयात के लिए जारी किए गए सभी 39 लाइसेंस को रद्द कर दिए थे. इस कदम का स्वागत करते हुए साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने कहा कि इससे अवैध रूप से हो रहे सस्ते आयात पर अंकुश लगेगा और घरेलू तेलशोधक कंपनियों का बचाव होगा.