गर्भवती महिला ने फर्श पर दिया बच्चे को जन्म, वीडियो देख टूट जाएगा दिल

सोशल मीडिया पर एक दर्दनाक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें देखा जा सकता है कि एक महिला फर्श पर बैठकर अपने बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर हो गई. इस वीडियो को देखने के बाद लोगों ने गुस्सा जाहिर की है.

सोशल मीडिया पर एक दर्दनाक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें देखा जा सकता है कि एक महिला फर्श पर बैठकर अपने बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर हो गई. इस वीडियो को देखने के बाद लोगों ने गुस्सा जाहिर की है.

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Ravi Prashant
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वायरल वीडियो Photograph: (X)

सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे एक वीडियो ने उत्तराखंड के स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं. वीडियो में एक गर्भवती महिला फर्श पर बैठी नजर आती है और दावा किया जा रहा है कि यह घटना हरिद्वार के एक सरकारी अस्पताल की है.

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फर्श पर ही जन्मा बच्चा

जानकारी के अनुसार, देर रात अस्पताल पहुंची 28 वर्षीय गर्भवती महिला को तत्काल भर्ती करने से ड्यूटी पर मौजूद महिला डॉक्टर ने साफ इनकार कर दिया. महिला गंभीर प्रसव पीड़ा में थी, लेकिन डॉक्टर की लापरवाही के चलते उसे अस्पताल में जगह नहीं दी गई. इसी दौरान दर्द बढ़ने पर महिला ने मजबूरन अस्पताल के फर्श पर ही बच्चे को जन्म दे दिया. बाद में हड़कंप मचते ही महिला को भर्ती किया गया. राहत की बात यह है कि मां और नवजात दोनों ही स्वस्थ हैं.

जांच के लिए दिए निर्देश

घटना सामने आने के बाद पीड़ित परिवार ने हरिद्वार के मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) डॉ. आर.के. सिंह से शिकायत दर्ज कराई. मामले को गंभीरता से लेते हुए सीएमओ ने अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डॉ. आर.बी. सिंह को जांच समिति गठित करने और 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए. इसके बाद चार डॉक्टरों की एक टीम गठित कर दी गई है, जो घटना की परिस्थितियों और जिम्मेदारी तय करने में जुट गई है.

सीएमओं ने क्या कहा? 

सीएमओ डॉ. आर.के. सिंह ने बताया कि जिस महिला डॉक्टर ने ड्यूटी पर रहते हुए गर्भवती महिला को भर्ती करने से इनकार किया, वह संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) पर कार्यरत थी और उसकी सेवा अवधि मंगलवार को समाप्त हो गई थी. अब जांच रिपोर्ट आने के बाद ही यह तय किया जाएगा कि उन्हें दोबारा नियुक्त किया जाए या नहीं.

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सरकारी तंत्र पर उठे सवाल

यह घटना न केवल अस्पताल प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर करती है बल्कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी स्थिति पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है. जहां एक ओर सरकार प्रसव के लिए सुरक्षित मातृत्व योजनाओं की बात करती है, वहीं दूसरी ओर अस्पतालों में ऐसी लापरवाही महिलाओं और परिवारों को असुरक्षित और असहाय बना देती है.

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