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कोरोना की चपेट में न आए कोई गरीब, काढ़ा बनाकर मुफ्त में बांट रहे हैं वंशराज

वंशराज ने बताया कि कोरोना संकट के दौरान औषधीय पौधों से काढ़ा और अर्क बनाकर गरीबों को नि:शुल्क दे रहे हैं. इसके अलावा गिलोय या अन्य औषधियों के डंठल और पत्तियां भी दे रहे हैं.

Updated on: 22 Aug 2020, 04:41 PM

नई दिल्ली:

कोरोना वायरस (Corona Virus) का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है. भारत में अब रोजाना करीब 70 हजार कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं. देशभर में कोरोना वायरस के कुल मामलों की संख्या 30 लाख के पार पहुंच चुकी है, जबकि 55,794 लोग इस महामारी की वजह से मारे जा चुके हैं. हालांकि, कोरोना वायरस से ठीक होने वाले लोगों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. देशभर में अभी तक 22 लाख से भी ज्यादा लोग कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं. कोविड को हराने के लिए किसी भी व्यक्ति का इम्यूनिटी सिस्टम अच्छा होना चाहिए.

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जिन लोगों का इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत है, उन्हें कोरोना से कोई खास खतरा नहीं है. कोरोना का कोई सफल इलाज नहीं है, लिहाजा डॉक्टर्स मरीजों को इम्यूनिटी बूस्टर देते हैं ताकि वह जल्द से जल्द इससे मुक्ति पा सके. इसी सिलसिले में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में रहने वाले वंशराज मौर्य गरीब लोगों की खूब मदद कर रहे हैं. गोंडा के रायपुर गांव के रहने वाले वंशराज अपने बगीचे में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इम्यूनिटी बूस्टर वाले औषधीय पौधे उगा रहे हैं. वह इन पौधों के मिश्रण से काढ़ा तैयार करते हैं और आसपास के गरीबों को फ्री में देते हैं. उनकी इस मुहिम को काफी सराहना मिल रही है.

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वंशराज ने बताया कि कोरोना संकट के दौरान औषधीय पौधों से काढ़ा और अर्क बनाकर गरीबों को नि:शुल्क दे रहे हैं. इसके अलावा गिलोय या अन्य औषधियों के डंठल और पत्तियां दे रहे हैं. कोरोना के समय से यहां पर करीब 100 से अधिक लोग हमारे काढ़ा और औषधियों को नि:षुल्क ले गये हैं. गिलोय तुलसी से बना काढ़ा कोरोना से लड़ने में बेहद कारगर हो रहा है. इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही है. इसलिए गरीबों को नि:शुल्क दिया जा रहा है.

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वंशराज के पुत्र शिवकुमार मौर्य ने बताया कि कोरोना संकट को देखते हुए लोगों को गिलोय, नीम-तुलसी का काढ़ा जरूरतमंदों को नि:शुल्क दे रहे हैं. अब तक तकरीबन 100 से अधिक लोग इसे ले जा चुके हैं. इसके अलावा एलोविरा जूस, पपीता का अर्क, नींबू द्वारा तैयार अम्लबेल की बहुत ज्यादा मांग रहती है. इसे हम लोग बनाकर एक बोतल में तैयार करते है. कुछ निर्धन लोग हमारे यहां से पत्तियां और डंठल भी ले जाते हैं. इसके अलावा जो पौधा ले जाते है उन्हें भी दिया जाता है.

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उन्होंने बताया कि पिता वंशराज मौर्य ने आपातकाल के समय नसबंदी के लिए जबरिया दबाव बनाने पर नौकरी छोड़ दी. इसके बाद वर्ष 1980 में एक एकड़ खेत अपने खाते की बागवानी के लिए आरक्षित कर देश के कई प्रांतों से फल-फूल व वनस्पतियों का संग्रह करना शुरू कर दिया. इसके लिए शहरों में लगने वाली पौधशालाओं- नागपुर, पंतनगर व कुमार गंज स्थिति कृषि विश्वविद्यालयों का भ्रमण कर जानकारी हासिल की. चार दशक में देश-प्रदेश के पौधे यहां फल-फूल रहे हैं.