उपराष्ट्रपति पद के लिये कमला हैरिस की उम्मीदवारी को लेकर भारतीय-अमेरिकियों की मिली जुली प्रतिक्रिया
कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर प्रभावशाली भारतीय-अमेरिकियों ने मिली जुली प्रतिक्रिया दी है. इनमें से अधिकतर ने हैरिस के पिछले रिकॉर्ड और भारत तथा भारतीय समुदाय के प्रति उनके रुख को लेकर प्रतिकूल प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
ह्यूस्टन:
कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर प्रभावशाली भारतीय-अमेरिकियों ने मिली जुली प्रतिक्रिया दी है. इनमें से अधिकतर ने हैरिस के पिछले रिकॉर्ड और भारत तथा भारतीय समुदाय के प्रति उनके रुख को लेकर प्रतिकूल प्रतिक्रिया व्यक्त की है. डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन ने बुधवार को भारतीय-अमेरिकी तथा अफ्रीकी-अमेरिकी हैरिस (55) को तीन नवंबर को होने वाले चुनाव के लिये उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था.
हैरिस के पिता का संबंध जमैका से था जबकि मां का संबंध भारत से. अगर वह चुनाव जीतती हैं, तो अमेरिकी की पहली महिला उपराष्ट्रपति बनेंगी. हैरिस की उम्मीदवारी को लेकर विभिन्न भारतीय-अमेरिकी समूहों से बात की गई. उन्हें उनके उम्मीदवार बनने पर गर्व तो है, लेकिन भारतीय समुदाय और भारत से जुड़े जटिल मुद्दों को संभालने की उनकी क्षमता पर संदेह भी है.
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इंडो-अमेरिकन कंजर्वेटिव्स ऑफ टेक्सास की संस्थापक सदस्य राधा दीक्षित ने कहा, ''डेमोक्रेटिक पार्टी की ‘पहचान की राजनीति’ पर निर्भरता ने उनके अभियान को कमज़ोर कर दिया है, क्योंकि सबका ध्यान उनके भारतीय, एशियाई, जमैकन, अफ्रीकी-अमेरिकी और काली महिला होने पर केन्द्रित हो गया है. समुदायों में विभाजन अब खुलकर सामने आने लगा है. अब तक कमला ने अपनी हिंदू या भारतीय विरासत पर दावा करने की कोशिश नहीं की.
लोग उनके मूल्यों पर जोर दे रहे हैं.'' पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित तथा प्रतिष्ठित ओल्काहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर सुभाष काक हैरिस की उम्मीदवारी को लेकर खुश हैं, हालांकि उन्हें उनके राजनीतिक जुड़ाव को लेकर खुशी नहीं है. काक ने कहा, ''मैं इस बात को लेकर निराश हूं कि उनका राजनीतिक रुख भारत के अनुकूल नहीं है.
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उनका झुकाव वामपंथ की ओर है. ऐसे में, वह जो बाइडेन से अलग दिखाई नहीं देतीं, जो एक ऐसे एजेंडे पर चल रहे हैं, जिसमें अमेरिका और भारत के बीच विशेष संबंधों को मान्यता देने की जरूरत दिखाई नहीं पड़ती.'' हिंदुओं के हितों की बात करने वाले संगठन 'अमेरिकन्स फॉर हिंदू' के संस्थापक आदित्य सत्संगी को लगता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी ने भारतीय-अमेरिकी वोटरों को विभाजित करने की सोची समझी रणनीति के तहत हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है.
सत्संगी ने कहा, ''वह हमेशा भारत के बजाय अपने अफ्रीकी मूल का होने का दावा करती हैं और कैलिफॉर्निया के अटॉर्नी के तौर पर उनके रिकॉर्ड को लेकर कई सवाल हैं. हकीकत यह है कि उन्होंने तो कैलिफॉर्निया में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया था. अटलांटा में रहने वाली राधिका सूद ने कहा, ''हैरिस भारत-विरोध और हिंदू विरोधी ब्रिगेड की समर्थक हैं, जो खुद को काली कहती हैं और अपने भारतीय परिवार से नफरत करती हैं. उन्होंने कभी खुद को भारतीय नहीं माना.''
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सूद ने कहा उन्होंने कश्मीरी हिंदुओं पर हुए अत्याचारों की समझ नहीं है. उनका झुकाव पाकिस्तान की तरफ है. भारतीय-अमेरिकी पाकिस्तान समर्थक, चीन समर्थक हैरिस को केवल इसलिये वोट नहीं देंगे कि उनकी मां भारतीय थीं.
ह्यूस्टन के एक सामुदायिक कार्यकर्ता राजीव वर्मा को लगता है कि हैरिस के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के साथ ही बाइडेन के प्रचारक भारतीय-अमेरिकियों के वोट हासिल करने की उम्मीद खो चुके हैं, क्योंकि हैरिस अनुच्छेद 370 को खत्म किया जाने और भारतीय संसद से पारित नये नागरिकता संशोधन कानून दोनों का विरोध कर चुकी हैं.
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