logo-image

चीन के बाद अब नेपाल भी बिछा रहा भारतीय सीमा तक सड़कों का जाल, हेलिपैड भी तैयार

चीन के बाद अब नेपाल भी भारतीय सीमा तक सड़कों का जाल बिछा रहा है. नेपाल भारतीय सीमा के पास धारचूला-तिनकर रोड नाम से सड़क निर्माण कर रहा है.

Updated on: 27 Jun 2020, 01:49 PM

देहरादून:

चीन (China) के बाद अब नेपाल भी भारतीय सीमा तक सड़कों का जाल बिछा रहा है. नेपाल (Nepal) भारतीय सीमा के पास धारचूला-तिनकर रोड नाम से सड़क निर्माण कर रहा है. धारचूला-तिनकर मोटर मार्ग के साथ ही इस समय नेपाल में उत्तराखंड (Uttarakhand) के पिथौरागढ़ जिले से लगी सीमा पर सड़कों का काम तेजी से चल रहा है. धारचूला और बैतड़ी में दोनों देशों की सीमांकन करने वाली काली नदी के किनारे बसे गांवों तक सड़कों का निर्माण हो रहा है. नेपाल भी भारत की सीमा के नजदीक तक तेजी से सड़कों का निर्माण करा रहा है. उत्तराखंड से नेपाल की 275 किलोमीटर लंबी सीमा लगी है. इतना ही नहीं, भारतीय सीमा के पास नेपाल ने घाटियाबागर में एक हेलीपैड भी बनाया है.

यह भी पढ़ें: चीन और पाकिस्तान को मिलेगा करारा जवाब, साल के अंत तक भारत को मिलेगा पहला S-400 डिफेंस सिस्टम

भारत और नेपाल मित्र राष्ट्र हैं. सिर्फ सांस्कृतिक तौर पर ही नहीं, बल्कि पौराणिक तौर पर भी यह दोनों देश एक दूसरे के बहुत करीबी हैं. कहा जाता है कि माता जानकी का मायका नेपाल में था. इसलिए नेपाल भारत के रिश्ते पौराणिक काल से चले आ रहे हैं. भारत और नेपाल के बीच में रोटी बेटी का रिश्ता बताया जाता है. लेकिन बीते 1 साल से नेपाल के व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है. खासतौर पर भारत ने जब चीन बॉर्डर के लिपुलेख तक अपनी सड़क पहुंचाई तो नेपाल के नाराजगी तब से साफ तौर पर देखी जा रही है.

नेपाल दावा कर रहा है कि धारचूला के सीमांत क्षेत्र लिम्पियाधुरा, कालापानी और गुंजी सभी उसके क्षेत्र हैं. यहां तक कि नेपाल ने भारतीय सीमा के भीतर साढे 300 वर्ग किमी क्षेत्र में अपना दावा किया है इतना ही नहीं नेपाल ने अपनी संसद में इन सभी क्षेत्रों से संबंधित एक नया नक्शा भी पास करवा लिया है. नेपाल इन दिनों भारत से लगते अपने सीमांत गांव छांगरु, और तिनकर के लिए सड़क बना रहा है.

यह भी पढ़ें:  चीन के खिलाफ PM Modi सरकार के समर्थन में आया RSS, चीनी सामानों की जलाएगा होली

इतना ही नहीं इस क्षेत्र में हेलीपैड बनाने का काम भी जोरों पर है. नेपाल क्षेत्र में आर्मी बैरिक भी बना रहा है. आपको बता दें कि अब तक इस क्षेत्र में नेपाल का कोई भी आर्मी बेरिक नहीं थी. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और नेपाल के बीच में 1816 में जो सुगौली संधि हुई थी उसका पालन भी नेपाल नहीं कर रहा है. नेपाल चीन के भड़का वे में आकर भारत के खिलाफ लगातार अपनी कार्रवाई तेज कर रहा है, जबकि इसका सबसे बड़ा नुकसान नेपाल को खुद होगा.

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत का कहना है कि चीन और पाकिस्तान के साथ हम सीधे तौर पर लड़ सकते हैं, क्योंकि वह शुरुआत से ही हमारे दुश्मन रहे हैं. लेकिन नेपाल हमारा मित्र राष्ट्र है. सांस्कृतिक तौर से लेकर पौराणिक तौर तक हमारा संबंधी है. नेपाल की सीमा हमारे लिए प्रथम रक्षा का काम भी करती है, लेकिन अब नेपाल के स्वभाव में तल्ख़ियां रही हैं और अपने निवेश और विकास के लिए वह चीन की मदद ले रहा है, जो ठीक नहीं है. ऐसे में हमें इस मामले पर नेपाल से भी बात करने की जरूरत है.

यह भी पढ़ें: क्या RGF के पैसे लौटाने से लद्दाख में चीनी अतिक्रमण खत्म हो जाएगा: चिदंबरम

हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का कहना है कि नेपाल का स्वभाव जरूर बदला है, लेकिन इसमें फिलहाल कोई चिंता की बात नहीं है. जहां तक आर्मी बैरक से लेकर हेलीपैड बनाने की बात है तो हर देश अपने आप को मजबूत करने के लिए अपनी सुरक्षा के लिए ऐसा करता है, इसमें फिलहाल कुछ गलत नजर नहीं आता.

यह वीडियो देखें: