logo-image

Sri Lanka Crisis: जनाक्रोश और सहयोगियों का साथ छोड़ने बाद राष्ट्रपति ने ली इमरजेंसी वापस

सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) गठबंधन के सदस्यों ने भी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से किनारा कर लिया. लगभग 40 सांसदों के किनारा करने से राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की सरकार अल्पमत में आ गई.

Updated on: 06 Apr 2022, 07:07 AM

highlights

  • राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे संसद में अल्पमत में आए
  • सहयोगियों समेत विपक्ष की इस्तीफे की मांग हुई तेज
  • जनाक्रोश के दबाव में आ देर रात लिया आपातकाल वापस

कोलंबो:

श्रीलंका (Sri Lanka) में ऐतिहासिक आर्थिक मंदी के बीच राजनीतिक संकट भी बढ़ता जा रहा है. राजपक्षे परिवार के प्रति आक्रोश अब सरकार विरोधी लहर का रूप ले चुका है. इस बीच राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapakse) ने अपने घर के बाहर हिंसक विरोध-प्रदर्शन के बाद बीते शुक्रवार को थोपा गया आपातकाल (Emergency) मंगलवार देर रात वापस ले लिया है. इसके पहले उन्होंने विपक्ष के साथ सरकार बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे विपक्ष ने ठुकरा दिया. साथ ही उनसे इस्तीफा देने की मांग की, जिसे गोटाबाया राजपक्षे ने सिरे से खारिज कर दिया. कैबिनेट के सभी मंत्रियों के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति ने अपने भाई बासिल राजपक्षे को बर्खास्त कर अली साबरी के नया वित्त मंत्री नियुक्त किया था, लेकिन देर रात अली साबरी ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस तरह जनाक्रोश के बीच श्रीलंका में राजनीतिक संकट और गहरा गया है. 

संसद के सत्र में गोटाबाया का अपनों ने भी छोड़ा साथ
गौरतलब है कि कैबिनेट के इस्तीफे के बाद मंगलवार को संसद का आपात सत्र आहूत किया गया था, जिसमें सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) गठबंधन के सदस्यों ने भी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से किनारा कर लिया. लगभग 40 सांसदों के किनारा करने से राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की सरकार अल्पमत में आ गई. इसके पहले राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने विवादों के केंद्र में रहे अपने भाई औऱ वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे को बर्खास्त कर अली साबरी को वित्त मंत्री नियुक्त किया था. यह अलग बात है कि नियुक्ति के 24 घंटे के अंदर ही अली साबरी ने भी इस्तीफा दे दिया. 

यह भी पढ़ेंः चीन-PAK पर और मुस्तैदी से होगी भारत की निगरानी, गृह मंत्रालय ने किया ये काम

गोटाबाया ने इस्तीफे से इंकार कर दिया विकल्प
इस तरह संसद के विशेष सत्र में सहयोगी सांसदों के तटस्थ रहने से राजपक्षे सरकार अल्पमत में आ गई. इसके बावजूद राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया. इसके बजाय उन्होंने कहा कि संसद में बहुमत साबित करने वाली किसी भी पार्टी को वह सत्ता सौंपने को तैयार हैं. माना जा रहा है कि राजनीतिक संकट का हल निकालने के लिए वह अपने भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की जगह किसी और को नया पीएम बना सकते हैं या दूसरे विकल्प बतौर मध्याविधि चुनाव की घोषणा कर सकते हैं. हालांकि सहयोगी सांसदों के साथ छोड़ने से उनकी पार्टी अल्पमत में आ गई है.

बहुमत से काफी दूर है सरकार
आंकड़ों की बात करें तो 2020 के चुनाव में 150 सीटों पर जीत दर्ज करने वाले गठबंधन के 41 सांसदों ने उससे किनारा कर लिया है. गोटाबाया को 225 सदस्यीय सदन में बहुमत साबित करने के लिए 113 मतों की जरूरत होगी. इस तरह उनके पास बहुमत के लिहाज से पांच सीटें कम है. संभवतः इसी दबाव और गणित को विपरीत जाते देख राष्ट्रपति ने देर रात आपातकाल वापस लेने की अधिसूचना जारी कर दी. मंगलवार देर रात जारी गजट अधिसूचना संख्या 2274/10 में राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने आपातकाल नियम अध्यादेश को वापस ले लिया है, जिससे सुरक्षाबलों को देश में किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए व्यापक अधिकार मिले थे.

यह भी पढ़ेंः श्रीलंका का फैसला- इराक समेत कई देशों में दूतावास किए बंद

आर्थिक संकट ने देश को पटरी से उतारा
श्रीलंका वर्तमान में इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. ईंधन, रसोई गैस के लिए लंबी लाइन, आवश्यक वस्तुओं की कम आपूर्ति और घंटों बिजली कटौती से जनता महीनों से परेशान है. दूध-ब्रेड जैसी जरूरी वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं. विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कम रह जाने से श्रीलंका सरकार अन्य देशों से जरूरी वस्तुओं का आयात नहीं कर पा रही है. हालांकि भारत ने पड़ोसी देश होने का धर्म निभाते हुए श्रीलंका को ईंधन और चावल की हजारों टनों की एक खेप भेजी है और आगे भी मानवीय मदद जारी रखने का ऐलान किया है.