जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में 14 अगस्त को ऐसी भयावह घटना हुई जिसने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया. पाडर के चिशौती गांव में बादल फटने से भयंकर सैलाब आया. पहाड़ से उतरे मलबे और पानी ने पलक झपकते ही गांव, सड़कें और पुल तबाह कर दिए. जो भी इस सैलाब के सामने आया, वह बह गया.
मचैल माता यात्रा में जुटे श्रद्धालु फंसे
यह हादसा उस समय हुआ जब इलाके में मचैल माता मंदिर की सालाना यात्रा चल रही थी. बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे थे. उनके लिए लंगर और टेंट लगाए गए थे, लेकिन अचानक आई आपदा ने सबकुछ बहा दिया. कई यात्री मलबे में दब गए, जबकि कुछ लोगों का अब तक कोई सुराग नहीं मिला है. स्थानीय लोगों ने बताया कि किसी को भागने तक का मौका नहीं मिला.
प्रत्यक्षदर्शियों की दर्दनाक कहानी
हादसे के चश्मदीदों ने बताया कि यह मंजर बेहद डरावना था. कुछ ही मिनटों में घर, दुकानें और मंदिर सब जमींदोज हो गए. कई लोग अपने परिवार को ढूंढ रहे हैं, किसी का बच्चा लापता है तो किसी ने अपने परिजनों को मलबे में खो दिया. एक महिला ने बताया कि उनका बेटा आर्मी की मदद से बच गया, लेकिन उनकी बेटी और पति का अब तक पता नहीं चल पाया.
राहत और बचाव कार्य जारी
आपदा के तुरंत बाद प्रशासन, एनडीआरएफ और स्थानीय पुलिस ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया. भारी मशीनरी और जेसीबी की मदद से मलबा हटाया जा रहा है. हालांकि, बड़े-बड़े पत्थरों और बिखरी हुई इमारतों के कारण बचाव कार्य बेहद मुश्किल हो रहा है. प्रशासन ने श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए विशेष इंतजाम किए हैं.
मौसम विभाग ने जारी की थी चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम विभाग ने पहले ही खराब मौसम की चेतावनी दी थी. इसके बावजूद इतने बड़े पैमाने पर लोग यात्रा में शामिल थे. इस घटना ने एक बार फिर यह सबक दिया है कि पहाड़ी इलाकों में मौसम की चेतावनी को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है.
किश्तवाड़ की यह आपदा उत्तराखंड के उत्तरकाशी जैसी त्रासदियों की याद दिलाती है. लोगों की आंखों के सामने सबकुछ बह गया और अब सिर्फ मलबा और दर्द बाकी है.
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