चीन के तियांजिन शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अहम बैठक हो रही है. यह बैठक रविवार (31 अगस्त) सुबह 9:30 बजे शुरू हुई. खास बात यह है कि दोनों नेता 7 साल बाद आमने-सामने बैठे हैं. भारत-चीन रिश्ते गलवान हिंसा और सीमा विवाद के बाद से काफी बिगड़े हुए थे. ऐसे में इस मुलाकात को दोनों देशों के संबंध सुधारने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है.
चर्चा के मुख्य मुद्दे
आपको बता दें कि इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर बात हो रही है. इनमें सीमा विवाद, व्यापार, टेरिफ वॉर और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग प्रमुख हैं. दोनों नेताओं ने सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने पर सहमति जताई है. इसके साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने और भारत-चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट बहाल करने का भी फैसला लिया गया है.
दुनियाभर के लिए अहम है यह बैठक?
यह मुलाकात सिर्फ भारत और चीन के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम है. अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों की निगाहें इस बैठक पर टिकी हुई हैं. दरअसल, अमेरिका की टेरिफ नीति से भारत और चीन दोनों प्रभावित हुए हैं. अब दोनों देश मिलकर इस स्थिति का समाधान ढूंढने की कोशिश कर सकते हैं.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी चीन पहुंचे हैं और उन्होंने साफ कहा है कि “एक नया वर्ल्ड ऑर्डर बनेगा.” ऐसे में भारत, चीन और रूस का एक साथ आना अमेरिका और यूरोपीय देशों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है.
पाकिस्तान का मुद्दा और आतंकवाद
बैठक में पाकिस्तान और आतंकवाद का मुद्दा भी अहम है. भारत हमेशा से पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन करने वाला देश बताता आया है. अब देखना होगा कि इस मीटिंग के बाद होने वाले SCO (शंघाई सहयोग संगठन) के जॉइंट डिक्लेरेशन में आतंकवाद की कड़ी निंदा होती है या नहीं.
पहलगाम आतंकी हमले और “ऑपरेशन सिंदूर” का जिक्र होना भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी. लेकिन चीन की पाकिस्तान के साथ दोस्ती को देखते हुए इस पर संदेह भी जताया जा रहा है.
गलवान के बाद संबंध सुधारने की कोशिश
मालूम हो कि 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत और चीन के रिश्तों में तनाव बढ़ गया था. दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं. अब बैठक में डिसइंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन (यानी सैनिकों का पीछे हटना और सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल करना) पर सहमति बनी है. अगर यह प्रक्रिया आगे बढ़ी तो सीमा पर शांति कायम हो सकती है.
भारत-चीन व्यापार और नए बाजार की तलाश
अमेरिका ने भारत पर 50% तक टेरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की थी. लेकिन भारत ने झुकने से इनकार कर दिया. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी साफ कहा था कि भारत अपने फैसले जनता के हित में लेगा, किसी दबाव में नहीं.
अब भारत नए बाजार तलाश रहा है. चीन और रूस इसके बड़े विकल्प बन सकते हैं. ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर भारत अपने व्यापार को और मजबूत करना चाहता है.
रूस-भारत-चीन गठजोड़ का असर
रूस और चीन पहले से करीबी साझेदार हैं. अब भारत का इस गठजोड़ से जुड़ना अमेरिका और यूरोप के लिए चुनौती है.ब्रिक्स और RIC (Russia-India-China) जैसे मंचों को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है. अगर यह सहयोग बढ़ता है, तो यह पश्चिमी देशों की नीतियों को सीधी टक्कर देगा.
पीएम मोदी का बयान
बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और चीन 2.8 बिलियन लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा तो यह पूरी मानवता के लिए फायदेमंद होगा. उन्होंने सीमा पर शांति, कैलाश मानसरोवर यात्रा और डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के फैसलों के लिए शी जिनपिंग का आभार जताया.
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