logo-image

MCD Elections साल की शुरुआत में निकाय का एकीकरण, जानें कितना अलग है चुनाव

इस साल मई में दिल्ली के तीन नगर निगमों का विलय कर दिया गया था. इसके साथ ही देश की राजधानी के नागरीय मानचित्र को औपचारिक रूप से फिर से तैयार किया गया. ऐसे में जानते हैं कि दिल्ली नगर निगम चुनावों में इस बार क्या अलग है और एकीकरण के क्या फायदे होंगे?

Updated on: 20 Nov 2022, 10:10 PM

highlights

  • 1862 में भी दिल्ली में नगर पलिका का उल्लेख मिलता है
  • साल की शुरुआत में तीनों नगर निगमों का हुआ था विलय
  • बीजेपी ने एकीकरण के जरिये राजनीतिक हित भी साधे

नई दिल्ली:

4 दिसंबर को होने वाले दिल्ली नगर निगम चुनाव (MCD Elections) में जीत हासिल करने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने अब अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है. हालांकि आमने-सामने बीजेपी (BJP) और आप (AAP) ही हैं. इनके अलावा राष्ट्रीय राजधानी में जीत के लिए बसपा और एआईएमआईएम (एएसपी के साथ गठबंधन) जैसी अन्य पार्टियां भी चुनाव लड़ रही हैं. इस साल मई में दिल्ली के तीन निगमों का विलय कर दिया गया था. साथ ही देश की राजधानी के नागरीय मानचित्र को औपचारिक रूप से फिर से तैयार किया गया था. दिल्ली के पूर्व, उत्तर और दक्षिण नगर निगमों को एक नगर निगम में मिलाने वाले दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक 2022 को केंद्र सरकार ने पारित भी कर दिया. हालांकि सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इसका भारी विरोध किया था. आखिर यह कदम क्यों उठाया गया और एमसीडी के कामकाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा... जानते हैं.

सबसे पहले जानते हैं इतिहास
एतिहासिक दस्तावेजों में 1862 में भी दिल्ली में नगर पलिका का उल्लेख मिलता है. 23 अप्रैल 1863 को नगर पालिका की पहली नियमित बैठक हुई थी, जिसमें स्थानीय नागरिकों को भी आमंत्रित किया गया था. दिल्ली के आयुक्त ने 1 जून 1863 को बैठक की अध्यक्षता की थी. 7 अप्रैल 1958 को संसदीय अधिनियम के जरिये दिल्ली नगर निगम का गठन हुआ. इसके पहले दिल्ली का मुख्य नागरीय संगठन दिल्ली नगरपालिका समिति (डीएमसी) हुआ करता था. 1866 से 2009 के उत्तरार्ध तक एमसीडी का ऑफिस पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक के दिल्ली टाउन हॉल में हुआ करता था. इसके बाद यह मध्य दिल्ली के मिंटो रोड पर आ गया. एक समय था जब संयुक्त जल और सीवरेज बोर्ड समेत दिल्ली राज्य बिजली बोर्ड और दिल्ली सड़क परिवहन प्राधिकरण निगम के अंतर्गत ही आते थे. नवंबर 1971 में संसदीय अधिनियम के जरिये सड़क परिवहन निगम की स्थापना की गई थी, जिसने दिल्ली परिवहन को दिल्ली नगर निगम से अलग कर दिया. फिर 1993 में मौजूदा अधिनियम के जरिये एक संशोधन से निगम की संरचना, कार्यों, शासन और प्रशासन में मूलभूत परिवर्तन किए गए.

यह भी पढ़ेंः  दिल्ली-NCR में मदर डेयरी ने बढ़ाए दूध के दाम, साल में चौथी बार बढ़ी कीमत

संशोधन अधिनियम 2011
दिल्ली नगर निगम को 2011 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम में बदलाव कर तीन निगमों में विभाजित किया गया. इस तरह उत्तर, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली नगर निगम अस्तित्व में आए. उत्तर और दक्षिण दिल्ली नगर निगम में 104 वार्ड्स आते थे, तो पूर्वी दिल्ली में 64 वार्ड थे. 2017 के चुनाव से पहले उत्तरी दिल्ली नगर निगम के क्षेत्रीय कार्यालयों में संतुलन बनाए रखने के लिए नए परिसीमन के जरिये एक नया क्षेत्र केशवपुरम भी बनाया गया. शहरी और सदर पहाड़गंज क्षेत्रों को मिलाकर एसपी जोन शहर बनाया गया.

विभाजन से ये समस्याएं आईं सामने
पिछले कुछ सालों में तीन भागों में बंटे एमसीडी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है. इनमें भी सफाई कर्मचारियों के वेतन का भुगतान के मसले समेत तीनों नागरीय संगठनों के बीच संपत्ति करों का असमान आवंटन, निष्प्रभावी प्रबंधन और बढ़ते घाटे जैसी अन्य समस्याएं शामिल रहीं.
असमान विभाजन: क्षेत्रीय विभाजनों और राजस्व वसूलने के लिए प्रत्येक नगर निगम की क्षमता के संदर्भ में त्रिविभाजन असमान था. नतीजतन तीनों नगर निगमों के उपलब्ध संसाधनों और उनकी जिम्मेदारियों के बीच एक बड़ी असमानता विद्यमान थी.
चौड़ी होती खाईः समय के साथ असमानता की यह खाई और चौड़ी होती गई. परिणामस्वरूप तीनों नगर निगमों के लिए अपने कर्मचारियों का वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों का समय पर भुगतान करना और कठिन हो गया. इसके फलस्वरूप दिल्ली के तीनों नगर निगमों की अपनी नागरीय सेवाओं को बरकरार रखने की क्षमता गंभीर रूप से बाधित हुईं.

यह भी पढ़ेंः  श्रद्धा के फ्रेंड ने किया बड़ा खुलासा- लिन-इन- रिलेशनशिप के दौरान आफताब ने...

तीनों के विलय के साथ क्या बदला गया
लुटियंस दिल्ली और छावनी में कुछ अलग-थलग इलाकों को छोड़कर पूरे शहर को एक निकाय के तहत लाया गया. इस तरह नागरीय निकायों की पुरानी सीमाएं समाप्त हो गईं. अब दूसरे चरण में कर्मचारियों का एकीकरण होगा. माना जा रहा है कि इससे निचले स्तर के कर्मचारी प्रभावित नहीं होंगे, लेकिन वरिष्ठ श्रेणी में एक तिहाई तक की कमी आएगी. इससे फालतू कर्मियों की संख्या कम होने से वेतन की देनदारी का बोझ कम होगा. उदाहरण के लिए एकीकृत निगम में प्रत्येक विभाग जैसे हॉर्टीकल्चर, साफ-सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, अस्पताल आदि के लिए मौजूदा तीन निदेशकों के बजाय एक निदेशक होगा. यही बात आयुक्तों, समिति प्रमुखों और महापौरों पर भी लागू होगी.

एकीकरण से यह होंगे लाभ
उत्तरी एमसीडी के प्रेस और सूचना विंग के एक पूर्व निदेशक योगेंद्र सिंह मान के मुताबिक एकीकरण से सर्वप्रथम संसाधनों, आय और खर्चों के बीच संतुलन आएगा. उत्तरी नगर निगम में नियमित आधार पर वेतन में देरी हो रही थी. अब विलय के बाद एकरूपता आएगी. पार्किंग शुल्क, संपत्ति कर और नई शहर परियोजनाओं जैसी मदों के लिए केंद्रीकृत प्राधिकरण भी शहर के नियोजन में सुधार लाएगा. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक निर्वाचित राजनेताओं और अधिकारियों के बीच सत्ता संघर्ष को सुलझाना भी विलय का एक लक्ष्य है. इसके साथ ही एमसीडी को अपने बैकलॉग का भुगतान करने के लिए बेलआउट पैकेज की पेशकश करना होगा, क्योंकि उत्तर और पूर्वी एमसीडी लगातार घाटे में जा रहे थे. 

यह भी पढ़ेंः फीफा वर्ल्ड कप FIFA WC: वर्ल्ड कप में इन युवा खिलाड़ियों का दिखेगा जलवा, होंगी सबकी नजरें

अब तक एकीकृत एमसीडी का सफर
मई में केंद्र ने ज्ञानेश भारती को एकीकृत एमसीडी का आयुक्त और आईएएस अधिकारी अश्विनी कुमार को विशेष अधिकारी नियुक्त किया था. इसके बाद निगम की श्रमशक्ति के पुनर्गठन की कवायद शुरू हो गई थी. मई में दक्षिण, उत्तर और पूर्व का कार्यकाल खत्म हो गया. ऐसे में परिसीमन प्रक्रिया के बाद विशेष अधिकारी और आयुक्त ने निर्वाचित परिषद सदस्यों और नगरपालिका समितियों के पदों को संभाल लिया है.

एकीकरण के राजनीतिक निहितार्थ
भाजपा के कुछ नेताओं ने अक्टूबर 2021 में आरोप लगाया था कि एकीकरण के पीछे राजनीतिक निहितार्थ भी थे. एमसीडी लगातार धन की कमी से जूझ रही थी, क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार इसे रोक रही थी. इसके साथ ही इस तरह बीजेपी यह संदेश भी देना चाहती थी कि अगर वह फिर से सत्ता में आती हैं तो वित्तीय संकट को कैसे ठीक किया जा सकता है. गौरतलब है कि बीजेपी लंबे समय से तीनों नगर निगमों के एकीकरण की मांग कर रही थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल के मुताबिक 2014 और 2017 में एकीकरण के प्रस्ताव को लाया गया था ताकि दिल्ली नगर निगम की कार्यप्रणाली में सुधार लाया जा सके. कह सकते हैं विलय के बाद हो रहे एमसीडी चुनाव के परिणाम आगे की राजनीति की दशा-दिशा तय करेंगे