बिहार में कांग्रेस को अपने 'पुराने दिन' लौटने की बेचैनी

आज कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय और बड़ी पार्टी बिहार में अपेक्षाकृत काफी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर अपने पुराने खोए रूतबों को तलाशने के प्रयास में जुटी है.

author-image
Nihar Saxena
New Update
Bihar Congress

कांग्रेस को अपने पुराना रुतबा वापस आने की उम्मीद.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2020) के लिए सीट बंटवारे में कांग्रेस अपने हिस्से अधिक से अधिक सीटों को लाने के प्रयास में जुटी है. महागठबंधन के प्रमुख घटक दल कांग्रेस (Congress) में इसे लेकर पटना से दिल्ली तक मंथन जारी है. बिहार की सत्ता पर कई सालों तक एकछत्र राज कर चुकी कांग्रेस अब फिर से पुराने दिन लाने के लिए बेचैन है. वैसे कहा जा रहा है कि यह आसान भी नहीं है. बिहार में कांग्रेस के जनाधार घटने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय और बड़ी पार्टी बिहार में अपेक्षाकृत काफी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर अपने पुराने खोए रूतबों को तलाशने के प्रयास में जुटी है.

Advertisment

यह भी पढ़ेंः LIVE: बाबरी ढांचा विध्वंस केस में जज ने फैसला पढ़ना शुरू किया

लगातार पिछड़ते गई कांग्रेस
बिहार में किसी जमाने में कांग्रेस का सामाजिक व राजनीतिक दबदबा पूरी तरह था, लेकिन बाद के दिनों में कांग्रेस इसे बनाए रखने में नाकाम रही और राजनीति में पिछड़ती चली गई. आज भी कहने को तो यहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, लेकिन अब तक यहां कमेटी नहीं बनी. काम चलाने के लिए कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति जरूर कर दी गई. कांग्रेस बिहार में जब वर्ष 1990 में (अकले दम पर) सत्ता से बाहर हुई तब से न केवल उसका सामाजिक आधार सिमटता गया बल्कि उसकी साख भी फीकी पड़ती चली गई.

यह भी पढ़ेंः हाथरस गैंगरेप केस: CM योगी ने बनाई SIT, फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलेगा मुकदमा

कांग्रेस खुद को ढाल नहीं सकी
कांग्रेस के एक नेता नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं कि कांग्रेस जनता से दूर होती चली गई. मतदाताओं के अनुरूप कांग्रेस खुद को ढाल नहीं सकी. बिहार में आए सामाजिक बदलावों के साथ खुद को जोड़ नहीं पाई. सामाजिक स्तर पर राजनीतिक चेतना बढ़ी जिसे कांग्रेस आत्मसात नहीं कर सकी. बिहार में 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल मतों का 42.09 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि वर्ष 1967 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से 33.09 प्रतिशत मत आए.

यह भी पढ़ेंः भारत ने किया सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का सफल परीक्षण

पारंपरिक वोट कांग्रेस से खिसके
कांग्रेस के सत्ता से दूर होने का मुख्य कारण पारंपरिक वोटों का खिसकना माना जाता है. पूर्व में जहां कांग्रेस को अगड़ी, पिछड़ी, दलित जातियों और अल्पसंख्यक मतदाताओं का वोट मिलता था, कलांतर में वह विमुख हो गया. चुनाव दर चुनाव बिहार में कांग्रेस पार्टी सिमटती चली गई. वर्ष 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस के 71 प्रत्याशी जीते थे वहीं 1995 में हुए चुनाव में मात्र 29 प्रत्याशी ही विधानसभा पहुंच सके. वर्ष 2005 में हुए चुनाव में नौ जबकि 2010 में हुए चुनाव में कांग्रेस के चार प्रत्याशी ही विजयी पताका फ हरा सके.

यह भी पढ़ेंः पायल घोष मामले में जांच के लिए मुंबई पुलिस ने अनुराग कश्यप को भेजा समन

कांग्रेस चाहती है प्रदर्शन को सुधारना
पिछले चुनाव में कांग्रेस, जदयू और राजद मिलकर चुनाव मैदान में उतरी और कांग्रेस को भारी सफलता भी मिली. कांग्रेस 27 सीटों पर विजयी हुई और सरकार में भी शामिल हुई. बाद में हालांकि जदयू के अलग होने के बाद सरकार नहीं रही और जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली. कांग्रेस एक बार फिर इसी सफलता को अब और सुधारना चाहती है.

यह भी पढ़ेंः अयोध्या के बाद कृष्ण जन्मभूमि से भी हटेगी मस्जिद? सुनवाई आज

मजबूती के साथ उतरेगी कांग्रेस इस बार में
कांग्रेस के प्रवक्ता हरखू झा कहते हैं कि कांग्रेस के जनाधार में आई कमी का सबसे बड़ा कारण उसके पारंपरिक वोटों का बिखराव था, हालांकि अब वह इतिहास की बात है. कांग्रेस एकबार फिर बिहार में मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है. उन्होंने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति में और सुधार संभव है.

राहुल गांधी एमपी-उपचुनाव-2020 rahul gandhi congress कांग्रेस bihar vidhansabha chunav Bihar Assembly Elections 2020 Bihar Vidhan Sabha Election 2020 बिहार विधानसभा चुनाव
      
Advertisment