नई दिल्ली:
महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में 5 परिवारों का अबतक दबदा रहा है. 38 की उम्र में महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री बनने वाले शरद पवार का परिवार हो या बिना विधायक, सासंद बने करीब चार दशकों से महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत की धुरी बनकर उभरे ठाकरे परिवार. या फिर बाला साहब ठाकरे की उंगली पकड़ कर अपराध से राजनीति में उतरने वाला नारायाण राणे परिवार. इन तीनों के अलावा देशमुख परिवार भी है जहां अब सियासत की विरासत संभालने और बचाने के लिए चुनाव मैदान में है. एक और परिवार है गोपीनाथ मुंडे का.
सबसे पहले बात महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत के की. जी हां, शरद पवार को महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत का चाणक्य कहा जाता है. उनकी मां शारदा बाई 1936 में पूना लोकल बोर्ड की सदस्य थीं. शरद पवार 38 की उम्र में महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री बने और चार बार सीएम रहे. कांग्रेस का हाथ पकड़ कर सियासत की जंग में उतरे शरद पवार ने 1999 में एनसीपी का गठन किया. परिवार का सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रभाव मराठवाड़ा इलाके के बारामती और ग्रामीण पुणे के आसपास के इलाकों में है.
शरद पवार के सबसे बड़े भाई दिनकरराव गोविंदराव पवार ऊर्फ अप्पा साहेब पवार थे. वह पवार परिवार से राजनीति में उतरने वाले पहले सदस्य थे.
अप्पा साहेब ने अपने छोटे भाई शरद पवार को कांग्रेस से जुड़ने के लिए राजी किया. 1999 में सोनिया गांधी से टकराव के बाद कांग्रेस से निकाले जाने के बाद शरद पवार ने नेशनल कांग्रेस पार्टी बनाई.
इसके बाद महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में पवार परिवार का दबदबा और कायम हुआ. बेटी सुप्रिया सुले पार्टी से सांसद बनती रहीं.
एक अन्य भाई अनंतराव के बेटे अजित पवार महाराष्ट्र (Maharashtra) में राजनेता के रूप में उभरने में सफल रहे. वह एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने.
अप्पा साहेब के पोते रोहित 2017 में बारामती के होम टाउन से जिला परिषद का चुनाव जीता था. राकांपा में कई पार्टी कार्यकर्ता उन्हें शरद पवार के बाद वास्तविक जननेता के रूप में देखते हैं.
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महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति का वारिस बनने के लिए इन दो पोतों में अंदरखाने जंग छिड़ी है. हालांकि दो लाख से भी अधिक वोटों से पार्थ पवार के चुनाव हार जाने के बाद अब रोहित पवार का पलड़ा मजबूत लग रहा है. दादा शरद पवार की सीट गंवाकर पार्थ पवार परिवार से चुनाव हारने वाले पहले सदस्य बन गए हैं.
ठाकरे परिवार
महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत में बाला साहब ठाकरे परिवार के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकते हैं कि बिना विधायक, सासंद बने ही करीब चार दशकों से महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत को यह परिवार प्रभावित कर रहा है.
ठाकरे परिवार की सियासत हमेशा गैर मराठियों के खिलाफ ही घूमती रही. बाल ठाकरे के निधन के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे और पोते आदित्य ठाकरे के हाथों शिवसेना की कमान संभाल है.
नारायण राणे परिवार
नारायण राणे ने मध्य मुंबई के चेंबूर इलाके में शिवसेना के शाखा प्रमुख से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की. इससे पहले वो अपराध जगत से जुड़े थे. 1985 में मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का चुनाव जीतकर राणे पार्षद बने. शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने उन्हें कोकण में मालवण विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया और राणे विधायक बने.
विलासराव देशमुख
मराठा जागीरदार घराने से ताल्लुक रखने वाले विलासराव देशमुख ने पुणे में कॉलेज की पढ़ाई की. इंडियन लॉ सोसायटी के लॉ कॉलेज से वकालत करते समय उनकी मुलाक़ात और दोस्ती गोपीनाथ मुंडे से हुई.
मुंडे परिवार
गोपीनाथ मुंडे की बेटी और ग्रामीण विकास मंत्री पंकजा मुंडे परली सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. वर्ष 2014 में केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेने के चंद दिनों बाद ही गोपीनाथ मुंडे दिल्ली में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए थे। लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra) विधानसभा चुनावों (Maharashtra Assembly Elections) में उनका नाम छाया रहा था. गोपीनाथ मुंडे की दोनों बेटियां राजनीति में सक्रिय हैं. उनकी बड़ी बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र (Maharashtra) सरकार में मंत्री हैं, जबकि उनकी छोटी बेटी प्रीतम मुंडे गोपीनाथ मुंडे की परंपरागत बीड लोकसभा से दूसरी बार सांसद हैं.
पंकजा मुंडे का जन्म 26 जुलाई, 1979 को परली में हुआ था. पंकजा के दो भाई-बहन हैं जिनके नाम यशहारी और प्रीतम हैं. पंकजा मुंडे ने एक डॉक्टर से उद्योगपति बने अमित पालवे से शादी की है और उनका आर्यमन नामक एक बेटा है.
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पंकजा साइंस से ग्रेजुएट हैं और उन्होंने एमबीए की पढाई भी की है. परली निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के रूप में चुने जाने से पहले वह एक गैर सरकारी संगठन का हिस्सा थीं.
2009 में वह परली निर्वाचन क्षेत्र से महाराष्ट्र (Maharashtra) विधानसभा की विधायक बनीं लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने पिता के लिए आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए प्रचार किया. पंकजा ने 27 अगस्त 2014 को 14 दिनों की यात्रा शुरू होने के दौरान 600 रैलियों और 3500 किलोमीटर सड़क यात्रा करके 79 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया. साल 2014 में उन्होंने 31 अक्टूबर को महाराष्ट्र (Maharashtra) के कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली. उन्हें ग्रामीण विकास, महिला और बाल कल्याण मंत्रालय आवंटित किया गया था.