भगोड़े नीरव मोदी की लंदन हाई कोर्ट में प्रत्यर्पण मामले में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
पिछले तीन दिनों में लंदन हाई कोर्ट में पक्ष-विपक्ष की बहस नीरव मोदी के खिलाफ धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के वास्तविक मामले से हटकर इस मसले पर चली कि क्या उसके नाजुक मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुए भारत प्रत्यर्पित करना उचित होगा.
highlights
- मनी लांड्रिंग और धोखाधड़ी के बजाय नीरव के डिप्रेशन पर हुई तीन दिन बहस
- लंदन हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें और फोरेंसिक साइकाइट्रिस्ट को सुना
लंदन:
लंदन हाई कोर्ट ने तीन दिन चली लंबी बहस के बाद भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी (Nirav Modi) को भारत प्रत्यर्पित किए जाने के मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है. राजनयिक आश्वासनों और मानसिक स्वास्थ्य पर हाई कोर्ट में दी गई दलीलें और नीरव के मानसिक स्वास्थ्य पर हुई विस्तार से चर्चा से संकेत मिलता है कि अदालत का फैसला भारत और ब्रिटेन के बीच परस्पर प्रत्यर्पण कानून के मूलभूत क्षेत्रों पर मिसाल कायम कर सकता है. गौरतलब है कि पिछले तीन दिनों में लंदन हाई कोर्ट में पक्ष-विपक्ष की बहस नीरव मोदी के खिलाफ धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के वास्तविक मामले से हटकर इस मसले पर चली कि क्या उसके नाजुक मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुए भारत प्रत्यर्पित (Extradition) करना उचित होगा.
अभियोजन और बचाव पक्ष अवसाद के उपचार के एक बिंदु पर सहमत
क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) का प्रतिनिधित्व कर रहे हेलेन मैल्कम ने अदालत में कहा कि यह अकल्पनीय है कि नीरव मोदी अपनी वर्तमान स्थिति के आधार पर ब्रिटेन में मुकदमे का सामना नहीं कर सकता है. लंदन हाई कोर्ट में बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष अदालत को नीरव मोदी के डिप्रेशन पर संतुष्ट करने की चेष्टा कर रहे हैं. बुधवार को भी पूरी बहस इसी मसले के इर्द-गिर्द घूमती रही. हेलेन मैल्कम के अनुसार, एक संभावना यह भी थी कि प्रत्यर्पण से नीरव मोदी की स्थिति में सुधार हो सकता है. खासकर जब उन्हें पता चलेगा कि 'उनके मारे जाने का डर सच नहीं है या कि वह एकांत कारावास में नहीं रहेगा या कि वह अपने परिवार से लगातार संपर्क में रहेगा'. हालांकि अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों इस बात पर सहमत थे कि अवसाद का इलाज किया जा सकता है. इसके बाद एडवर्ड फिट्जगेराल्ड ने मोदी के बचाव में दलील देते हुए कहा कि इस बात की संभावना है कि प्रत्यर्पण से उनकी हालत काफी खराब हो जाएगी.
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बचाव पक्ष ने भारतीय जेलों की दुर्दशा का रोना रोया
बचाव पक्ष ने इसके बाद वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में उठाए गए बिंदुओं पर फिर से प्रकाश डाला. इनमें भी भारतीय जेलों की स्थिति, अंडरट्रायल कैदियों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और धीमी न्यायिक प्रक्रिया. एडवर्ड फिट्जगेराल्ड ने खासतौर पर ऑर्थर रोड जेल के लिए कहा कि उसका कोई सुसाइड प्रोटोकॉल नहीं है और जो आश्वासन दिया गया है उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि निजी स्वास्थ्य देखभाल के लिए अदालत की मंजूरी चाहिए होगी. एडवर्ड ने कहा, 'भारत के तमाम वरिष्ठ राजनेताओं ने नीरव मोदी मामले में पहले ही न्याय कर डाला है. उसके पुतले फूंके जा चुके हैं.' फिट्जगेराल्ड ने यह भी कहा कि ऐसा एक भी सबूत नहीं है कि मुंबई की 'कुख्यात' ऑर्थर रोड जेल में रखा गया कोई शख्स पहले से बेहतर हो गया हो. एक समय तो लॉर्ड जस्टिस स्टुअर्ट स्मिथ को फिट्जगेराल्ड को भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि से जुड़े दायित्वों के बारे में बताना पड़ा. साथ ही यह भी जताना पड़ा कि भारत एक मित्रवत देश है. इसके जवाब में फिट्जगेराल्ड ने कहा, 'ऐसे अनगिनत मामले हैं, जब संबंधित शख्स का मांग के अनुरूप प्रत्यर्पण नहीं किया है.' इस तर्क के जरिये उन्होंने संगीत निर्देशक नदीम सैफी का जिक्र किया, जिसका ब्रिटिश अदालतों ने भारत को प्रत्यर्पण करने से इंकार कर दिया था.
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दो फोरेंसिक साइकाइट्रिस्ट ने भी रखा अपना निष्कर्ष
मंगलवार को लंदन हाई कोर्ट ने दो फोरेंसिक साइकाइट्रिस्ट का पक्ष भी सुना, जो नीरव मोदी के अवसाद को लेकर अलग-अलग राय रखते थे. अभियोजन पक्ष की ओर से पेश प्रोफेसर फैजल इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि नीरव को हल्का अवसाद है. इसके साथ ही उन्होंने अनिश्चिंतता जाहिर की कि भारतीय जेल में नीरव का अवसाद और गंभीर हो सकता है. इसके उलट नीरव मोदी की तरफ से पेश हुए प्रोफेसर फॉरेस्टर ने कहा कि नीरव को मॉडरेट दर्जे का डिप्रेशन है, जो प्रत्यर्पण की स्थिति में और भी बिगड़ सकता है. तमाम अन्य मसलों के साथ यह दो अलग-अलग निष्कर्ष भी दो जजों की खंडपीठ के अंतिम निर्णय का आधार बन सकते हैं.
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