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काशी के ये हैं महत्वपूर्ण धर्मस्थल, इनके दर्शन बिना नहीं मिलेगा मोक्ष

आज हम आपको बताएंगे काशी के उन मंदिरों के बारे में जो अपना अलग स्थान रखते हैं. ऐसे में गंगा किनारे बने अन्नपूर्णा मंदिर, विशालाक्षी मंदिर और लोलार्क कुंड को कैसे भूल सकते हैं. आइए हम आज आपको इन मंदिरों की महत्ता के बारे में बताते हैं.

Updated on: 25 Mar 2021, 12:12 PM

highlights

  • वाराणसी में करें घाटों के मंदिरों के दर्शन
  • हर मंदिर की है एक अलग कहानी 
  • बनारस जाएं तो जरूर करें इन मंदिरों के दर्शन 

वाराणसी:

काशी गए और वहां के मंदिरों के दर्शन नहीं किये तो आपका देशाटन अधूरा रह गया. आपको बता दें कि बनारस गंगा के किनारे बसे अपने घाटों के लिए काभी मशहूर है. अगर आप वहां पर जाते हैं और काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर वहां पर घाट के किनारे आपको बहुत सारे अन्य देवी देवताओं के प्रसिद्ध मंदिर भी मिलेंगे. आज हम आपको बताएंगे काशी के उन मंदिरों के बारे में जो अपना अलग स्थान रखते हैं. ऐसे में गंगा किनारे बने अन्नपूर्णा मंदिर, विशालाक्षी मंदिर और लोलार्क कुंड को कैसे भूल सकते हैं. आइए हम आज आपको इन मंदिरों की महत्ता के बारे में बताते हैं.

अन्नपूर्णा मंदिर, वाराणसी
बनारस में काशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्‍नपूर्णा का मंदिर है. इन्‍हें तीनों लोकों की माता माना जाता है. कहा जाता है कि इन्‍होंने स्‍वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था. इस मंदिर की दीवाल पर चित्र बने हुए हैं. एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई हैं. अन्नपूर्णा मंदिर के प्रांगण में कुछ एक मूर्तियां स्थापित है,जिनमें मां काली,शंकर पार्वती,और नरसिंह भगवान का मंदिर है. अन्नकूट महोत्सव पर मां अन्नपूर्णा का स्वर्ण प्रतिमा एक दिन के लिऐ भक्त दर्शन कर सकतें हैं. अन्नपूर्णा देवी का संबंध उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर से भी माना जाता है . अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्तोत्र रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी. यथा.. अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे,ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती

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मंदिर से जुड़ी कहानी 
इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा यहां बेहद चर्चित है. कहते हैं एक बार काशी में अकाल पड़ गया था, चारों तरफ तबाही मची हुई थी और लोग भूखों मर रहे थे. उस समय महादेव को भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वे क्‍या करें. ऐसे में समस्‍या का हल तलाशने के लिए वे ध्‍यानमग्‍न हो गए, तब उन्हें एक राह दिखी कि मां अन्नपूर्णा ही उनकी नगरी को बचा सकती हैं. इस कार्य की सिद्धि के लिए भगवान शिव ने खुद मां अन्नपूर्णा के पास जाकर भिक्षा मांगी. उसी क्षण मां ने भोलेनाथ को वचन दिया कि आज के बाद काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा और उनका खजाना पाते ही लोगों के दुख दूर हो जाएंगे. तभी से अन्‍नकूट के दिन उनके दर्शनों के समय खजाना भी बांटा जोता है. जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि इस खजाने का पाने वाला कभी आभाव में नहीं रहता. 

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विशालाक्षी मंदिर, बनारस
विशालाक्षी शक्तिपीठ हिन्दू धर्म के प्रसिद्द 51 शक्तिपीठों में एक है. यहां देवी सती के मणिकर्णिका गिरने पर इस शक्तिपीठ की स्थापना हुई. यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर पतित पावनी गंगा के तट पर स्थित मीरघाट( मणिकर्णिका घाट) पर है. वाराणसी का प्राचीन नाम काशी है. काशी प्राचीन भारत की सांस्कृतिक एवम पुरातत्व की धरोहर है.काशी या वाराणसी हिंदुओं की सात पवित्र पुरियों में से एक है. देवी पुराण में काशी के विशालाक्षी मंदिर का उल्लेख मिलता है. 

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पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये.इन शक्तिपीठों मे पुर्णागिरि, कामाख्या असम,महाकाली कलकत्ता,ज्वालामुखी कांगड़ा,शाकम्भरी सहारनपुर, हिंगलाज कराची आदि प्रमुख है ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं. कहा यह भी जाता है कि जब भगवान शिव वियोगी होकर सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब भगवती के दाहिने कान की मणि इसी स्थान पर गिरी थी. इसलिए इस जगह को 'मणिकर्णिका घाट' भी कहते हैं. कहा यह भी जाता है कि जब भगवान शिव वियोगी होकर सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब भगवती का कर्ण कुण्डल इसी स्थान पर गिरा था.

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लोलार्क कुंड
वैसे तो काशी का हर नदी, कुंड, तालाब को ही जल तीर्थ की मान्यता प्राप्त है. इनका हर गोता पूण्यफलदायी है. लेकिन एक खास दिन किसी का लोलार्क कुंड में श्रद्धालुओं की डुबकी सिर्फ किसी पूण्य की ही डुबकी नहीं बल्कि आस्था और विश्वास की डुबकी है. हजारों दंपत्ति यहाँ पुत्र प्राप्ति की कामना का भाव लेकर इस कुंड में स्नान करते हैं और स्नान करने के पश्चात जो वश्त्र धारण किये होते हैं, उसे वहीँ छोड़  देते हैं, साथ ही किसी एक सब्जी का त्याग हमेशा के लिए कर देते हैं. मान्यता यह है कि बच्चे प्राप्ति की कामना से स्नान करने वालो को भगवान्सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किसी एक सब्जी का त्याग कर देना चाहिए. उसी मान्यता का पालन करते हुए बहुत से श्रद्धालू स्नान के उपरांत लौकी या कुम्ह्डों जैसी सब्जियां भी कुंड में प्रवाहित करते हैं.