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AAP नेता कुलतार सिंह ने चन्नी सरकार पर साधा निशाना, कहा DAP की कमी...

आप नेता कुलतार सिंह ने रविवार को पंजाब सरकार पर जमकर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि डीएपी खाद की अचानक कमी के लिए पंजाब की चन्नी सरकार को जिम्मेदार है.

Updated on: 07 Nov 2021, 05:13 PM

नई दिल्ली:

आम आदमी पार्टी (AAP) पंजाब के किसान विंग के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक कुलतार सिंह संधवां ने आरोप लगाया कि पंजाब में डीएपी (DAP) खाद की भारी कमी होने के कारण जहां खाद डीलरों द्वारा कालाबाजारी की जा रही है, वहीं गेहूं की बुवाई पिछड़ रही है. इस कारण प्रदेश और किसानों की आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. उन्होंने डीएपी खाद की अचानक कमी के लिए पंजाब की चन्नी सरकार को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि पंजाब के खिलाफ गहरी साजिश है. आपको बता दें कि पार्टी मुख्यालय से रविवार 7 अक्टूबर को जारी बयान में विधायक कुलतार सिंह संधवां ने कहा कि किसानों के हितैषी होने का दावा करने वाली केंद्र और पंजाब की सरकारों की बुरी नीयत और नीति फिर से जगजाहिर हुई है, क्योंकि पंजाब में रबी की फसलों, विशेषकर गेहूं की बुवाई के लिए अत्यावश्यक डीएपी खाद की भारी कमी है.

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उन्होंने कहा कि पंजाब की कांग्रेस सरकार समय से खाद का प्रबंध करने में नाकाम हुई है. उन्होंने बताया कि पंजाब में धान की कटाई के तुरंत बाद रबी की फसलों गेहूं, आलू व पशुओं के चारे आदि की बुवाई की जाती है और इन फसलों की बुवाई के लिए डीएपी खाद की अति आवश्यकता होती है. लेकिन ऐसे लगता है कि डीएपी खाद की समयानुसार आवश्यक सप्लाई न देकर केंद्र सरकार पंजाब और पंजाब के किसानों के साथ रंजिश निकाल रही है.

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उन्होंने कहा कि कृषि प्रधान पंजाब में रबी की फसल की बुवाई के लिए 5.5 लाख टन डीएपी (DAP)की जरूरत है. लेकिन केंद्र सरकार द्वारा अक्टूबर में 1.97 लाख मीट्रिक टन और नवंबर में 2.56 लाख मीट्रिक टन खाद की पूर्ति की गई है, जो आवश्यकता से 1 लाख मैट्रिक टन कम है. उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब सरकार केंद्र से खाद की पूरी मात्रा प्राप्त नहीं कर सकी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में करीब 1.50 लाख मीट्रिक टन खाद की कमी है. 

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AAP नेता का कहना है कि डीएपी की पूरी सप्लाई नहीं मिलने और पंजाब सरकार के व्यापक प्रबंध करने में विफल होने के कारण प्रदेश में कालाबाजारी बढ़ गई है. इस कारण किसानों पर दबाव बढ़ रहा है और 200 से 300 रुपये प्रति थैला अधिक कीमत देने के लिए किसान मजबूर हो रहे हैं.