अफगानिस्तान: चीन की तरह अंधेरे में डूब सकता है काबुल, तालिबान नहीं चुका पा रहा कंपनियों का बिल 

अफगानिस्तान में बिजली का संकट धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों का बकाया भुगतान करने में नाकाम रहने के चलते काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान के अंधेरे में डूबने लगे हैं.  

अफगानिस्तान में बिजली का संकट धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों का बकाया भुगतान करने में नाकाम रहने के चलते काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान के अंधेरे में डूबने लगे हैं.  

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Kuldeep Singh
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चीन की तरह अंधेरे में डूब सकता है काबुल, तालिबान नहीं चुका पा रहा बिल ( Photo Credit : न्यूज नेशन)

तालिबान में अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा तो कर लिया है लेकिन उसे लगातार नई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. तालिबान अफगानिस्तान में बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों का बकाया भुगतान करने में नाकाम हो रहा है. इस कारण काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान में बिजली संकट गहरा गया और कई बड़े शहरों के अंधेरे में डूबने का खतरा है. वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान के विद्युत प्राधिकरण दा अफगानिस्तान ब्रेशना शेरकात के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी दाउद नूरजाई बताते हैं कि अफगानिस्तान बिजली आपूर्ति के लिए मोटे तौर पर उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से होने वाले आयात पर निर्भर है, जिसमें से आधी आपूर्ति तो तुर्कमेनिस्तान से आती है.

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जानकारी के मुताबिक अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के दो हफ्ते बाद इस्तीफा देने वाल नूरजाई प्राधिकरण के अधिकारियों के संपर्क में बने हुए हैं. उन्होंने वाल वाल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि घरेलू बिजली उत्पादन देश में सूखे की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. इसके अलावा अफगानिस्तान में राष्ट्रीय ग्रिड जैसी कोई व्यवस्था भी नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि चूंकि तालिबान अब सत्ता में है, इसलिए वह ट्रांसमिशन लाइनों पर हमला नहीं कर रहा है, जिसके चलते अफगानिस्तान को पर्याप्त बिजली मिल रही है, लेकिन जल्द ही भुगतान नहीं हुआ तो आपूर्ति रोकी जा सकती है. तालिबान के सामने सबसे बड़ी समस्या पैसों की है. अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिति पहले ही खराब थी. तालिबान के कब्जे के बाद से विदेशी ममद भी नहीं मिल पा रही है. अफगानिस्तान पिछले दो दशक से यह पूरी तरह विदेशी सहायता पर निर्भर रहा है. देश की जीडीपी में अंतरराष्ट्रीय मदद का हिस्सा करीब 43 फीसदी है. अफगानिस्तान के लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए मदद ही एक तरीका है.  

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दरअसल अफगानिस्तान के हालात लगातार चिंताजनक बने हुए हैं. इस तरह के हालात पर संयुक्त राष्ट्र लगातार चिंता जताता आ रहा है, वहीं रविवार को यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसप बोरेल ने कहा कि अफगानिस्तान पर गंभीर मानवीय, आर्थिक व सामाजिक संकट का खतरा बना हुआ है, जो क्षेत्रीय व वैश्विक मुसीबतें बढ़ाने वाला है, क्योंकि अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जहां एक तिहाई आबादी दो डॉलर प्रतिदिन से भी कम की आय में गुजर-बसर कर रही है.  

Source : News Nation Bureau

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