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बिहार की लड़कियों ने रोजाना 1 रुपया दान कर खोला सैनिटरी पैड बैंक

युवा नेता अनु कुमारी ने कहा, हम हर दिन एक रुपया जमा करते हैं, यानी एक लड़की हर महीने 30 रुपये जमा करती है. हम इस पैसे से सैनिटरी पैड खरीदते हैं और उन गरीब लड़कियों में बांट देते हैं, जिनके पास इन्हें खरीदने के पैसे नहीं होते हैं.

Updated on: 14 Oct 2020, 02:08 PM

पटना:

रोजाना दिए गए सिर्फ एक रुपये के स्वैच्छिक योगदान से बिहार के नवादा जिले में युवा लड़कियों ने गरीब लड़कियों की मासिक धर्म की जरूरतों को पूरा करने के लिए सेनेटरी पेड बैंक खोला है. जब कुछ लड़कियों ने देखा कि पैसे की कमी के कारण कई लड़कियों को सैनिटरी पैड नहीं मिल पाते हैं, तो उन्होंने मिलकर एक पहल की. उन्होंने रोजाना 1-1 रुपये का स्वैच्छिक योगदान इकट्ठा करना शुरू किया और बैंक की स्थापना कर दी.

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एक लड़की हर महीने 30 रुपये जमा करती है

इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड के मौके पर उन्होंने बताया कि पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा शुरू किए गए एक शो 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' ने उन्हें यह काम करने की प्रेरणा दी. अमावा गांव के युवा नेता अनु कुमारी ने कहा, "हम हर दिन एक रुपया जमा करते हैं, यानी एक लड़की हर महीने 30 रुपये जमा करती है. हम इस पैसे से सैनिटरी पैड खरीदते हैं और उन गरीब लड़कियों में बांट देते हैं, जिनके पास इन्हें खरीदने के पैसे नहीं होते हैं."

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महिलाओं को अंतरा इंजेक्शन, कॉपर टी, कंडोम जैसे विकल्पों की जानकारी

नवादा के पूर्व सिविल सर्जन डॉ. श्रीनाथ प्रसाद कहते हैं, "लड़कियां पहले अपने लिए आवाज नहीं उठा पाती थीं, ना वे सैनिटरी पैड के बारे में जानती थीं. लेकिन आज उन्होंने लड़कियों के लिए सैनिटरी पैड का एक बैंक शुरू किया है. आप कल्पना कर सकते हैं कि 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' पहल ने कितना प्रभाव डाला है." ये लड़कियां यहीं नहीं रुकीं, बल्कि वे अब परिवार नियोजन जैसे अन्य महत्वपूर्ण लेकिन अब तक वर्जित रहे विषयों पर भी संवाद कर रही हैं. हरदिया की 17 साल की मौसम कुमारी कहती हैं, "अब हम गांवों का दौरा करते हैं और महिलाओं को अंतरा इंजेक्शन, कॉपर टी, कंडोम जैसे विकल्पों के बारे में बताती हैं."

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लड़कियों और लड़कों के बीच कोई अंतर नहीं

अब युवाओं के लिए स्वास्थ्य क्लीनिकों की स्थापना करने की तैयारी है. जाहिर है, लड़कियों के इन प्रयासों ने पुरुषों की सोच में भी बदलाव लाया है. हरदिया के पूर्व मुखिया भोला राजवंशी कहते हैं, "मुझे लगता है कि अब हमारा समाज बदल गया है. अब लड़कियों और लड़कों के बीच कोई अंतर नहीं है." पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुटरेजा ने कहा, "मुझे खुशी है कि यह शो उनके जीवन को प्रभावित कर रहा है और यही हमारा लक्ष्य है. हमने डॉ. स्नेहा माथुर जैसे प्रेरक चरित्र के जरिए सेक्स, हिंसा, लिंग भेदभाव, स्वच्छता, परिवार नियोजन, बाल विवाह, मानसिक स्वास्थ्य, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, पोषण और किशोर स्वास्थ्य के बारे में कठिन, लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की."

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गांव की महिलाएं सामूहिक तौर पर कई अहम काम करती हैं

इस शो के निर्माता, प्रसिद्ध फिल्म और थिएटर निर्देशक फिरोज अब्बास खान कहते हैं, "जब 7 साल पहले मैंने इस शो की अवधारणा लिखी थी, तब मैंने भी नहीं सोचा था कि हम इसके ऐसे प्रभाव देखेंगे. मुझे बहुत खुशी होती है कि 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' युवा, किशोर लड़कियों के लिए एक सशक्त नारा बन गया है जो अब जमीनी बदलाव लाने के लिए काम कर रही हैं." 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' एक युवा डॉ.स्नेहा माथुर की प्रेरणादायक यात्रा के इर्द-गिर्द घूमता है, जो मुंबई के अपने आकर्षक कैरियर को छोड़कर अपने गांव में आकर काम करती हैं. बाद उनके नेतृत्व में गांव की महिलाएं सामूहिक तौर पर कई अहम काम करती हैं.