मरने के बाद क्या होता है? यह सवाल सदियों से मानवता के लिए एक रहस्य बना हुआ है. भारतीय संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों में आत्मा के अस्तित्व और पुनर्जन्म की अवधारणा को प्रमुखता से स्थान दिया गया है. लेकिन क्या आत्मा वास्तव में पुनर्जन्म लेती है, या यह केवल धार्मिक और दार्शनिक अवधारणा मात्र है? आइए इसे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझते हैं.
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
भारत में हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में आत्मा और पुनर्जन्म का सिद्धांत महत्वपूर्ण स्थान रखता है.
हिंदू धर्म: भगवद गीता के अनुसार, आत्मा अजर-अमर होती है और यह केवल शरीर बदलती है, जैसे पुराने कपड़े बदलकर नए पहने जाते हैं. कर्म के आधार पर आत्मा को नया जन्म मिलता है.
बौद्ध धर्म: पुनर्जन्म को “संस्कारों का प्रवाह” माना जाता है, जिसमें व्यक्ति के पिछले कर्मों के अनुसार उसका अगला जन्म तय होता है.
जैन धर्म: आत्मा को शुद्ध करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए पुनर्जन्म आवश्यक माना गया है.
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आत्मा को लेकर साइंस क्या कहता है?
विज्ञान के अनुसार, आत्मा जैसी किसी ऊर्जा या तत्व का अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है. हालांकि, कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां छोटे बच्चे अपने पिछले जन्म की बातें याद करने का दावा करते हैं. भारत में डॉ. इयान स्टीवेन्सन और अन्य वैज्ञानिकों ने पुनर्जन्म पर शोध किए हैं और कुछ घटनाओं में आश्चर्यजनक समानताएं पाई गईं. लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से इसे संयोग या मानसिक प्रभाव माना जाता है.
आध्यात्मिक रूप से पुनर्जन्म की अवधारणा गहरी आस्था और धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है, जबकि वैज्ञानिक रूप से इसके कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं. यह रहस्य अभी भी अनसुलझा है, लेकिन यह विषय हमें जीवन और मृत्यु की गहराई को समझने की ओर प्रेरित करता है.
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