Delhi Assembly Results 2020: केजरीवाल की हैट्रिक और कांग्रेस फिर दूसरी बार शून्य पर
हालिया दौर में 1998 के विधानसभा चुनाव में 52 सीटों से शुरू हुआ कांग्रेस का सफर हर गुजरते चुनाव में बद्तर होता गया. आलम यह है कि दिल्ली में कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार शून्य सीट हासिल करने जा रही है.
highlights
- केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की हैट्रिक लगाने जा रहे हैं.
- कांग्रेस एक भी सीट पर न तो आगे थी और न ही किसी सीट पर जीती थी.
- शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार 15 सालों तक सत्ता में रही.
नई दिल्ली:
शाम चार बजे तक दिल्ली विधानसभा चुनावों (Delhi Assembly Elections 2020) के रुझान बता रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की हैट्रिक (hat-trick) लगाने जा रहे हैं. इस समय तक आम आदमी पार्टी (AAP) 63 सीटों पर आगे चल रही थी या कई पर चुनाव जीत चुकी थी. भारतीय जनता पार्टी (BJP) शुरुआती रुझानों में लगभग दो दर्जन सीटों पर बढ़त बनाए रखने में सफल होने के बाद इस समय तक दहाई के अंक में सिमट आई थी. सबसे बुरा हाल कांग्रेस (Congress) का रहा, जो शुरुआती रुझानों में महज कुछ पलों के लिए एक सीट पर बढ़त बनाए रखने के बाद गायब ही हो गई. देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए यह बेहद शर्मनाक स्थिति है. खासकर यह देखते हुए कि कुछ साल पहले शीला दीक्षित (Shiela Dixit) के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार 15 सालों तक सत्ता में रही.
2020
कांग्रेस फिर शून्य
इस साल का विधानसभा चुनाव भी लस्त-पस्त कांग्रेस के लिए कोई उम्मीद नहीं जगा पाया. एक बार फिर कांग्रेस के खाते में शून्य ही आता दिख रहा है. खबर लिखने तक कांग्रेस एक भी सीट पर न तो आगे थी और न ही किसी सीट पर उसे जीत मिली थी. उलटे सामने यह आ रहा था कि दिल्ली कांग्रेस के तमाम नेता और कार्यकर्ता बीजेपी की हार पर कहीं ज्यादा खुश थे बजाय अपनी करारी और शर्मनाक शिकस्त के. रुझानों के आधार पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस अधिसंख्य सीटों पर तीसरे स्थान पर रहेगी औऱ कई सीटों पर तो जमानत भी नहीं बचा सकेगी.
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2015
आप शीर्ष पर
2015 का दिल्ली विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे खराब था. अन्ना आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी के उभार तले विपक्ष के सारे किले दब गए. बीजेपी को ही तीन सीटें मिल सकी थीं. कांग्रेस को मिला था शून्य यानी एक भी सीट नहीं. स्थिति यहां तक खराब थी कि कांग्रेस के दिग्गज नेता भी औंधे मुंह गिर गए थे. आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें हासिल हुईं. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में फिर सरकार बनी. आप को करीब 54 फीसदी, बीजेपी को 32 फीसदी और कांग्रेस को महज 9.7 फीसदी वोट मिले. यानी दो साल के भीतर ही कांग्रेस के वोट प्रतिशत 24 से घटकर 10 पर आ गया.
2013
पलट गई बाजी
कॉमनवेल्थ घोटाले की गूंज और अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी के उदय ने माहौल को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. 2013 के चुनाव में बाजी पूरी तरह से पलट गई. विधानसभा त्रिशंकु रही. भारतीय जनता पार्टी को 31, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें मिलीं थीं. बीजेपी को करीब 33 फीसदी, आप को करीब 29 फीसदी और कांग्रेस को करीब 24 फीसदी वोट मिले. आप ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, हालांकि यह सरकार महज 49 दिन चल सकी. इसके बाद राष्ट्रपति शासन लग गया.
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2008
शीला की हैट्रिक
2008 के चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जीत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. कांग्रेस को कुल 43 सीटें हासिल हुई थीं. कांग्रेस को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे. इस चुनाव में कांग्रेस के पतन की शुरुआत हुई और उसे 3 सीटों की नुकसान हुआ था. इस चुनाव में बीजेपी को तीन सीटों की बढ़त के साथ 23 सीटें मिलीं. उसे 36.34 फीसदी वोट मिले. इस चुनाव में बसपा भी तीसरे नंबर पर रही. 14.05 फीसदी मतों के साथ बसपा के खाते में 2 सीटें आई थीं.
2003
फिर कांग्रेस राज
2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर जबरदस्त जीत मिली. उस चुनाव में कांग्रेस ने 47 सीटें हासिल कर एक बार फिर शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48.13 फीसदी वोट हासिल किए थे. दूसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी ने 20 सीटें और करीब 35 फीसदी वोट हासिल किए थे.
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1998
शीला युग की शुरुआत
1998 के चुनाव में महंगाई एक प्रमुख मसला था. कहा जाता है कि प्याज की महंगाई ने बीजेपी की सरकार गिरा दी थी. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. शीला दीक्षित के उभार की शुरुआत भी यहीं से हुई और वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं. उसे करीब 48 सीटें मिलीं. सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली बीजेपी हार गई और उसे महज 15 सीटें मिलीं. बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले.
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