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मुख्यमंत्री बनने से चूक गए तेजस्वी यादव, ये हैं उनकी हार के 5 कारण

अब तक रुझानों को लगभग नतीजों के रूप में देखने से लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल फिर से सत्ता से बाहर दिखाई दे रही है.

Updated on: 11 Nov 2020, 07:33 AM

पटना:

बिहार में फिर से नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार बनने जा रही है. राज्य की सभी 243 विधानसभा सीटों के प्राप्त परिणामों में एनडीए ने बहुमत के जादुए आंकड़े को पार कर लिया है. बिहार में सत्ताधारी एनडीए ने 125 सीटों पर जीत हासिल की है. हालांकि विपक्षी दलों का महागठबंधन भले ही चुनाव में बहुमत हासिल नहीं कर पाया, लेकिन 110 सीटें जीतकर महागठबंधन ने एनडीए को चुनावी मुकाबले में कड़ी टक्कर दी.

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चुनाव आयोग के मुताबिक, बिहार में सत्ताधारी एनडीए में शामिल बीजेपी ने 74 सीट, जदयू ने 43 सीट, विकासशील इंसान पार्टी ने 4 सीट और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं, विपक्षी महागठबंधन में शामिल आरजेडी ने 75 सीट, कांग्रेस ने 19 सीट, भाकपा माले ने 12 सीट, भाकपा एवं माकपा ने दो-दो सीटों पर जीत दर्ज की है. इस चुनाव में असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 5 सीटें, चिराग पासवान की पार्टी लोजपा और मायावती की पार्टी बसपा ने एक-एक सीट जीती है. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहा है. 

भले ही राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) इस बार के चुनाव में बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. आरजेडी ने चुनाव में 75 सीटों पर जीत हासिल की है. और राघोपुर से महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा और राजद के नेता तेजस्वी यादव अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गए हैं, मगर महागठबंधन की हार से तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूटकर चकनाचूर हो गया है. ऐसे में महागठबंधन की हार के अलग-अलग बताए जा रहे हैं. इन्ही में से 4 मुख्य वजह हम यहां नीचे आपको बताते हैं. 

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तेजस्वी के खिलाफ 'परिवारवाद' का असर  

बिहार के चुनाव में परिवारवाद को लेकर सियासी गहमागहमी देखने मिली थी. भारत में 'वंशवाद' की राजनीति को लेकर बहुत बहस हुई है, जिसका हिस्सा तेजस्वी यादव भी बने हैं. यह सच है कि तेजस्वी यादव अपनी पारिवारिक राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन सत्तारूढ़ बीजेपी-जदयू ने कई मौकों पर 'वंशवाद' की राजनीति के रूप में तेजस्वी यादव की छवि बिहार की जनता के सामने रखी. यहां की खुद प्रधानमंत्री मोदी भी पारिवारिक राजनीतिक के मुद्दे पर तेजस्वी यादव को निशाने पर ले चुके हैं. जिसका कहीं न कहीं बिहार की जनता के असर पड़ा होगा.

मुस्लिम+यादव+युवा समीकरण फेल

बिहार में राजद की हार का मतलब होगा कि उसका मुस्लिम+यादव+युवा समीकरण फेल हो गया है. महागठबंझन के तमाम वादों, तेजस्वी यादव की धुआंधार रैलियों और आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद बिहार में राजद का समीकरण (M-Y-Y) काम नहीं कर पाया. बीजेपी की हिंदुत्व की छवि के आगे राजद का यह समीकरण नाकामयाब रहा है. सीएए और ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों पर मुस्लिम समुदाय को राजद अपने पक्ष में नहीं कर पाई है. जो उसकी हार का एक कारण हो सकता है.

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जनता ने जंगलराज के 'युवराज' को नकारा

तेजस्वी की हार के बाद एक सवाल उठेगा कि क्या बिहार की जनता ने वास्तव में उस 'जंगलराज' के भय से राजद को राज्य का नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में किया. मोदी ने अपनी हर चुनावी रैली में बिहार की जनता को राजद के कार्यकाल की स्थिति याद दिलाई और यहां तक की तेजस्वी को उन्होंने 'जंगलराज का युवराज' तक बताया. ऐसे में माना जा सकता हैराजद के पिछले कार्यकाल की वजह से ही जनता ने जंगलराज के 'युवराज' को नकार दिया है.

10 लाख नौकरी का वादा नहीं चला

बिहार में युवा नेता तेजस्वी यादव का 10 लाख नौकरी का वादा नहीं चल सका है. महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था. हर चुनावी रैली में तेजस्वी ने लोगों को रोजगार की बात की, मगर उनका जादू चला नहीं है. तेजस्वी अपनी रैलियों में भीड़ तो बहुत जुटा पाए, उन्हें नौकरी के साथ तमाम तरह के सपने भी दिखाए, मगर युवा ने खुली आंखों से उन्हें वोट देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसकी वजह यह भी है कि तेजस्वी के 10 लाख के वादे के बदले में बीजेपी ने भी 19 लाख नौकरी देने का दांव चला था.

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महागठबंधन में साथी दलों से नेतृत्व पर झगड़ा

बिहार में राजद की हार की मुख्य वजहों में विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल दलों से नेतृत्व को लेकर झगड़ा भी है. जिस तरह से राजद ने बिना किसी दल से बातचीत किए हुए तेजस्वी यादव को एकतरफा महागठबंधन का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया था. जिसकी वजह से मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी, जीतन राम मांझी की हम पार्टी ने उनका साथ छोड़ दिया और वह बीजेपी के साथ चली गईं. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव की पार्टी ने भी महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा है.