धराली हादसा: कुदरत के कहर के बाद भी उम्मीद कायम, छह दिन से लापता बेटे की तलाश में भटक रहा पिता

धराली हादसे में बिजनौर के लेखराज का बेटा योगेश छह दिन से लापता है. योगेश से आखिरी बार 3 अगस्त को बात हुई थी, लेकिन 5 अगस्त को आई आपदा के बाद उसका कोई पता नहीं चला. लेखराज रोज हर्षिल से धराली आकर बेटे की तलाश करते हैं और उम्मीद लगाए हुए हैं कि वह...

धराली हादसे में बिजनौर के लेखराज का बेटा योगेश छह दिन से लापता है. योगेश से आखिरी बार 3 अगस्त को बात हुई थी, लेकिन 5 अगस्त को आई आपदा के बाद उसका कोई पता नहीं चला. लेखराज रोज हर्षिल से धराली आकर बेटे की तलाश करते हैं और उम्मीद लगाए हुए हैं कि वह...

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Deepak Kumar Singh
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धराली में आई तबाही को छह दिन हो चुके हैं, लेकिन लापता लोगों की तलाश अब भी जारी है. कई परिवार अपने प्रियजनों की खोज में दर-दर भटक रहे हैं. उन्हीं में से एक हैं उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले लेखराज, जो अपने बेटे योगेश और उसके दोस्त की तस्वीर हाथ में लेकर रोज धराली की घाटी पहुंचते हैं.

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5 अगस्त की दोपहर धराली में अचानक आई आपदा ने इस खूबसूरत घाटी को मलबे में बदल दिया. जहां पहले हंसी-खुशी का माहौल था, वहां अब सिर्फ तबाही के निशान हैं. हादसे के बाद से यहां युद्ध स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है, लेकिन अभी भी कई लोग मलबे के नीचे दबे होने की आशंका है.

बेटे की तलाश में भटकता पिता

लेखराज का बेटा योगेश और उसका दोस्त वेल्डिंग का काम करते थे. योगेश से आखिरी बार 3 अगस्त को बात हुई थी. उस समय उसने बताया था कि वह घर आना चाहता है, लेकिन ठेकेदार ने अभी पैसे नहीं दिए हैं. लेखराज ने उसे कई बार लौटने को कहा, लेकिन योगेश ने वादा किया कि पैसे मिलने के बाद ही लौटेगा. 5 अगस्त को आई बाढ़ के बाद से योगेश का कोई अता-पता नहीं है. फोन मिलाने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया.

लेखराज रोज हर्षिल से धराली जाते हैं, इस उम्मीद में कि कहीं से बेटे के बारे में कोई खबर मिले. लेकिन हर दिन मायूस होकर वापस लौटते हैं. चेहरे पर थकान और आंखों में आंसू लिए वे कहते हैं कि “जब तक कोई सुराग नहीं मिलता, तलाश बंद नहीं करूंगा.”

धराली हादसे में कई लोग अपने परिजनों से बिछड़ गए हैं. प्रशासन और बचाव दल लगातार खोजबीन में जुटे हैं, लेकिन मलबे और कठिन हालात के कारण राहत कार्य में समय लग रहा है. कुदरत के इस कहर ने कई परिवारों को अपनों से जुदा कर दिया है, लेकिन उम्मीद की डोर अब भी टूटी नहीं है.

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