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वसुंधरा को CM प्रोजेक्ट करने की नई रणनीति, BJP आलाकमान पर दबाव का प्लान

वसुंधरा राजे ने सीएम प्रोजेक्ट करने की रणनीति में बदलवा की हैं. राजे इस रणनीति के तहत राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने की व्यूह रचना करने में लग गई हैं.

Updated on: 08 Aug 2021, 11:06 AM

नई दिल्ली :

राजस्थान बीजेपी (BJP) में अंसतोष की आंच तेज होती जा रही है. बीजेपी की राष्ट्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का पर कतरने की कोशिश में लगी हुई है तो वहीं पूर्व सीएम अपनी चाल चल रही हैं. वसुंधरा राजे ने सीएम प्रोजेक्ट करने की रणनीति में बदलवा की हैं. राजे इस रणनीति के तहत राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने की व्यूह रचना करने में लग गई हैं. तो इधर राष्ट्रीय नेतृत्व भी वसुंधरा को अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दे रही है कि पार्टी से इतर जाकर कोई काम ना करें. 

हाल ही में बीजेपी ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और उनके वफादारों को एक कड़ा संदेश दिया है. पूर्व मंत्री और तीन बार विधायक रह चुके रोहिताश शर्मा को छह साल के लिए पार्टी से बाहर निकाल दिया गया. यह राजे के लिए एक चेतावनी थी कि पार्टी लाइन से अगर अलग चलेगी तो ऐसा ही कुछ उनके साथ भी किया जा सकता है. रोहिताश सार्वजनिक रूप से वसुंधरा को सीएम के लिए प्रोजेक्ट करने में लगे हुए थे. इतना ही नहीं वो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की आलोचना भी कर रहे थे. जिसकी वजह से उन्हें इसकी कीमत चुकाना पड़ा. 

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रोहिताश शर्मा को बाहर करके वसुंधरा को भले ही डराने की कोशिश की गई हो, लेकिन वो कहां मानने वाली हैं. राजस्थान में उनका दबदबा है वो इसे भली प्रकार जानती है. वो इतनी जल्दी हार मानने वालों में नहीं है. इसलिए वसुंधरा राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए व्यूह रचना में लग गई हैं. बताया जा रहा है कि राजे समर्थक प्रमुख नेता पूरे राजस्थान में दौरे करके माहौल बनाने में जुटेंगे. ये दौरा गुप्त तौर पर होगा. राजे के विश्वासपात्र नेता प्रदेश में गुप्त यात्रा करेंगे. इतना ही नहीं खुद पूर्व सीएम राजे भी अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए गुप्त यात्रा पर निकलेंगे. 

बीजेपी को लगता है कि रोहिताश शर्मा को हटाने से असंतोष को दबाया जा सकता है. लेकिन इसका उलटा हो रहा है. पार्टी के अंदर गुटबाजी बढ़ने लगी है. 17 जुलाई को शर्मा को प्रदेश बीजेपी ने बाहर का रास्ता दिखाया था. तो वहीं 18 जुलाई जोधपुर में पोस्टर लगा था जिसमें वसुंधरा राजे और अन्य नेताओं की तस्वीर थी, लेकिन सतीश पूनिया नदारत थे. यह पोस्टर राष्ट्रीय महासचिव सीसीटी रवि के स्वागत के लिए लगाए गए थे. 

इतना ही नहीं राजे का वर्चस्व राजस्थान में कितना है इसके बारे में भवानी सिंह राजावत ने भी कहा था कि 'राजस्थान में भाजपा राजे है और राजे भाजपा है.' वहीं छाबड़ा प्रताप सिंह सिंघवी ने भी कहा था कि राज्य में राजे के बैगर सरकार बनाना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा था कि राजे राजस्थान की ही नहीं बल्कि देश की बड़ी नेता हैं. प्रदेश में जितनी लोकप्रियता राजे की है, उतनी किसी दूसरे नेता की नहीं है. उनका कोई विकल्प नहीं है. वसुंधरा राजे को प्रदेश की 36 कौम का समान रूप से समर्थन प्राप्त है. वे किसी जाति विशेष या क्षेत्र विशेष की नेता नहीं हैं.

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राजे को यह बताने के लिए कि वो पार्टी से ऊपर नहीं है इसे लेकर इधर भी मंथन चल रहा है. सचिन पायलट बीजेपी के वो हथियार हो सकते हैं जिससे वसुंधरा के पर कतरे जा सकते हैं. राज्य में कांग्रेस सरकार भी मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं कर पाई है. इसके पीछे की वजह सचिन पायलट का बगावती तेवर है. सचिन पायलट ने सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत के सुर छेड़े हुए हैं. बीजेपी को लगता है कि जैसे मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस दामन छोड़ बीजेपी के पहलू में आ बैठे हैं. वैसे ही सचिन पायलट पर यह दांव आजमाया जा सकता है. अगर सचिन पायलट बीजेपी में आते हैं तो राजे के लिए थोड़ी मुश्किल हो सकती है.  

चुनाव 2023 में होने हैं. ऐसे में बीजेपी के पास भी बहुत वक्त है रणनीति बनाने में. राजे से साथ या राजे के बैगर वाली रणनीति बनेगी तो जरूर लेकिन उसका खुलासा अभी नहीं होगा.