चुपचाप तीर छाप का जादू नीतीश के पक्ष में, Exit Poll रह गए धरे
शुरुआती रुझानों में जेडीयू को सीटों का नुकसान तो नज़र आ रहा है लेकिन ये उतना बड़ा नहीं है जिसकी महागठबंधन ने उम्मीद की थी.
पटना:
बिहार विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Result 2020) के शुरुआती रुझानों में एनडीए को बहुमत मिलता नज़र आ रहा है. हालांकि महागठबंधन भी कड़ी टक्कर दे रहा है. लगभग 10 सीटें ऐसी हैं जहां अंतर हजार या उससे भी कम है. चुनाव के दौरान ऐसा माना जा रहा था कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी है और बढ़ती बेरोजगारी उन्हें चुनावों के नतीजों में बड़ा झटका देने जा रही है. हालांकि शुरुआती रुझानों में जेडीयू को सीटों का नुकसान तो नज़र आ रहा है लेकिन ये उतना बड़ा नहीं है जिसकी महागठबंधन ने उम्मीद की थी.
पीएम मोदी की रैली ने बदली फिजां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार चुनाव के दौरान चार दिनों में कुल 12 रैलियां कीं. उन्होंने 23 अक्टूबर को चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया और 3 नवंबर को दूसरे चरण के मतदान के दिन आखिरी रैली को संबोधित किया. उन्होंने 23 अक्टूबर को सासाराम, गया और भागलपुर, 28 अक्टूबर को दरभंगा, मुजफ्फरपुर और पटना, 1 नवंबर को छपरा, पूर्वी चंपारण और समस्तीपुर जबकि 3 नवंबर को पश्चिम चंपारण, सहरसा और फारबिसगंज में चुनावी रैलियों को संबोधित किया था. उन्होंने नीतीश सरकार के कामों को दोहराया. माना जाता है कि बिहार के मतदाताओं की नीतीश से नाराजगी पीएम मोदी के आग्रह के आगे धरी रह गई. नतीजतन रुझान एक्जिट पोल के एकदम खिलाफ आ रहे हैं.
जंगल राज का चला कार्ड
बिहार के तीनों चरणों के मतदान में ऐसा लगा कि भले ही युवा वोटर्स तेजस्वी यादव और महागठबंधन का खुलकर साथ दे रहे हों लेकिन 36 वर्ष आयु से ऊपर का वोटर अभी भी एनडीए और खासकर नीतीश कुमार के समर्थन में बने रहेंगे. बता दें कि बिहार सरकार के सभी बड़े मंत्री, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बीजेपी के सभी बड़े नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लगातार चुनावी कैंपेन और रैलियों में लालू यादव के 'जंगलराज' का जिक्र किया था. जानकारों के मुताबिक भले ही युवाओं में जंगलराज की स्मृति न हो और लॉ एंड ऑर्डर उनके लिए कोई मुद्दा न रहा हो लेकिन 36 साल से ऊपर के वोटर्स के लिए ये एक मुद्दा रहा है और जेडीयू-बीजेपी को रुझानों में मिल रहीं सीटों से बात साबित होती भी नज़र आ रही हैं.
'चुपचाप तीर छाप' का नारा चला ?
बता दें कि भले ही कैंपेन के दौरान महागठबंधन काफी आगे नज़र आ रहा था और एनडीए पिछड़ रहा था, लेकिन वोटिंग और एग्जिट पोल्स के बाद इस बात का आभास हो गया था कि नीतीश के समर्थन में 'साइलेंट वोटर' फैक्टर काम कर सकता है. चुनावों में 'चुपचाप तीर छाप' का नारा भी सामने आया. बिहार में इस बार मतदाताओं ने खासर 45 से ऊपर वय के चुप्पी साधे रहे. हालांकि उन्होंने मतदान के दौरान सुशासन और नीतीश कुमार की विकास वाली छवि को जेहन में रखा.
शराबबंदी ने महिलाओं को दी राहत
ऐसा माना जा रहा है कि औरतों के एक बड़े वर्ग ने इस बार भी बिना शोर-शराबे के नीतीश के समर्थन में ही मतदान किया है. इसकी एक वजह नीतीश सरकार द्वारा शराबबंदी भी रही. हालांकि यह भी सही ही है कि शराब की कालाबाजारी ने कुछ परिवारों को आर्थिक तौर पर आहत भी किया. हालांकि ऐसे परिवार भी कम संख्या में नहीं हैं, जिन्हें शराबबंदी से काफी राहत मिली. संभवतः यही वजह है कि महिलाओं ने नीतीश कुमार के पक्ष में मतदान किया.
आखिरी चुनाव की इमोशनल अपील
तीसरे चरण के मतदान से पहले चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने एक सभा के दौरान इमोशनल अपील करते हुए कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव हो सकता है. इसका उन मतदाताओं पर गहरा असर पड़ा है, जिन्होंने लालू राज को देखा था और कानून व्यवस्था समेत जबरन वसूली से लेकर अपराध के दबदबे से त्रस्त रहे. यह वही वोट बैंक माना जाता है, जो पिछले चुनाव में भी चुप रहा और नीतीश के पक्ष में गया. नतीजतन एक्जिट पोल को धता बता नीतीश सत्ता में आए थे.
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