बड़ी उपलब्धि! ISRO ने किया ऐसे पावरफुल इंजन का सफल परीक्षण, जिसकी टेक्निक को लेकर कभी अमेरिका ने दी थी धमकी

C20 Cryogenic Engine का सफल परीक्षण कर ISRO ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इसरो ने इस सफलता को भविष्यों के मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया. आइए जानते हैं कि ये इंजन कितना पावरफुल?

C20 Cryogenic Engine का सफल परीक्षण कर ISRO ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इसरो ने इस सफलता को भविष्यों के मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया. आइए जानते हैं कि ये इंजन कितना पावरफुल?

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Ajay Bhartia
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ISRO Big Achievements

बड़ी उपलब्धि! ISRO ने किया ऐसे पावरफुल इंजन का सफल परीक्षण, जिसकी टेक्निक को लेकर कभी अमेरिका ने दी थी धमकी

C20 Cryogenic Engine: इंडियन स्पेस एंड रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने आज यानी गुरुवार को एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की. इसरो ने ऐसे पावरफुल इंजन का सफल परीक्षण किया है, जिसकी टेक्निक को लेकर कभी अमेरिका ने धमकी दी थी. इस इंजन का नाम सी-20 क्रायोजेनिक इंजन है. इसी इंजन से गगनयान रॉकेट को लॉन्च किया जाएगा. भारत के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि है, जो इस बात का सबूत है कि अमेरिकी धमकी के बावजूद उसके कदम नहीं रुके.

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ISRO के लिए बड़ी उपलब्धि

सी-20 क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण कर ISRO ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. परीक्षण के दौरान सी-20 क्रायोजेनिक इंजन ने सभी बाधाओं को पार किया. इसरो ने इस सफलता को भविष्यों के मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया. इस ऐतिहासिक मौके पर आइए जानते हैं कि C20 क्रायोजेनिक इंजन क्या है, ये कितना पावरफुल इंजन है और क्यों अमेरिका भारत को इसकी टेक्निक मिलने के खिलाफ था.

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क्या है C20 क्रायोजेनिक इंजन?

  • क्रायो शब्द का मतलब - ‘बेहद कम तापमान’ है. ऐसा इंजन जो बेहद कम तापमान पर काम करे, उसे क्रायोजेनिक इंजन कहते हैं. 

क्रायोजेनिक इंजन कितना पावरफुल?

  • क्रायोजेनिक इंजन बहुत ही पावरफुल होता है. ये इंजन सबसे पावरफुल और ज्यादा वजनी रॉकेट में इस्तेमाल किया जाता है.  

  • ये जानकर हैरानी होगी कि क्रायोजेनिक इंजन रॉकेट के वजन समेत करीब 22 हजार किलोग्राम वजन को लिफ्ट कर सकता है.

  • आमतौर पर सैटेलाइट लॉन्चिंग के तीसरे और आखिरी स्टेप में क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल होता है, जो स्पेस में काम करता है. इसे क्रायोजेनिक स्टेप भी कहते हैं. 

  • क्रायोजेनिक इंजन से ज्यादा वजन के सैटेलाइट की लॉन्चिंग आसान हो जाती है. कुछ देश इस टेक्निक को मिसाइल बनाने में यूज करते हैं.

कभी अमेरिका ने दी थी धमकी

बात 1993 की है. भारत ने इस इंजन की जरूरत को समझा और इस पर काम करना शुरू किया था. तब अमेरिका को ये बात अखर गई. उसके धमकाने पर रूस समेत कुछ ताकतवर देश भारत को क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक देने से पीछे हट गए थे, लेकिन इन ताकतवर देशों के मंसूबों पर पानी फेरते हुए भारत ने कुछ सालों की मेहनत के बाद खुद का क्रायोजेनिक इंजन विकसित कर लिया है. इसी के साथ इस तकनीक में भारत ने एक नई ऊंचाई हासिल करने में कामयाबी पाई.

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अमेरिका क्यों था खिलाफ?

अमेरिका भारत को इस तकनीक के मिलने के शख्त खिलाफ था. उसका कहना था कि भारत इस टेक्निक का इस्तेमाल क्रायोजेनिक मिसाइलोें को बनाने में करेगा. मगर असल वजह ये थी कि अमेरिका समेत कुछ ताकतवर देश ये नहीं चाहते थे कि भारत क्रायोजेनिक इंजन की टेक्निक हासिल करके अरब डॉलर के स्पेस फील्ड में कदम रख पाए. हालांकि, भारत हमेशा से ही ये कहता रहा है कि वो क्रोयोजेनिक इंजन टेक्निक का इस्तेमाल सैन्य क्षेत्र में नहीं करेगा और ऐसा कर भी रहा है.

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