Uttarkashi Disaster: धराली-हर्षिल में राहत कार्य तेज, सेना ने तैयार किया नया पुल, कृत्रिम झील से बढ़ा खतरा

धराली और हर्षिल में राहत-बचाव कार्य तेज कर दिए गए हैं. सेना ने टूटी सड़क के स्थान पर नया अस्थायी पुल बना दिया है ताकि आवागमन बहाल हो सके. वहीं हर्षिल में बनी कृत्रिम झील से खतरा बढ़ गया है, क्योंकि इसके टूटने पर निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है.

धराली और हर्षिल में राहत-बचाव कार्य तेज कर दिए गए हैं. सेना ने टूटी सड़क के स्थान पर नया अस्थायी पुल बना दिया है ताकि आवागमन बहाल हो सके. वहीं हर्षिल में बनी कृत्रिम झील से खतरा बढ़ गया है, क्योंकि इसके टूटने पर निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है.

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Deepak Kumar Singh
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धराली आपदा के बाद उत्तरकाशी से हर्षिल तक युद्ध स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है. सेना और बीआरओ ने गंगनानी के पास टूटा पुल दोबारा बना दिया है. अब तक 1200 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा चुका है. कई जगह क्षतिग्रस्त पुल और सड़कें फिर से जोड़ने का काम तेजी से हो रहा है.

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हर्षिल में बनी कृत्रिम झील से नया खतरा

मालूम हो कि 05 अगस्त को बादल फटने से हर्षिल और धराली में भारी तबाही हुई. मलबे और भूस्खलन की वजह से भागीरथी नदी की धारा बदल गई, जिससे करीब 3 किलोमीटर लंबी कृत्रिम झील बन गई है. यह झील सेना के कैंप और गंगोत्री नेशनल हाईवे के हिस्से को डुबो चुकी है. पहले यहां हेलीपैड था, जो अब पूरी तरह जलमग्न है.

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मलबे का बना अस्थाई बांध टूटता है या पानी का दबाव बढ़ता है, तो अचानक बाढ़ का खतरा हो सकता है. इस तरह की घटनाओं को ‘लैंडस्लाइड लेक आउटबर्स्ट’ कहा जाता है, जो अचानक बड़े पैमाने पर तबाही मचा सकती हैं.

मौसम और खतरे की स्थिति

फिलहाल मौसम में थोड़ी राहत है, लेकिन अगर लगातार बारिश हुई तो झील का जलस्तर तेजी से बढ़ सकता है. इससे निचले इलाकों के गांवों पर खतरा मंडरा रहा है. स्थानीय लोग और प्रशासन सतर्क हैं, जबकि एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर तैनात हैं.

एक्सट्रीम वेदर का बढ़ता असर

आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में एक्सट्रीम वेदर (अत्यधिक मौसम) की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. 2022 में यह 33% दिनों में दर्ज हुआ, 2023 में 47%, 2024 में 59% और इस साल अब तक 65% दिन ऐसे रहे हैं. यह बदलाव जलवायु परिवर्तन और पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते खतरे की ओर इशारा करता है.

धराली-हर्षिल की यह त्रासदी बताती है कि पहाड़ों में प्राकृतिक आपदाएं सिर्फ एक दिन की घटना नहीं होतीं, बल्कि इनके बाद लंबे समय तक खतरों और चुनौतियों का सिलसिला जारी रहता है.


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