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Parshuram Jayanti 2022 Janm Katha: परशुराम जी को मिला था चिरंजीवी रहने का वरदान, जानें उनकी जन्म कथा

कल 3 मई को परशुराम जयंती मनाई जाएगी. परशुराम भगवान (Parashuram jayanti 2022) विष्णु के अवतार थे. कहा जाता है कि उन्हें चिरंजीवी (bhagwan parshuram katha) रहने का वरदान मिला था. तो, चलिए उनकी जन्म कथा (Parshuram Janm katha) पढ़ लें. 

Updated on: 02 May 2022, 08:10 AM

नई दिल्ली:

कल यानी कि 3 मई को अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya 2022) है. इस दिन को बेहद शुभ माना जाता है. अक्षय तृतीया पर शुभ और मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं. इसी शुभ दिन पर भगवान परशुराम (lord parshuram) का जन्म हुआ था. इसलिए, अक्षय तृतीया को परशुराम  जयंती के रूप में मनाया जाता है. परशुराम भगवान (Parashuram jayanti 2022) विष्णु के अवतार थे. उन्हें विष्णु का उग्र अवतार माना जाता था. उन्होंने श्रीराम से पहले धरती पर अवतार लिया था. कहा जाता है कि उन्हें चिरंजीवी (bhagwan parshuram katha) रहने का वरदान मिला था. परशुराम आज भी मौजूद हैं. तो, चलिए उनकी जन्म कथा (Parshuram Janm katha) पढ़ लें. 

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम को विष्णु के दशावतारों में से छठा अवतार माना जाता है. उनके पिता का नाम ऋषि जमदग्नि था. जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था. उन्होंने पुत्र के लिए एक महान यज्ञ किया था. इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और फिर अक्षय तृतीया को परशुराम (bhagwan parshuram jayanti 2022) ने जन्म लिया.   

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ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने अपने पुत्र का नाम राम रखा था. राम ने शस्त्र का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया था. शिवजी ने उन्हें प्रसन्न होकर अपना फरसा यानी परशु दिया था. इसके बाद वे परशुराम कहलाएं. परशुराम को चिरंजीवी माना जाता है यानी कि वे आज भी जीवित हैं. उनका जिक्र रामायण और महाभारत दोनों काल में किया गया है. कहा जाता है कि कलयुग के अंत में जब विष्णु के कल्कि अवतार जन्म लेंगे, तब भी परशुराम (lord parshuram jayanti) आएंगे.     

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कहा जाता है कि उन्होंने क्षत्रिय कुल के हैहय वंश का 21 बार नाश किया था. महाभारत काल में उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था. श्रीकृष्ण को उन्होंने सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था. सतयुग के दौरान भी उनकी एक कथा प्रचलित है. जिसके मुताबिक वे एक बार भगवान शिव के दर्शन के लिए गए तो गणेश जी ने उन्हें रोक लिया. इससे गुस्सा होकर परशुराम ने गणपति का एक दांत तोड़ दिया. वहीं रामायण काल में भी उन्होंने राजा जनक, राजा दशरथ परशुराम का सम्मान (bhagwan parshuram story) किया.