जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में गुरुवार (14 अगस्त) को आसमान से ऐसी आफत बरसी कि कुछ ही मिनटों में पूरा इलाका तबाही में बदल गया. जिले के सुदूर पहाड़ी गांव चसौती में बादल फटने से मचैल माता मंदिर यात्रा मार्ग पर बड़ा हादसा हो गया. इस आपदा में सीआईएसएफ के दो जवानों समेत 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोग अब भी लापता हैं. मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है. किश्तवाड़ शहर से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव, मचैल माता मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं के रास्ते पर पड़ता है.
गांव में श्रद्धालुओं के लिए लगाए गए लंगर पर इस आपदा का सबसे ज्यादा असर पड़ा. अचानक तेज बारिश के बाद आई बाढ़ और मलबे ने दुकानों, सुरक्षा चौकियों और कई इमारतों को बहा दिया. कीचड़ और गाद से भरे पानी ने अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को नष्ट कर दिया. घर पलभर में ढह गए, सड़कें बंद हो गईं और हरे-भरे पहाड़ी नजारे मलबे के ढेर में बदल गए.
जीवित बचे लोगों की आंखों-देखी
हादसे के चश्मदीदों ने जो देखा, वह बेहद डरावना था. पुतुल देवी नाम की एक महिला ने बताया कि वह परिवार के साथ माता के दर्शन के बाद लौट रही थीं, तभी अचानक ऊपर से मिट्टी और मलबा आने लगा. लोग चीखते हुए इधर-उधर भागने लगे. पुतुल देवी पहाड़ पर चढ़कर बच गईं, लेकिन उनके परिवार के 12 सदस्य अब भी लापता हैं.
राकेश शर्मा नामक एक व्यक्ति ने बताया कि वे लंगर में खाना खाकर लौट रहे थे, तभी ऊपर से मिट्टी और बड़े-बड़े पत्थर आते दिखे. उन्होंने अपने बच्चे को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी और आखिरकार बच्चा बच गया, लेकिन चारों तरफ तबाही का मंजर था.
एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि हादसे के वक्त लंगर में करीब 250 लोग मौजूद थे. अचानक आई बाढ़ ने लंगर के निचले हिस्से में खाना खा रहे लोगों को बहा दिया. कई लोगों को घंटों बाद मलबे से जिंदा निकाला गया.
सेना और स्थानीय लोगों ने किया रेस्क्यू
आपदा के तुरंत बाद सेना, पुलिस और स्थानीय लोगों ने बचाव कार्य शुरू कर दिया. सेना के जवान मौके पर मौजूद थे, जिन्होंने बिना समय गंवाए मलबे में फंसे लोगों को निकालना शुरू किया. 147 लोगों को अब तक सुरक्षित बाहर निकाला जा चुका है.
स्थानीय लोगों ने भी बड़ी मदद की- अपने घरों से कपड़े, खाना, पानी और बिस्कुट लाकर पीड़ितों को दिया. पठोली और किश्तवाड़ के अस्पतालों में घायलों का इलाज चल रहा है.
अचानक आई थी तबाही, मौसम था साफ
चश्मदीदों का कहना है कि हादसे के समय न बारिश हो रही थी, न बादल थे और न धूप- मौसम बिल्कुल साफ था. अचानक नाले से तेज गर्जना के साथ पानी और मलबा बहकर आया और कुछ ही मिनटों में पूरे गांव को तहस-नहस कर दिया.
आपको बता दें कि चसौती गांव समुद्र तल से करीब 9,500 फीट की ऊंचाई पर है. यहां से मचैल माता मंदिर तक जाने के लिए श्रद्धालु वाहन से आते हैं और फिर 8.5 किलोमीटर पैदल यात्रा करते हैं.
पहाड़ों पर बढ़ रहा प्राकृतिक आपदाओं का खतरा
यह हादसा उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में आई बाढ़ के महज 9 दिन बाद हुआ है. वहां 5 अगस्त को अचानक आई बाढ़ में 6 व्यक्ति की मौत हुई थी और 68 लोग अब भी लापता हैं.
लगातार हो रही ऐसी घटनाएं हिमालयी क्षेत्रों की नाजुक भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को उजागर करती हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित निर्माण और भारी बारिश की वजह से इन इलाकों में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं.
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