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पीएम मोदी ने राम जन्मभूमि परिसर में लगाया पारिजात का पौधा, जानें क्या है धार्मिक महत्व और मान्यता

पीएम मोदी ने राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने के बाद राम जन्मभूमि परिसर में पारिजात का पौधा लगाया. मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने के लिए वह एक पट्टिका का भी अनावरण किया. इस खास मौके पर 'श्री राम जन्मभूमि मंदिर' पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया.

Updated on: 05 Aug 2020, 02:31 PM

अयोध्या:

पीएम मोदी ने राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने के बाद राम जन्मभूमि परिसर में पारिजात का पौधा लगाया. मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने के लिए वह एक पट्टिका का भी अनावरण किया. इस खास मौके पर 'श्री राम जन्मभूमि मंदिर' पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया. आखिर क्या है इस पौधे का महत्व और खासियत जिसकी वजह से इसे भूमि पूजन समारोह का हिस्सा बनाया जा रहा है.

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पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती

पारिजात का पेड़ बहुत खूबसूरत होता है. पारिजात के फूल को भगवान हरि के श्रृंगार और पूजन में प्रयोग किया जाता है, इसलिए इस मनमोहक और सुगंधित पुष्प को हरसिंगार के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दू धर्म में इस वृक्ष का बहुत महत्व माना जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है. पारिजात का वृक्ष ऊंचाई में दस से पच्चीस फीट तक का होता है. इसके इस वृक्ष की एक खास बात ये भी है कि इसमें बहुत बड़ी मात्रा में फूल लगते हैं. एक दिन में इसके कितने भी फूल तोड़े जाएं, अगले दिन इस फिर बड़ी मात्रा में फूल खिल जाते हैं. यह वृक्ष खासतौर से मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक उगता है. 

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लक्ष्मी को पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं

कहा जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं. पूजा-पाठ के दौरान मां लक्ष्मी को ये फूल चढ़ाने से वो प्रसन्न होती हैं. खास बात ये है कि पूजा-पाठ में पारिजात के वे ही फूल इस्तेमाल किए जाते हैं जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं. पूजा के लिए इस वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है. एक मान्यता ये भी है कि 14 साल के वनवास के दौरान सीता माता हर‍सिंगार के फूलों से ही अपना श्रृंगार करती थीं.

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जानें मान्यता

आज से हजारों वर्ष पूर्व द्वापर युग में स्वर्ग से देवी सत्यभामा के लिए भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा धरती पर लाए गए पारिजात वृक्ष की कथा प्रचलित है. यह देव वृक्ष समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ था. 14 रत्नों में यह एक विशिष्ट रत्न रहा है. सौभाग्य और हर्ष की बात यह है कि यह वृक्ष कुशभवनपुर (सुलतानपुर) की पावन धरती पर गोमती नदी के तट पर स्थित अतीत की अनोखी कहानी सुना रहा है. यह भी कहा जाता था कि इस पेड़ को छूने मात्र से इंद्रलोक की अपसरा उर्वशी की थकान मिट जाती थी. पारिजात धाम आस्था का केंद्र है. सावन माह में यहां श्रद्धालुओं का मेला लगता है. महाशिवरात्रि व्रत पर यहां कई जिलों से श्रद्धालु जल चढ़ाने पहुंचते हैं.